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करियर, बच्चे और एक मक़सद: श्लोका अंबानी ने बताया क्या है उनकी प्रेरणा का राज़

भारत के सबसे प्रभावशाली परिवारों में से एक से संबंध रखने के बावजूद श्लोका मेहता अंबानी ने एक आरामदायक और निजी जिंदगी चुनने के बजाय एक ऐसा रास्ता चुना, जो समाज के लिए कुछ सार्थक कर सके.

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श्लोका अंबानी ने बताया सफलता का राज़ (Photo: Screengrab)
श्लोका अंबानी ने बताया सफलता का राज़ (Photo: Screengrab)

भारत के मशहूर हीरा व्यापारी रसेल मेहता की सबसे छोटी बेटी और उद्योगपति आकाश अंबानी की पत्नी श्लोका मेहता अंबानी (Shloka Mehta Ambani) ने एक दिलचस्प बातचीत में अपनी जिंदगी के कुछ एक्सपीरिएंस शेयर किए हैं. श्लोका एक समाजसेवी, एंटरप्रेन्योर और मां हैं, उन्होंने बताया कि कैसे वो मां होने की ज़िम्मेदारियों और समाज के लिए काम करने के अपने मिशन के बीच संतुलन बनाती हैं. एंटरप्रेन्योर मसूम मीनावाला के पॉडकास्ट पर श्लोका ने बिना लाग-लपेट के अपने मूल्यों, अपने काम और अपने बच्चों के लिए जीने के अपने तरीके पर बात की.

मॉडर्न मां की नई परिभाषा...

'वर्किंग मॉम' शब्द के साथ अक्सर कई उम्मीदें और धारणाएं जुड़ी होती हैं, लेकिन श्लोका ने इसे अपने तरीके से अपनाया है. वे अपने बच्चों से कहती हैं, “जैसे तुम स्कूल जाते हो, वैसे मम्मा को ऑफिस जाना होता है,” उनके लिए ये ज़रूरी है कि बच्चे समझें कि ज़िम्मेदारी और तरक़्क़ी ना तो उम्र से बंधी है, ना ही जेंडर से बंधी होती है.

श्लोका अंबानी का मानना है कि सफलता का मतलब सिर्फ़ ऊंचे पद या बड़े टारगेट्स तक पहुंचना नहीं है, बल्कि मक़सद के साथ काम करना है. उन्होंने कहा, “हर करियर की अपनी अहमियत होती है, अगर आप जिस चीज़ पर काम कर रहे हैं, उस पर यकीन है, तो उसे धीरे-धीरे बनाना भी ठीक है.”

'परफेक्शन नहीं, मक़सद ज़रूरी है...'

श्लोका ने अपनी बचपन की दोस्त मनीति शाह के साथ 2014 में ‘ConnectFor’ की शुरुआत की. ये एक वॉलंटियरिंग प्लेटफ़ॉर्म है, जो लोगों और कॉर्पोरेट्स को देशभर की NGOs से जोड़ता है. अब तक इस प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए लाखों घंटे की वॉलंटियरिंग हो चुकी है और 1,000 से ज़्यादा नॉन-प्रॉफिट संस्थाओं को सहयोग मिला है.

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हालांकि, श्लोका मानती हैं कि यह सिर्फ़ शुरुआत है. उन्होंने कहा, “सरकार की योजनाओं में इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना पहला कदम होता है, लेकिन असली असर मेंटेनेंस, एजुकेशन और सोच में बदलाव से आता है.”

'विरासत नाम नहीं, असर की बात...'

भारत के सबसे प्रभावशाली परिवारों में से एक से संबंध रखने के बावजूद श्लोका ने एक आरामदायक और निजी जिंदगी चुनने के बजाय एक ऐसा रास्ता चुना, जो समाज के लिए कुछ सार्थक कर सके. उन्होंने कहा, “मेरे लिए विरासत वो नहीं है, जो आप वसीयत में छोड़ते हैं, बल्कि वो है जो आप लोगों में छोड़ते हैं. चाहे वो आपका बच्चा हो, कोई वॉलंटियर या कोई सहकर्मी, अगर आपने किसी की सोच को बेहतर बनाने में योगदान दिया है, तो वही सबसे बड़ी विरासत होती है.”

श्लोका ने अपने मजबूत सपोर्ट सिस्टम का भी ज़िक्र किया. उन्होंने अपना सपोर्ट सिस्टम अपने माता-पिता, परिवार और खासकर पति आकाश अंबानी को बताया. उन्होंने कहा, “हमारे काम में जो भरोसा उन्होंने दिखाया है, वही हमें आगे बढ़ाता रहा है. हमारे परिवार सिर्फ़ हमारा साथ नहीं देते, वो हमारे काम पर गर्व करते हैं,”

'जैसी ज़िंदगी, वैसी लीडरशिप...'

श्लोका की कहानी में कोई नाटकीय बदलाव या बड़े-बड़े दावे नहीं हैं, बल्कि यह एक ऐसी ज़िंदगी की कहानी है, जो ईमानदारी और उद्देश्य से जी जा रही है. उनका संदेश साफ है, मां होना, प्रोफेशनल बनना और किसी मक़सद के लिए काम करना, इन तीनों को एक साथ जीना मुमकिन है. आपको बस यह तय करना है कि आपके लिए सबसे ज़रूरी क्या है, और फिर उस पर पूरे यकीन के साथ टिके रहना है.

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जब आज की दुनिया में वर्क-लाइफ़ बैलेंस एक मुश्किल चुनौती लगती है, तब श्लोका अंबानी यह याद दिलाती हैं कि अगर आप इरादे से चलें, मक़सद से जिएं और गर्व के साथ बच्चों की परवरिश करें, तो ये सब कुछ साथ-साथ मुमकिन है.

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