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जैसा देश, वैसा वेश और वैसी ही बोली... आखिर कैसे हर राज्य की रंगत में रंग जाते हैं पीएम मोदी

ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे के साथ 2019 के एक इंटरव्यू में पीएम मोदी ने बताया कि जब वह 17 साल के थे तो वह अकेले ही एक लंबी यात्रा पर निकल पड़े थे. उन्होंने पूरे देश के लोगों से मिलने की अपनी उत्सुकता के बारे में बात की. वडनगर के रहने वाले पीएम मोदी ने साल 1969 में, महज 17 वर्ष की उम्र में अपना घर छोड़ कर ऐसी यात्रा पर निकल पड़े थे, जिसने बाद में उनमें काफी बदलाव किए.

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पीएम मोदी हर राज्य में उसकी रंगत में रंगे नजर आते हैं.
पीएम मोदी हर राज्य में उसकी रंगत में रंगे नजर आते हैं.

साल था 1998 और मौका था लोकसभा चुनाव का. उस दौरान सत्ता में रहने की आदी रही कांग्रेस का पूरा जोर इस बात पर था कि कैसे भी करके फिर से सत्ता में आया जाए और सरकार बनाई जाए. आईके गुजराल की संयुक्त मोर्चा सरकार गिरने के बाद सोनिया गांधी कांग्रेस की स्टार प्रचारक थीं और अपनी प्लानिंग के तहत वह 138 हेलीपैड और लैंडिंग स्ट्रिप्स पर उतरीं और 1998 चुनाव में अपनी रैली के अंत तक, सोनिया गांधी ने तब 15 मिलियन लोगों को संबोधित किया था. 

जब सोनिया गांधी ने दिए थे हिंदी में भाषण
इस दौरान अपने भाषणों में उन्होंने हर बार स्थानीय बोलियों के मुताबिक लोगों का अभिवादन करते हुए संबोधनों की शुरुआत की और रोमन लिपि में अपने भाषणों के ड्राफ्ट पढ़ते हुए उन्होंने भारी-भरकम उच्चारण वाले शब्दों का प्रयोग करते हुए हिंदी में भाषण दिया.  जब सोनिया गांधी ने इस तरह बोलना शुरू करतीं तो एक विदेशी महिला को इस तरह हिंदी बोलते हुए लोग देखते रह जाते थे. सोनिया गांधी ने इसके लिए काफी प्रयास किए. वह जानती थीं कि अगर उन्हें अपने उस  'इटैलियन फ्रेम' से निकलना है, जिसमें उनके प्रतिद्वंद्वी लगतार ढालने की कोशिश कर रहे हैं तो इसके लिए हिंदी कितनी जरूरी है. 

भाषाओं ने तय की है राज्यों की सीमाएं 
अब 2024 को देखें तो इन 25 वर्षों में, भाषा का खेल पूरी तरह से अलग लेवल पर पहुंच गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी इसमें बड़ी भूमिका निभा रहा है. भारत अनगिनत भाषाओं की भूमि है और इसके लिए कहा जाता है 'कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी'. इसके साथ ही यह देश ऐसा भी है कि जहां राज्यों की सीमाओं का निर्धारण भी भाषाई आधार पर किया गया है. भाषाओं ने इसके इतिहास और राजनीति को भी आकार दिया है, चाहे वह द्रविड़ राज्यों में हिंदी विरोधी आंदोलन हो, असम में बंगाली विरोधी आंदोलन हो या फिर महाराष्ट्र 'मराठा मानुष' आंदोलन रहा हो.

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टूरिस्ट भी इस फैक्ट को अच्छी तरह समझते हैं कि जब वह किसी स्थानीय भाषा में वहां के लोगों की तरह बोलने की कोशिश करते हैं तो इसकी काफी सराहना की जाती है और कभी-कभी इस सरहना का दायरा इतना बड़ा हो सकता है कि आपको किसी घर में आतिथ्य का लाभ मिल सकता है जिसमें स्थानीय स्वाद से भरपूर घर का खाना भी शामिल हो सकता है. 

जब 17 साल की उम्र में पीएम मोदी ने की यात्राएं
ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे के साथ 2019 के एक इंटरव्यू में पीएम मोदी ने बताया कि जब वह 17 साल के थे तो वह अकेले ही एक लंबी यात्रा पर निकल पड़े थे. उन्होंने पूरे देश के लोगों से मिलने की अपनी उत्सुकता के बारे में बात की. वडनगर के रहने वाले पीएम मोदी ने साल 1969 में, महज 17 वर्ष की उम्र में अपना घर छोड़ कर ऐसी यात्रा पर निकल पड़े थे, जिसने बाद में उनमें काफी बदलाव किए.

देश के हर हिस्से को यात्री के नजरिए से देख चुके हैं पीएम मोदी
उन्होंने राजकोट में रामकृष्ण मिशन आश्रम से शुरुआत की और कोलकाता के पास बेलूर मठ तक की यात्रा की. फिर उन्होंने गुवाहाटी की यात्रा की. बाद में वे स्वामी विवेकानन्द द्वारा अल्मोडा में स्थापित एक अन्य आश्रम में पहुंचे. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी पीएम मोदी ने देश के सभी हिस्सों की यात्रा की है, चाहे वह किसी परियोजना का उद्घाटन करना हो, वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाना हो या किसी मंदिर के दर्शन करना हो. भारत के सबसे अधिक यात्रा करने वाले प्रधान मंत्री ने उस पूर्वोत्तर में रिकॉर्ड संख्या में यात्राएं की हैं, जो कि पहले केंद्र की प्रयोरिटी लिस्ट में नहीं रहा. 

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जहां-जहां गए, बोली वहां की भाषा
प्रधान मंत्री के रूप में, मोदी ने लोगों का अभिवादन करते हुए उनकी मूल भाषाओं में कुछ वाक्य बोलकर उनसे जुड़ने की कोशिश की है. केरल के पथानामथिट्टा में पीएम मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत मलयालम में भीड़ को संबोधित करके की. भीड़ के जयकारे लगाते हुए उन्होंने मलयालम में कहा, "पथानामथिट्टा में लोगों का ये उत्साह देखकर मुझे विश्वास है कि केरल में 'कमल' खिलेगा.' पेशे से सीए और बीजेपी सदस्य नरेश धनराज केला ने एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए लिखते हैं कि, "मैं इस बात की प्रशंसा करता हूं कि कैसे नरेंद्र मोदी जी हर राज्य की संस्कृति को पूरे दिल से अपनाते हैं."

AI की मदद से भी ट्रांसलेट हो रहे हैं भाषण
दक्षिण भारत के पांच राज्यों के अपने पांच दिवसीय दौरे के दौरान पीएम मोदी ने स्थानीय भाषाओं में बात करने की कोशिश की. पहले पीएम के भाषणों का अनुवाद ट्रांसलेटर करते थे, लेकिन अब एआई की मदद भी ली जा रही है और सोशल मीडिया उनके उन भाषणों को बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंचाने में सहायक सिद्ध हो रहा है.

प्रधानमंत्री के पांच दिवसीय दौरे के दौरान, भारी भीड़ के बीच हिंदी में दिया गया प्रधानमंत्री के भाषण का एआई सॉफ्टवेयर की मदद से रियल टाइम में तमिल में अनुवाद किया गया. असल में यह प्रयोग पिछले साल दिसंबर में काशी तमिल संगमम में शुरू हुआ था.

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कई अभियानों में किया AI का प्रयोग
इस दौरान पीएम मोदी ने उत्तर-दक्षिण की मिलीजुली भीड़ के सामने कहा 'तमिलनाडु के लोगों से, मैं अनुरोध करता हूं कि वे पहली बार एआई तकनीक का उपयोग करके भाषण सुनने के लिए अपने इयरफ़ोन का उपयोग करें, यह मेरा पहला अनुभव है और भविष्य में इसका और भी प्रयोग करूंगा. अब  हमेशा की तरह, मैं हिंदी में बोलूंगा और एआई इसका तमिल में अनुवाद करेगा,'' दिसंबर 2023 में उन्होंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि एआई के इस्तेमाल से मेरी आवाज को आप सभी तक आसानी से पहुंचने में मदद मिलेगी." और उन्होंने अभियान के दौरान ऐसा किया भी है. 

बीजेपी ने पीएम मोदी के भाषणों को आठ क्षेत्रीय भाषाओं में प्रचारित करने के लिए अलग-अलग सोशल मीडिया हैंडल बनाए हैं. X पर ऐसे पांच हैंडल इस साल फरवरी में बनाए गए थे. सोशल मीडिया हैंडल पर प्रधानमंत्री के भाषण बांग्ला, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, तमिल और तेलुगु में उपलब्ध हैं.

ओडिशा में ओड़िया तो पश्चिम बंगाल में बांग्ला बोले पीएम
5 मार्च को जाजपुर में एक रैली में पीएम मोदी ने उड़िया में कहा, "एति उपस्थिता, समस्त भाई भूनि... मोरा नमस्कार." उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत "जय जन्ननाथ, जय मां बिरजा, जय सिया राम" से की थी. जिस तरह वह हिंदी पट्टी में 'जय सिया राम' कहकर संबोधन की शुरुआत करते हैं, ठीक इसी तरह ओडिशा में उन्होंने 'जय जगन्नाथ' कहकर लोगों का अभिवादन किया और अपने भाषण की शुरुआत की. जहां कुछ मूल निवासी सोशल मीडिया पर पीएम मोदी के उच्चारण का मजाक उड़ाते हैं, वहीं स्थानीय भाषाओं में बोलने के उनके प्रयास की आम तौर पर सराहना की जाती है. टूरिस्ट भी इस बात को समझते हैं कि स्थानीय भाषा में बात करने का प्रयास अधिक मायने रखता है, न कि परिष्कृत करना.

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ओडिया बोलने में नवीन पटनायक को भी छोड़ा पीछे 
लोकल लोग इसकी सराहना करते हैं कि बाहरी लोग उनकी तरह स्थानीय भाषा-बोली में बोलने का प्रयास करते हैं, उनके लिए एक्सपर्ट होना मायने नहीं रखता. एक यूजर ने जाजपुर भाषण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, "मोदी की ओडिया बोली,  नवीन पटनायक की ओडिया से बेहतर है." उन्होंने इसकी तुलना ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से की. उड़िया लोगों के पसंदीदा होते हुए भी नवीन पटनायक को उड़िया में धाराप्रवाह बोलने के लिए संघर्ष करना पड़ा है. एक अन्य व्यक्ति ने मोदी के ओडिया बोलने को मुख्यमंत्री की ओडिया से बेहतर रेटिंग देते हुए कहा, "नवीना थू ता बेहतर ओडिया मोदी कहिला."

एक अन्य व्यक्ति ने टिप्पणी की, "भाई ने संबलपुरी और उड़िया दोनों लहजे में बात की." कई बार पीएम मोदी 'एक राज्य, एक भाषा' के बंधन से भी आगे निकल गए हैं.

पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में वे बांग्ला और नेपाली दोनों बोलते थे. उत्तरी बंगाल हिल स्टेशन में काफी संख्या में नेपाली आबादी रहती है. प्रधान मंत्री ने बंगाली में कहा, "आमार प्रियो मां, भाई, दादा, दीदी एबोंग बोनेडर सादोर नोमोश्कर जनाई," जिसके बाद उन्होंने नेपाली में "मेरो प्यारो अमा बाबा दाज्यू भाई दीदी बैनी सबाई लाई ढेरो ढेरो नमस्कार" भी कहा.

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बहुत सावधानी से करते हैं बोली का चयन
यह सिर्फ भाषा नहीं है. पीएम मोदी जब किसी विशेष क्षेत्र में होते हैं तो बोली का चयन सावधानी से करते हैं. उन्होंने 6 मार्च को बिहार के बेतिया में एक रैली में भोजपुरी में कहा, "महर्षि वाल्मिकी के कर्मभूमि, माता सीता के शरणभूमि और लव कुश के ई भूमि पर, हम सबके प्रणाम करतानी."  भोजपुरी मुख्य रूप से पश्चिमी बिहार के साथ-साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश में बोली जाने वाली बोली है.

यह प्रधानमंत्री द्वारा मैथिली का उपयोग करने के विपरीत है, जो पूर्णिया सहित बिहार के मिथिला क्षेत्र में उपयोग की जाती है. पीएम मोदी ने 2015 में पूर्णिया में परिवर्तन रैली में भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, "सौर नदी के तट पर बसल, पूर्वी और पश्चिमी भारत के जोड़े वाला, पूर्णिया के ई पावन भूमि के नमन करइची." 2015 और 2019 में दक्षिणपूर्वी बिहार के भागलपुर में दो रैलियों को संबोधित करते हुए, पीएम मोदी ने लोगों का अभिवादन करने के लिए स्थानीय बोली अंगिका का भी इस्तेमाल किया.

बोली ही नहीं, पहनावा भी अपनाते हैं पीएम
चाहे वह शॉल हो या टोपी, प्रधानमंत्री लोगों के साथ दृश्य जुड़ाव के लिए स्थानीय पोशाक का भी उपयोग करते हैं. कोई भी विपक्षी नेता स्थानीय लोगों से जुड़ने के लिए किसी क्षेत्र की भाषा या पहनावे का उपयोग करने का इतना ठोस प्रयास नहीं करता है. इसकी तुलना कांग्रेस नेता राहुल गांधी से करें, जिनकी मां ने 1998 में जनता से जुड़ने के लिए स्थानीय बोलियों का इस्तेमाल किया था और हिंदी पर जोर दिया था.

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राहुल गांधी की न्याय यात्रा से नदारद रही स्थानीयता
उनकी भारत जोड़ो यात्रा और बाद में हाल ही में महाराष्ट्र में समाप्त हुई भारत न्याय यात्रा के दौरान, यह पता लगाने का प्रयास करना पड़ा कि राहुल गांधी वास्तव में कहां हैं. इस दौरान न तो उनकी बोली में स्थानीयता की पहचान का लहजा सुनाई दिया और न ही कोई ऐसा दृश्य ही नजर आया. असम में राहुल वैसे ही दिखे और बोले जैसे बिहार में दिखे. एक यात्री और एक पर्यटक के बीच एक बड़ा अंतर है. जहां एक यात्री लोगों की ओर आकर्षित होता है, वहीं एक पर्यटक स्थान की ओर आकर्षित होता है. ऐसे समय में जब लोग बारीकी से जांच करते हैं कि क्या कोई राजनेता अपनी बात पर खरा उतरा है. पीएम मोदी जो कि कई भाषाओं में बात करते हैं इसमें उनके यात्री अतीत की भी बड़ी भूमिका है.

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