इमरजेंसी... देश की सियासत में इस शब्द का शोर गूंजते अब पांच दशक पूरे हो गए हैं. 25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लागू करने का ऐलान किया था. इमरजेंसी के 50 साल पूरे होने पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) संविधान हत्या दिवस मना रही है. वहीं, विपक्षी इंडिया ब्लॉक में कांग्रेस की सहयोगी समाजवादी पार्टी (सपा) लोकतंत्र रक्षा दिवस मना रही है. 'हत्या' और 'रक्षा' के आयोजन अपनी जगह, लेकिन इमरजेंसी का एक पहलू और है जिस पर ज्यादा बात नहीं होती.
वह पहलू है बदलाव का. इमरजेंसी 28 साल के 'जवान भारतीय लोकतंत्र' को परिपक्वता की दहलीज तक ले आई. सत्ता का विकेंद्रीकरण किया और देश को एक दल की मजबूत छत्रछाया से बाहर निकाल बहुदलीय सियासत के रंगों से रूबरू कराया. जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में हुए आंदोलन और अन्य आंदोलनों के जरिये लोक यानी जनता में लोकतंत्र को लेकर जागरुकता आई. इमरजेंसी में लोकतांत्रिक अधिकार कुचले गए, राजनीतिक व्यक्तियों को जेलों में डाला गया. लेकिन एक फैक्टर यह भी है कि इसी दौर से भारत की राजनीति 360 डिग्री घूम गई. इंदिरा की इमरजेंसी के पॉलिटिकल इफेक्ट क्या रहे?
1- इंदिरा के बरक्श जेपी का नेतृत्व
देश की आजादी के बाद से ही केंद्र की गद्दी से राज्यों की सत्ता तक, कांग्रेस का वर्चस्व था. इसके पीछे मूल वजह थी कि आजादी के आंदोलन में पार्टी का योगदान और पंडित जवाहरलाल नेहरू के मुकाबले अन्य दलों में नेतृत्व का अभाव. इंदिरा गांधी के नेतृत्व को भी लोगों ने खुले दिल से स्वीकार किया और कांग्रेस का दबदबा जारी रहा. लेकिन इंदिरा की इमरजेंसी में तस्वीर बदल गई. इमरजेंसी के खिलाफ हुआ आंदोलन नेतृत्व की फैक्ट्री साबित हुआ और भारतीय राजनीति को कई नेता मिले. सबसे बड़ा नाम जयप्रकाश नारायण का रहा, जिन्हें लोकनायक भी कहा गया. इमरजेंसी ने इंदिरा के बरक्श जेपी का नेतृत्व स्थापित किया.
2- 'किंग नहीं, किंगमेकर' परंपरा की शुरुआत
इमरजेंसी के खिलाफ हुए आंदोलन के बाद देश की सियासत में एक बड़ा बदलाव यह भी हुआ कि किंग की जगह किंगमेकर बनने की परंपरा का भी सूत्रपात हुआ. जयप्रकाश नारायण तब इमरजेंसी विरोधी दलों के सबसे बड़े पोस्टर बॉय, सबसे लोकप्रिय चेहरा थे. 1977 के आम चुनाव में गैर कांग्रेसी पार्टियों के चुनाव अभियान की धुरी रहे जयप्रकाश नारायण ने न तो खुद चुनाव लड़ा और ना ही चुनाव बाद जनता पार्टी की सरकार बनने पर उसमें शामिल ही हुए. जयप्रकाश नारायण ने जनता पार्टी सरकार की धुरी होते हुए भी किंग की जगह किंगमेकर की भूमिका में रहना स्वीकार किया. यहीं से सत्ता में भागीदारी भी बहुदलीय हो गई और गठबंधन परंपरा का सूत्रपात भी हुआ.
3- कांग्रेस के एकछत्र राज में सेंध
आजादी के बाद हुए पहले चुनाव से लेकर इमरजेंसी के लागू होने तक, देश की सियासत पर कांग्रेस पार्टी का एकछत्र राज था. कांग्रेस को चुनौती दे पाना भी सियासी दलों के लिए मुश्किल काम माना जाता था. पूर्व से लेकर पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक, ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस पार्टी की ही सरकारें थीं.
इमरजेंसी के खिलाफ हुए आंदोलन ने हालात बदल दिए और इसके बाद हुए चुनावों में ग्रैंड ओल्ड पार्टी की अपराजेय इमेज धुल गई. इमरजेंसी विरोधी लहर में कांग्रेस को न सिर्फ केंद्र की सत्ता से विदा होना पड़ा, राज्यों की सत्ता छोड़िए एक-एक सीट जीतने में कद्दावर नेताओं के भी पसीने छूट गए. कुल मिलाकर इमरजेंसी इफेक्ट से कांग्रेस के एकछत्र राज में सेंध लग गई.
4- जनता परिवार का विस्तार
इमरजेंसी विरोधी आंदोलन ने अलग-अलग विचारधारा वाली पार्टियों को, नेताओं को एक मंच पर लाने का काम किया और जनता पार्टी भी इसी का उदाहरण है. समाजवादी, गांधीवादी, और जनसंघ जैसी अलग-अलग विचारधाराओं के दल, नेता साथ आए. 1977 के आम चुनाव में 542 में से 298 सीटें जीतकर जनता पार्टी ने सरकार भी बनाई.
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जनता पार्टी और उसकी सरकार अधिक दिनों तक नहीं चल सकी और दो साल में ही फूट पड़ने के बाद मोरारजी देसाई की अगुवाई वाली सरकार गिर गई. जनता दल और भारतीय जनता पार्टी जैसे सियासी दल इसी वटवृक्ष से निकले. जनता दल भी कई दलों में बंटा और जनता दल (यूनाइटेड), जनता दल (सेक्यूलर), समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी), बीजू जनता दल (बीजेडी), राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) जैसी पार्टियां इसी जनता परिवार का विस्तार हैं.
5- दिल्ली दरबार में बीजेपी का उभार
भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी की जड़ें भी इसी जनता परिवार से जुड़ी हैं. आपातकाल विरोधी आंदोलन के बाद भारतीय जन संघ (बीजेएस) भी जनता पार्टी में शामिल था. जनता पार्टी की कार्यकारिणी बैठक में पार्टी पदाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में शामिल होने पर रोक का प्रस्ताव पारित होने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई वाले धड़े ने खुद को वास्तविक जनता पार्टी घोषित कर दिया.
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बाद में इसी नाम में भारतीय जोड़कर नई पार्टी बनाई गई, जो आज की भारतीय जनता पार्टी है. अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में बीजेपी की नींव पड़ी थी. बीजेपी की जड़ें जनसंघ से जुड़ी हैं, लेकिन एक तरह से देखें तो यह इमरजेंसी विरोधी आंदोलन के बाद जनता पार्टी से ही निकली है. दो सीटें जीतकर अपनी संसदीय यात्रा शुरू करने वाली बीजेपी का दिल्ली दरबार में उभार 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली पहली सरकार के साथ हुआ और आज पिछले 11 साल से पार्टी दिल्ली की गद्दी पर काबिज है.