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'वन नेशन वन इलेक्शन बिल से संविधान के मूल संरचना को उल्लंघन नहीं', JPC की बैठक में बोले पूर्व CJI खेहर

दिल्ली के संसद भवन एनेक्सी में वन नेशन वन इलेक्शन पर संयुक्त समिति की बैठक हुई. पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर ने कहा कि यह कानून संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करेगा, लेकिन चुनाव आयोग को मिलने वाली अत्यधिक शक्तियों पर चिंता जताई.

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पद्म पुरस्कार से सम्मानित न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर ने संयुक्त संसदीय कमेटी की बैठक में वन नेशन वन इलेक्शन पर अपनी राय रखी (Photo: Wikipedia/ Jagdish_Singh_Khehar)
पद्म पुरस्कार से सम्मानित न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर ने संयुक्त संसदीय कमेटी की बैठक में वन नेशन वन इलेक्शन पर अपनी राय रखी (Photo: Wikipedia/ Jagdish_Singh_Khehar)

दिल्ली के संसद भवन एनेक्सी में आज (शुक्रवार) को वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर संयुक्त समिति की बैठक हुई. पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर, पूर्व न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने समिति के सामने अपना प्रेजेंटेशन दिया. 

पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे.एस. खेहर ने अपनी प्रेजेंटेशन में कहा कि यह कानून अगर लाया जाता है तो यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करेगा.

उनका मानना है कि इस तरह के चुनाव सिद्धांत रूप से संवैधानिक ढांचे के भीतर ही संभव हैं, लेकिन उन्होंने कुछ गंभीर चिंताएं भी जताई हैं, खासतौर से चुनाव आयोग (EC) को मिलने वाली अत्यधिक शक्तियों को लेकर.

जस्टिस खेहर ने कहा कि चुनाव आयोग को अगर अत्यधिक अधिकार दिए जाते हैं, तो इससे लोकतंत्र के संतुलन पर असर पड़ सकता है. चुनाव कराने वाली संस्था को स्वायत्त जरूर होना चाहिए, लेकिन बिना जवाबदेही के बहुत अधिक अधिकार देना खतरे से खाली नहीं है.

यह भी पढ़ें: '4.50 लाख करोड़ बचा सकता है देश...', वन नेशन वन इलेक्शन पर बोले JPC प्रमुख पीपी चौधरी

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उन्होंने सुझाव दिया कि इस विषय पर देशभर में राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए ताकि जनता, विशेषज्ञ और राजनीतिक दल सभी मिलकर राय दे सकें कि यह व्यवस्था कितनी व्यावहारिक और सुरक्षित है. 

वन नेशन वन इलेक्शन क्या है?

वन नेशन वन इलेक्शन यानी एक देश, एक चुनाव का मतलब है कि लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं. अभी भारत में अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, और लोकसभा चुनाव हर 5 साल में अलग से होता है. इससे हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं. इसका असर प्रशासन, सरकारी योजनाओं और विकास कार्यों पर पड़ता है. सरकार चाहती है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाएं ताकि चुनाव पर होने वाले खर्चे को कम किया जा सके.

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