महान मलयालम लेखक और फिल्म निर्देशक एम.टी वासुदेवन नायर का बुधवार रात निधन हो गया. वह 91 वर्ष के थे. कोझिकोड के एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान रात 10 बजे के करीब उनका निधन हो गया. उन्हें 2005 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. उन्होंने 7 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीते. साहित्य के अलावा, पटकथा लेखक और निर्देशक के रूप में फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाने वाले एम टी ने शिक्षक और संपादक के रूप में भी काम किया. केरल सरकार ने दो दिन के शोक का ऐलान किया है.
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने नायर के निधन पर शोक व्यक्त किया. उन्होंने कहा, "एम.टी. वासुदेवन नायर के निधन से हमने मलयालम साहित्य के एक ऐसे दिग्गज को खो दिया है, जिन्होंने हमारी भाषा को वैश्विक ऊंचाइयों पर पहुंचाया. एक सच्चे सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में, उन्होंने अपने कालातीत कार्यों के माध्यम से केरल की आत्मा को पकड़ लिया. धर्मनिरपेक्षता और मानवता के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता एक ऐसी विरासत छोड़ गई है जो पीढ़ियों को प्रेरित करेगी. उनके परिवार और सांस्कृतिक समुदाय के प्रति हार्दिक संवेदना."
सीएम ने रद्द किए सभी सरकारी कार्यक्रम
मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से बयान जारी किया गया. इसमें कहा गया कि राज्य सरकार मलयालम लेखक एम.टी. वासुदेवन नायर के निधन पर सम्मान और शोक प्रकट करने के लिए 26 और 27 दिसंबर को आधिकारिक तौर पर शोक मनाएगी. मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने निर्देश दिया है कि 26 दिसंबर को होने वाली कैबिनेट बैठक समेत सभी सरकारी कार्यक्रम स्थगित कर दिए जाएं.
मलायलम में लिखे कई उपन्यास
बता दें कि नायर ने अपने लेखन के माध्यम से केरल के जीवन की सुंदरता और जटिलता को व्यक्त किया. वे वल्लुवनाडन ग्रामीण जीवन संस्कृति में निहित रहते हुए दुनिया के क्षितिज पर छा गए. इस प्रकार, एमटी ने अपने लेखन के माध्यम से मलयाली लोगों के व्यक्तिगत मन से लेकर केरल के पूरे सामुदायिक मानस को चिह्नित किया. नालुकेट्टू और रंदामूझम सहित उनके उपन्यास मलयालम के क्लासिक्स हैं. उनकी पटकथाएं और फिल्म रूपांतरण ने राष्ट्रीय और अंतरर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया है और पुरस्कार जीते हैं.
कई पुरस्कार से हुए सम्मानित
सात दशकों से अधिक समय तक अपने लेखन के माध्यम से एमटी ने एक ऐसा साहित्यिक संसार बनाया जो आम आदमी और बुद्धिजीवियों दोनों के लिए सुलभ था. इसलिए, उनको भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ से लेकर देश के सर्वोच्च सम्मान पद्म भूषण तक सभी से सम्मानित किया गया. इसके साथ ही वह मातृभूमि प्रकाशन के संपादक भी रहे हैं और केरल साहित्य अकादमी के अध्यक्ष, केंद्र साहित्य अकादमी के प्रतिष्ठित सदस्य और थुंचन स्मारक ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में भी किया किया था.