लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम के बाद से उत्तर प्रदेश की सियासी हलचल तेज हो गई है. योगी सरकार के भीतर भी विरोध के स्वर उठने लगे हैं. वहीं, दूसरी ओर आम चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद इंडिया गठबंधन के हौसले बुलंद हैं. इसी बीच यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भी होने हैं, जिसे इंडिया और एनडीए गठबंधन के लिए काफी अहम माना जा रहा है. जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होने हैं वहां 2022 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटें समाजवादी पार्टी ने, तीन बीजेपी ने तो एक-एक सीट राष्ट्रीय लोक दल और निषाद पार्टी ने जीती थी. मौजूदा समय में ये दोनों ही दल एनडीए का हिस्सा हैं. अब गठबंधन के लिहाज से समझें तो 10 में से 5 सीट पर सपा का तो 5 पर एनडीए गठबंधन का कब्जा रहा था. इन 10 सीटों पर कांग्रेस और सपा साथ मिलकर लड़ सकती हैं. अटकलें हैं कि कांग्रेस 3 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है.
अब जानिए किसका पलड़ा भारी
इन 10 में से तीन सीटों को सपा की 'बहुत मजबूत' सीटों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिन पर पार्टी ने 2008 में परिसीमन के बाद से लगातार जीत हासिल की है. वहीं, दो सीटें ऐसी हैं जिन पर सपा ने 3 में से 2 बार जीत हासिल की है. जबकि तीन सीटों को भाजपा की 'मजबूत' सीटों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिन पर पार्टी ने पिछले तीन चुनावों में दम दिखाया है.
इस उपचुनाव के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ ने 30 मंत्रियों को 10 सीटों का प्रभारी नियुक्त करने के साथ ही तैयारियां शुरू कर दी हैं. इंडिया ब्लॉक के गठबंधन में ही लड़ने की उम्मीद है.अब आइए सीटवार जानते हैं कि कहां कौन मजबूत है.
1. कटेहरी
कटेहरी सीट सपा नेता लालजी वर्मा के अंबेडकर नगर से लोकसभा चुनाव लड़ने और जीत हासिल करने के बाद खाली हुई है. 2012 में यह सीट एसपी और 2017 में बीएसपी ने जीती थी. 2022 के चुनाव में सपा ने कड़े मुकाबले में निषाद पार्टी को हराकर यहां से जीत हासिल की थी.इस सीट पर बसपा ने 24 फीसदी वोट हासिल कर निषाद पार्टी का खेल बिगाड़ दिया था. यह सपा की 'मजबूत' सीट है. पूर्वांचल की इस सीट पर यादवों और दलितों का अच्छा प्रभाव है.
2. करहल
करहल सीट सपा प्रमुख अखिलेश यादव के इस्तीफा देने के बाद खाली हो गई थी क्योंकि वह कन्नौज से लोकसभा चुनाव जीत गए थे. यह सपा की बहुत मजबूत सीट है क्योंकि पार्टी ने पिछले तीन चुनावों में हर बार यह सीट जीती है. 2022 में अखिलेश 67,500 वोटों के बड़े अंतर से जीते.इस पर यादवों का अच्छा प्रभाव है. यह सीट मैनपुरी लोकसभा के अंतर्गत आती है और पारंपरिक रूप से यादव परिवार की सीट है.बीजेपी ने अपने चुनावी इतिहास में यह सीट कभी नहीं जीती है.
3. मिल्कीपुर
सपा नेता अवधेश प्रसाद के फैजाबाद से सांसद बनने के बाद मिल्कीपुर सीट खाली हुई थी. 2012 में यह सीट सपा और 2017 में बीजेपी ने जीती थी. 2022 में सपा ने कड़े मुकाबले में छह फीसदी के जीत अंतर के साथ बीजेपी को हराकर सीट दोबारा हासिल कर ली.बसपा ने सात फीसदी वोट हासिल कर भाजपा का खेल बिगाड़ दिया था. यह सपा की 'मजबूत' सीट है. इसमें ब्राह्मणों और दलितों का अच्छा प्रभाव है.
4. मीरापुर
मीरापुर सीट रालोद के चंदन चौहान के सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई है. 2012 में यह सीट बसपा और 2017 में बीजेपी ने जीती थी. 2022 में आरएलडी ने एसपी के साथ गठबंधन कर ये सीट हासिल की थी.इस सीट पर जाटों और मुसलमानों का अच्छा प्रभाव है.
5. गाजियाबाद
भाजपा के अतुल गर्ग ने गाजियाबाद से लोकसभा का चुनाव जीता जिसके बाद ये सीट खाली हुई है. 2012 में यह सीट बसपा और 2017 में बीजेपी ने जीती थी. 2022 में बीजेपी ने 1 लाख से अधिक वोटों के भारी अंतर से सीट बरकरार रखी. यह बीजेपी की 'मजबूत' सीट है. यहां जाटों और वैश्यों का अच्छा प्रभाव है.सपा ने इस सीट पर केवल एक बार 2004 में जीत हासिल की है.
6. मझावां
भदोही सीट से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद निषाद पार्टी के विनोद कुमार बिंद के इस्तीफा देने के बाद ये सीट खाली हुई है.2012 में यह सीट बसपा और 2017 में बीजेपी ने जीती थी. 2022 में बीजेपी की सहयोगी पार्टी निषाद ने सपा को हराकर ये सीट जीती. यह बीजेपी की मजबूत सीट है. इसमें यादव, मौर्य, निषाद, दलित, ब्राह्मणों का अच्छा प्रभाव है.
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7. सीसामऊ
सपा विधायक इरफान सोलंकी के दोषी साबित होने के बाद यह सीट खाली हुई है. यह सपा की 'बहुत मजबूत सीट' है क्योंकि पिछले तीन चुनावों में सपा ने यहां लगातार जीत हासिल की है. यहां मुसलमानों, ब्राह्मणों, दलितों का अच्छा प्रभाव है.यह सीट कानपुर लोकसभा के अंतर्गत आती है.
8. खैर
भाजपा के अनूप सिंह ने हाथरस से लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद अलीगढ़ की खैर विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. 2012 में यह सीट आरएलडी और 2017 में बीजेपी ने जीती थी. 2022 में, बीजेपी ने कड़े मुकाबले में 30 प्रतिशत के आसान जीत अंतर के साथ बसपा को हराकर सीट बरकरार रखी.यह बीजेपी की 'मजबूत' सीट है. इसमें जाटों, ब्राह्मणों, दलितों और मुसलमानों का अच्छा प्रभाव है.
9. फूलपुर
प्रवीण पटेल के सांसद चुने जाने के बाद ये सीट खाली हुई थी. 2012 में यह सीट सपा और 2017 में बीजेपी ने जीती थी. 2022 में बीजेपी ने कड़े मुकाबले में एक फीसदी के जीत अंतर के साथ एसपी को हराकर सीट बरकरार रखी. यहां यादवों और दलितों का अच्छा प्रभाव है.
10. कुंदरकी
संभल लोकसभा सीट से सपा विधायक जिया उर रहमान बर्क के 10 प्रतिशत के अंतर से जीत हासिल करने के बाद यह सीट खाली हो गई थी. यह सपा की बहुत मजबूत सीट है. सपा यहां 2012, 2017 और 2022 में जीती है.2022 में एसपी ने बीजेपी को 16 फीसदी के जीत अंतर से हराकर सीट बरकरार रखी.