सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा को मिले तीसरे सेवा विस्तार को गैरकानूनी करार दिया है और केंद्र सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ईडी और सीबीआई निदेशक के कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ाने के संशोधन पर मुहर लगाई है और इसे सही माना है. कोर्ट ने नए डायरेक्टर की नियुक्ति तक संजय मिश्रा को पद पर बने रहने के लिए कहा है. जानिए दोनों जांच एजेंसियों के डायरेक्टर्स की नियुक्ति-सेवा विस्तार के नियम और विवादों के बारे में...
क्यों चर्चा में सेवा विस्तार?
दरअसल, ईडी के डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा को केंद्र सरकार ने एक बार फिर सेवा विस्तार दिया है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कीं. सेवा विस्तार पर केंद्र सरकार ने कोर्ट में दलीलें दीं. सरकार का कहना था कि इस वर्ष फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की समीक्षा के कारण सेवा विस्तार दिया जाना जरूरी हो गया था. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की इस दलील को उचित माना और संजय कुमार मिश्रा को 31 जुलाई तक काम करने की अनुमति दे दी है. 1984 बैच के आईआरएस अफसर मिश्रा को 18 नवंबर तक नया सेवा विस्तार दिया गया था.
मिश्रा की 2018 में हुई थी नियुक्ति
62 साल के संजय मिश्रा को 19 नवंबर 2018 को ईडी का डायरेक्टर बनाया गया था. बाद में 13 नवंबर 2020 को केंद्र सरकार ने नियुक्ति पत्र में संशोधन किया और कार्यकाल को दो साल की जगह तीन साल कर दिया था. उसके बाद पिछले साल सरकार एक अध्यादेश लेकर आई. इसके तहत ईडी और सीबीआई डायरेक्टर का कार्यकाल दो साल के अनिवार्य कार्यकाल के बाद तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है.
'ED डायरेक्टर का कार्यकाल तीसरी बार बढ़ाना अवैध', सुप्रीम कोर्ट से मोदी सरकार को बड़ा झटका
SC ने सेवा विस्तार बढ़ाने के नियम पर क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने ईडी और सीबीआई प्रमुख को दो साल के तय कार्यकाल के बाद भी एक-एक वर्ष के लिए तीन सेवा विस्तार देने के कानून को वैध माना है. बता दें कि ईडी और सीबीआई चीफ के कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने नियमों में संशोधन किया था. इस मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कानून पर न्यायिक समीक्षा का दायर बहुत सीमित है. इन अधिकारियों की नियुक्तियां उच्च स्तरीय कमेटी करती है. इन संशोधन को बरकरार रखा जा सकता है, इसमें पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं. बेंच ने कहा कि सरकार इस तरह के विस्तार तभी दे सकती है, जब उनकी नियुक्ति की सिफारिश करने के लिए गठित कमेटियां जनहित में उनके विस्तार की सिफारिश करती हैं और लिखित में कारण भी दर्ज करती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा...
बेंच की ओर से जस्टिस गवई ने 103 पेजों का फैसला लिखा. कोर्ट ने आदेश में लिखा, हालांकि, किसी फैसले पर आधार हटाया जा सकता है. विधायिका उस विशिष्ट आदेश को रद्द नहीं कर सकती है, जो आगे के विस्तार पर रोक लगाता है. यह न्यायिक अधिनियम के खिलाफ अपील में बैठने के समान होगा. लिहाजा, संजय कुमार मिश्रा को एक-एक साल के सेवा विस्तार (17 नवंबर 2021 और 17 नवंबर 2022) के आदेश गैरकानूनी माने जाते हैं.
कैसे होती है CBI चीफ की नियुक्ति? सैलरी से लेकर पावर तक... जानें सबकुछ
1997 के फैसले का भी जिक्र...
बेंच ने कहा कि शीर्ष अदालत ने 1997 में विनीत नारायण बनाम भारत सरकार मामले में अपने फैसले में एक विशिष्ट आदेश जारी किया था कि सीबीआई निदेशक का कार्यकाल न्यूनतम दो साल का होगा. जैन हवाला मामले के नाम से चर्चित केस में शीर्ष अदालत ने फैसला दिया था और सीबीआई की स्वतंत्रता और स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश तय किए थे. कोर्ट ने आदेश दिया था कि इसे केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की निगरानी में रखा जाए.
कोर्ट के आदेश से क्या तस्वीर हुई साफ?
कोर्ट के नए आदेश से यह स्पष्ट हो गया है कि यह सिर्फ सरकार की इच्छा पर निर्भर नहीं करेगा कि सीबीआई निदेशक या प्रवर्तन निदेशक को विस्तार दिया जा सकता है. बल्कि उन कमेटियों की सिफारिशें महत्वपूर्ण होंगी, जो उनकी नियुक्ति की सिफारिश करने के लिए गठित की जाती हैं. वह भी तब, जब यह सार्वजनिक हित में पाया जाता है और जब कारण लिखित रूप में दर्ज किए जाते हैं, तो सरकार की तरफ से ऐसा विस्तार दिया जा सकता है.
CBI डायरेक्टर की नियुक्ति को लेकर बुलाई गई सेलेक्ट कमेटी की बैठक बेनतीजा रही
क्या अध्यादेश लेकर आई थी केंद्र सरकार?
केंद्र सरकार नवंबर 2021 में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) अधिनियम के साथ-साथ दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) अधिनियम में संशोधन के लिए अध्यादेश लाई थी, इसके तहत सीबीआई और ईडी चीफ को 1-1 साल के तीन सेवा विस्तार देने का प्रावधान है. बाद में यह संसद में भी पारित हो गया. उसके बाद नवंबर 2021 में ही संजय मिश्रा को दूसरी बार एक साल के लिए सेवा विस्तार मिला था. नवंबर 2022 में केंद्र सरकार ने तीसरी बार संजय कुमार मिश्रा को एक साल का एक्सटेंशन दिया था. वे ईडी के पहले ऐसे डायरेक्टर हैं, जिन्हें एक्टेंशन मिला. मिश्रा का कार्यकाल 18 नवंबर 2023 को खत्म होना था, इससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने एक्सटेंशन के आदेश को रद्द कर दिया है.
ED-CBI चीफ की नियुक्ति-एक्सटेंशन के नियम क्या हैं?
नवंबर 2021 में केंद्र सरकार ईडी और सीबीआई के निदेशकों के कार्यकाल को 5 साल तक बढ़ाने के लिए अध्यादेश लेकर आई थी. नए अध्यादेश के मुताबिक, सीबीआई और ईडी चीफ की नियुक्ति पहले 2 साल के लिए होगी. उसके बाद तीन साल का (1+1+1) करके एक्सटेंशन दिया जाएगा. एक-एक साल के लिए तीन एक्सटेंशन दिए जा सकते हैं. लेकिन, यह कुल 5 साल से अधिक नहीं होना चाहिए.
ED निदेशक के कार्यकाल को बढ़ाने के फैसले को चुनौती, SC ने केंद्र से 10 दिन में मांगा जवाब
याचिकाओं में क्या आरोप लगाए गए थे?
याचिकाकर्ता जया ठाकुर ने केंद्र सरकार पर प्रवर्तन निदेशालय का दुरपयोग करने का आरोप लगाया था. उन्होंने याचिका में कहा कि ईडी का उपयोग राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ किया जा रहा है. कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला और टीएमसी नेता साकेत गोखले और महुआ मोइत्रा ने भी केंद्र सरकार पर आरोप लगाए थे और सेवा विस्तार के फैसले को चुनौती दी थी. इन याचिकाओं पर जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की संयुक्त बेंच ने सुनवाई की है.
सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितंबर 2021 के फैसले का भी जिक्र किया और नए सेवा विस्तार को उस आदेश के विरुद्ध बताया है. कोर्ट का कहना था कि रिटायरमेंट की उम्र के बाद अधिकारियों को सेवा विस्तार सिर्फ दुर्लभ मामलों में अपवाद स्वरूप दिया जाना चाहिए. तब कोर्ट ने स्पष्ट बाध्यकारी आदेश जारी किया था और कहा था कि संजय कुमार मिश्रा को आगे और कोई सेवा विस्तार नहीं दिया जाएगा. बेंच ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि 2021 के फैसले में इस कोर्ट ने कोई कानून खत्म नहीं किया था, बल्कि सभी पक्षों के लिए बाध्यकारी आदेश जारी किया था.
कौन हैं ED के डायरेक्टर संजय मिश्रा? जिनका कार्यकाल बढ़ाने पर छिड़ा है विवाद
ED डायरेक्टर की नियुक्ति के लिए गठित होती है कमेटी
प्रवर्तन निदेशालय में आईएएस, आईपीएस और आईआरएस और ईडी के अपने कैडर से प्रमोटिड अफसर भी जिम्मेदारी संभालते हैं. ED चीफ की नियुक्ति केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 के प्रावधानों के अनुसार की जाती है. केंद्र सरकार एक कमेटी की सिफारिश पर ईडी डायरेक्टर की नियुक्ति करती है. इसकी अध्यक्षता केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (अध्यक्ष) करते हैं. इस कमेटी में सतर्कता आयुक्त और केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय, वित्त (राजस्व), गृह मंत्रालय के प्रभारी सचिवों और सचिवों वाली समिति होती है.
इस कमेटी की सिफारिश पर ही नए ईडी चीफे की जा सकती है. बताते चलें कि ईडी, केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है. यह जांच एजेंसी मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA-2018) के मुताबिक काम करती है. यह जांच एजेंसी वित्तीय अपराधों की जांच करती है और गैरकानूनी तरीकों से अर्जित संपत्ति को जब्त करने का काम करती है.
कैसे नियुक्त किए जाते हैं सीबीआई चीफ?
सीबीआई के प्रमुख की नियुक्ति तीन सदस्यों वाली अपॉइंटमेंट कमेटी करती है. इस कमेटी में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और लोकसभा में विपक्ष के नेता होते हैं. अगर लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता नहीं है तो फिर सदन की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता इस कमेटी का हिस्सा होते हैं. सीबीआई चीफ का कार्यकाल दो साल के लिए फिक्स है. लेकिन इसे पांच साल तक के लिए बढ़ाया जा सकता है. यानी दो साल तो फिक्स ही रहेगा. उसके बाद अगर कमेटी को लगता है तो एक-एक साल करके तीन साल तक कार्यकाल और बढ़ाया जा सकता है.
केंद्र सरकार का बड़ा फैसला, ED और CBI चीफ का कार्यकाल बढ़ाकर 5 साल तक किया
सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति की प्रक्रिया की शुरुआत गृह मंत्रालय से होती है. सबसे पहले सीनियर आईपीएस अफसरों की एक लिस्ट तैयार की जाती है. उसमें अफसरों के अनुभव का ध्यान रखा जाता है. इस लिस्ट को फाइनल करने के बाद कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग को भेजा जाता है.
ईडी-सीबीआई में नियुक्ति को लेकर क्या है विवादों की हिस्ट्री?
- संजय कुमार मिश्रा को 19 नवंबर 2018 को ईडी का डायरेक्टर बनाया गया था. नियम के मुताबिक, ईडी डायरेक्टर का कार्यकाल दो साल के लिए तय होता था. ऐसे में मिश्रा का 19 नवंबर 2020 में सेवाकाल पूरा हो जाना था, लेकिन केंद्र सरकार ने 13 नवंबर 2020 को मिश्रा को एक साल के लिए एक्सटेंशन दे दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने उनके एक्सटेंशन को नियम विरुद्ध बताया था तो सरकार ने अध्यादेश लाकर कार्यकाल बढ़ाया था.
- केंद्र सरकार द्वारा 2021 में संशोधन किए जाने के खिलाफ एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गईं और मिश्रा को सेवा विस्तार दिए जाने का विरोध किया गया. याचिका में कहा गया कि सरकार ने संसदीय और संवैधानिक प्रक्रिया से उलट गलत तरीके से ED डायरेक्टर का कार्यकाल बढ़ाया है.
- बिना लोकसभा और राज्य सभा में बहस के ये संशोधन बिल पास कर दिया गया. दो संशोधनों के जरिए सरकार ने एक्सटेंशन को 1 साल से बढ़ा कर, 2 साल कर दिया है. याचिका कर्ता का कहना था कि धारा 25 में ईडी डायरेक्टर की नियुक्ति करने वाली कमेटी का जिक्र है. लेकिन, यह सीबीआई की तरह नहीं है, जहां सरकार के बाहर के लोग भी शामिल होते हैं. सुप्रीम कोर्ट में ED और CBI निदेशकों का कार्यकाल 5 साल तक बढ़ाने के अध्यादेश के खिलाफ 8 याचिकाएं दाखिल की गई हैं.
- इससे पहले मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति का विवाद भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. तब कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला दिया था कि CEC और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक कमेटी की सलाह पर की जाएगी, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के चीफ जस्टिस शामिल होंगे. यह नियम तब तक बना रहेगा, जब तक कि संसद इस मुद्दे पर कानून नहीं बना देती.
- 2016 में तत्कालीन सीबीआई चीफ आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. तब सरकार ने बड़ा एक्शन लिया और विभाग में दूसरे सबसे सीनियर अफसर आरके दत्ता का तबादला गृह मंत्रालय में किया और राकेश अस्थाना को सीबीआई का अंतरिम चीफ बना दिया था.
- अस्थाना की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. बाद में फरवरी 2017 में आलोक वर्मा को सीबीआई चीफ बनाया गया. हालांकि, बाद में जनवरी 2019 में आलोक वर्मा को पदमुक्त कर दिया गया था. पीएम की अगुवाई वाली सेलेक्ट कमेटी ने आलोक वर्मा पर 2-1 के बहुमत से फैसला लिया था.
- 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की तीखी आलोचना की थी और जांच एजेंसी की तुलना पिंजरे में बंद तोते से की थी.