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मॉक ड्रिल के पर्दे के पीछे की कहानी, जानिए कैसे तैयार होती है 'इमरजेंसी' की स्क्रिप्ट

मॉक ड्रिल यानी कि इमरजेंसी या किसी आपदा के पहले रिस्पांस टाइम समझने के लिए अक्सर एजेंसियां मॉक ड्रिल करती रहती हैं. मॉक ड्रिल के जरिए एजेंसियां अपनी कमी और गलतियों में सुधार करती है. आइए जानते हैं कि मॉक ड्रिल से पहले पर्दे के पीछे क्या-क्या तैयारियां होती हैं. कैसे एजेंसियां एक-दूसरे के संपर्क में रहती है.

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मॉक ड्रिल.
मॉक ड्रिल.

पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. भारत एक के बाद एक कूटनीतिक तरीके से कार्रवाई कर रहा है तो पाकिस्तान तिलमिलाते हुए लगातार युद्ध की गीदड़भभकी दे रहा है. हमले के खतरे को देखते हुए गृह मंत्रालय ने 7 मई को देश भर में कई जगहों पर मॉक ड्रिल आयोजित करने का निर्देश दिया है. अब हम आपको मॉक ड्रिल से पहले क्या-क्या तैयारियां होती हैं और कैसे इमरजेंसी स्थिति की स्क्रिप्ट तैयार होती है.

मॉक ड्रिल यानी कि इमरजेंसी या किसी आपदा के पहले रिस्पांस टाइम समझने के लिए अक्सर एजेंसियां मॉक ड्रिल करती रहती हैं. मॉक ड्रिल के जरिए एजेंसियां अपनी कमी और गलतियों में सुधार करती है. आइए जानते हैं कि मॉक ड्रिल से पहले पर्दे के पीछे क्या-क्या तैयारियां होती हैं. कैसे एजेंसियां एक-दूसरे के संपर्क में रहती है.

क्यों होती है मॉक ड्रिल

आग, बम ब्लास्ट, भूकंप या फिर युद्ध से पैदा हुई इमरजेंसी स्थिति से निपटने के लिए मॉक ड्रिल होती रहती हैं, लेकिन युद्ध से पहले की आमतौर पर होने वाली मॉक ड्रिल से अलग होती है. बल्कि कोआर्डिनेशन भी अलग तरह से किया जाता है. इस मॉक ड्रिल में लोगों को भी ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि सायरन बजने की स्थिति में क्या करना है, कब छिपना है, रात के वक़्त कब बिजली बंद करनी है. इस बारे में जानकारी दी जा सके.

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अहम होती है बैठक

दरअसल, युद्ध से पहले होने वाली मॉक ड्रिल को लेकर होने वाली बैठक में हर उस एजेंसी के चीम शामिल होते हैं जो इस ड्रिल का हिस्सा बनते हैं. इसी बैठक में तय किया जाता है कि किस तरह ड्रिल होगी. बैठक में रोल्स और जिम्मेदारी भी बांटी जाती हैं.

खास है युद्ध से पहले की मॉक ड्रिल

युद्ध से पहले की मॉक ड्रिल आम मॉक ड्रिल से अलग होती है. युद्ध की स्थिति में जब ड्रिल की जाती है तो इसमें लोकल पुलिस के अलावा पूरी केंद्रीय एजेंसियों के जवान, पैरामिलिट्री फोर्स के जवान, लोकल फायर सर्विस, सिविल डिफेंस के लोग शामिल होते हैं. युद्ध से पहले होने वाली मॉक ड्रिल को युद्ध के दौरान आपात स्थिति से निपटने के लिए की जाती है और इसके लिए पहले रिहर्सल की जाती है. युद्ध के दौरान होने वाले मॉक ड्रिल में कमिश्ननरेट, जैसे दिल्ली, गाजियाबाद यहां पर पुलिस के पास 188 की सारी पावर होती है. जबकि बाकी शहरों में ,जहां कमिश्ननरेट नहीं है. वहां डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास पूरे अधिकार रहते हैं. साथ ही युद्ध की संभावना में केंद्रीय एजेंसियां लोकल पुलिस के संपर्क में रहती हैं.

मॉक ड्रिल की स्क्रिप्टिंग

मॉक ड्रिल से पहले होने वाली बैठक में जो तैयारी की जाती हैं. उसकी बाकायदा एक स्क्रिप्टिंग की जाती है कि मॉडल की जानकारी कितने लोगों को देनी है, कब देनी है और क्या बताया जाएगा. कोशिश की जाती है कि मॉक ड्रिल पूरे तरीके से सच में होने वाले युद्ध के दौरान होने वाले बचाव कार्य जैसी हो और कहीं किसी हिस्से में कोई भी कमी हो तो, उसमें सुधार किया जा सके.

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वहीं, ड्रिल के दौरान फुल-स्केल रिस्पॉन्स दिखाना होता है. इसके लिए पुलिस, फायर ब्रिगेड, NDRF, अस्पताल और कभी-कभी आम नागरिकों तक को शामिल किया जाता है. सभी यूनिट्स को एक कोड वर्ड या टाइमलाइन दी जाती है.

क्यों बजाया जाता है सायरन

युद्ध की तैयारियों को लेकर होने वाली मॉक ड्रिल में लोगों को ड्रिल के द्वारा बताया जाता है कि सायरन की आवाज सुनकर उन्हें कैसे रिएक्ट करना है. सायरन की आवाज सुनकर घबराना नहीं है, बल्कि तुरंत आसपास खुद को छिपाना है.

दिल्ली पुलिस को मिला LRAD सिस्टम

मॉक ड्रिल के लिए दिल्ली पुलिस को LRAD सिस्टम दिया गया है. इस सिस्टम की मदद से पुलिस लोगों को एक किलोमीटर से दूर तक एक बार में सतर्क कर सकेगी. LRAD का इस्तेमाल सात मई को दिल्ली में होने वाली मॉक ड्रिल के दौरान किया जाएगा. फिलहाल अधिकारियों को इसकी जानकारी दी जा रही है कि कैसे इनके जरिए मैसेज आगे भेजे जाएंगे.

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