
उद्योगपति रतन टाटा के निधन पर देश गमगीन है. 86 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह चुके रतन टाटा की मेहनत के दम पर टाटा ग्रुप सफलतम कंपनियों में शुमार हो पाई. उनकी दूरदर्शिता और दरियादिली की वजह से उन्होंने अपार सफलता हासिल की.
रतन टाटा 1991 से 2021 तक टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहे. इस दौरान उन्होंने देश के सबसे पुराने कारोबारी घरानों में से एक टाटा ग्रुप को बुलंदियों को पहुंचा. 1868 में स्थापित टाटा ग्रुप की कमान अपने हाथों में लेने से पहले रतन टाटा ने 70 के दशक में टाटा स्टील्स में जमशेदपुर में काम किया था. उन्होंने 1991 में इस ग्रुप की कमान अपने हाथ में ली.
लेखक आर.एम.लाला की किताब जीवन का उद्देश्य में एक जगह बताया गया है कि 1979 में जेआरडी से एक बार पूछा गया था कि अन्य कंपनियों के मुकाबले टाटा ग्रुप का विस्तार (Expansion) कम क्यों है? इस पर जेआरडी ने कहा था कि मैंने कई बार इस बारे में सोचा है. अगर हमने वे रास्ते अपनाए होते जो दूसरी कंपनियों ने अपनाए हैं तो हम भी आज की तुलना में दोगुने बड़े हो गए होते. पर हम अपनी कंपनी को अपने ही तरीके से चलाएंगे.
1991 में जब जेआरडी ने रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी चुना. रतन टाटा ने पूर्ण कार्यभार संभालने के बाद टाटा ग्रुप को बुलंदियों तक पहुंचाने का खाका तैयार कर लिया था. उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि अगर टाटा ग्रुप की किसी भी कंपनी ने कंपनी की नीतियों का पालन नहीं किया तो उस कंपनी को ग्रुप से अलग कर दिया जाएगा.
किताब में ही दावा किया गया है कि टाटा ग्रुप की एक कंपनी फिल्मों में जाना चाहती थी लेकिन यह जानते हुए कि फिल्मों में नैतिकता की कोई जगह नहीं है, टाटा ने उस कंपनी को ग्रुप से अलग कर दिया.

इस किताब में एक बेहद दिलचस्प वाकया है, एक बार टाटा ग्रुप की एक कंपनी के एमडी ने कहा था कि इस बिजनेस में बिना भ्रष्टाचार के काम नहीं चल सकता. लेकिन रतन इससे सहमत नहीं थे. लेकिन छह महीने बाद उसी शख्स ने यह बताया कि उसने टाटा के बताए तरीके पर चलकर अपना मुनाफा बढ़ा लिया है.
लेखक ने 2003 में रतन टाटा को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने रतन टाटा की तारीफ की थी. इस पर जवाब देते हुए रतन टाटा ने भी लेखक को जवाबी चिट्ठी लिखकर बताया था कि कई चीजें हैं, जो टाटा ग्रुप को बाकी कारोबारी घरानों से अलग बनाती हैं.
रतन ने इस चिट्ठी में लिखा है कि इन सालों में मैंने पूरे कोशिश की है कि मैं अपने मार्गदर्शक जेआरडी टाटा के दिखाए गए रास्तों पर चल सकूं. यह साल काफी कठिन रहा, कई समस्याएं आईं. अगर कोई गड़बड़ हो जाती तो सारी जिम्मेदारी मुझ पर आ जाती. मैंने मानव स्वभाव, हिप्पोक्रेसी, सच्ची दोस्ती और सबसे बढ़कर मूल्यों और अखंडता के बारे में बहुत कुछ सीखा है. कई जगह मुझे बलिदान भी देना पड़ा और अपने पारिवारिक जीवन और संबंधियों से दूर होना पड़ा, जिसका मुझे बेहद अफसोस है. लेकिन मैं सोचता हूं कि अगर मुझे इस समुदाय को एक अच्छा और उपभोक्ता हितैषी संगठन बनाने में सफलता मिले तो मुझे इस बलिदान का मूल्य मिल जाएगा.