सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM की मान्यता रद्द करने की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. याचिका में आरोप लगाया गया था कि AIMIM केवल मुस्लिम समुदाय के लिए काम करती है और संविधान के सेक्युलर सिद्धांतों का उल्लंघन करती है.
हालांकि, कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि अगर कोई पार्टी धार्मिक आधार पर वोट मांगती है, तो उसे एक व्यापक समस्या के रूप में देखा जाना चाहिए - सिर्फ एक पार्टी को निशाना नहीं बनाया जा सकता.
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याचिकाकर्ता के वकील ने क्या दलील दी?
याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि AIMIM अपने घोषणा पत्र में इस्लामिक अध्ययन और शरीया कानून की समझ को बढ़ावा देने की बात करती है, जो भेदभाव है. इस पर कोर्ट ने कहा कि धर्म से जुड़े विषय पढ़ाना कानून के तहत गलत नहीं है. यदि कोई पार्टी नाबालिग विवाह जैसी अवैध चीजों का प्रचार करती, तो मामला अलग होता.
वकील ने यह भी कहा कि यदि कोई हिंदू वेदों के आधार पर पार्टी बनाना चाहे, तो चुनाव आयोग पंजीकरण नहीं देगा. इस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कराने में कोई आपत्ति नहीं है, और यदि आयोग ऐसा करने से रोके तो याचिकाकर्ता संबंधित मंच पर जा सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के जज ने याचिका क्यों खारिज की?
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "देश में बहुत सी पार्टियां क्षेत्र, जाति और धर्म के नाम पर वोट मांगती हैं. यह एक बड़ी राजनीतिक समस्या है." कोर्ट ने सुझाव दिया कि यदि राजनीतिक सुधार की जरूरत महसूस हो, तो एक नई, व्यापक याचिका दाखिल की जाए जिसमें किसी एक पार्टी का नहीं बल्कि पूरी चुनावी व्यवस्था का आकलन हो.
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कोर्ट की सुनवाई से इनकार के बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली और भविष्य में सुधार के मुद्दों को लेकर नई अर्जी दाखिल करने की बात कही. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इसकी अनुमति दे दी.