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करगिल युद्ध के 24 साल: 'तुम मत आओ, मैं सब संभाल लूंगा...', जब मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की जांबाजी के आगे देश के दुश्मनों ने टेक दिए थे घुटने

कहानी भारतीय सेना के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की. संदीप उन अधिकारियों में से एक थे, जिन्होंने 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमले में आतंकवादियों से लड़ते-लड़ते देश के लिए अपनी जान गंवा दी. उनकी इस शहादत के लिए मरणोप्रांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया. चलिए जानते हैं मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की शहादत का वो किस्सा...

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मेजर संदीप उन्नीकृष्णन.
मेजर संदीप उन्नीकृष्णन.

तारीख, 12 मार्च 1977... केरल के कोड़िकोड में के. उन्नीकृष्णन और धनलक्ष्मी उन्नीकृष्णन के घर एक लड़के का जन्म हुआ. नाम रखा गया संदीप उन्नीकृष्णन. कुछ साल बाद परिवार कर्नाटक के बेंगलुरु में शिफ्ट हो गया. पिता के. उन्नीकृष्णन इसरो के डायरेक्टर के पर्सनल असिस्टेंट थे. 1981 में संदीप का फ्रैंक एंटनी पब्लिक स्कूल में एडमिशन करवाया गया.

उस समय स्कूल के प्रिंसिपल थे क्रिस्टोफर ब्राउनी. उनके मुताबिक, संदीप न सिर्फ पढ़ाई में बल्कि खेलकूद में भी काफी तेज थे. वो ऑलराउंडर थे. संदीप स्कूल के हाउस कैप्टन थे. सभी छात्र और टीचर्स उन्हें काफी पसंद भी करते थे. ब्राउनी के मुताबिक, संदीप बचपन से ही आर्मी ऑफिसर बनना चाहते थे. इसलिए स्कूल में भी वह कमांडो कट हेयरस्टाइल रखते थे, जो कि सभी सेना के जवान रखते हैं.

1995 में संदीप ने संदीप ने 12वीं की पढ़ाई पूरी की. उस समय वह 18 साल के थे. फिर उन्होंने नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) का पेपर दिया. उसमें वह सिलेक्ट हो गए. जिसके बाद वह पुणे के NDA अकेडमी में आ गए. यहां तीन साल की ट्रेनिंग के बाद वह इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) देहरादून चले गए. फिर एक साल की ट्रेनिंग के बाद यानि 1999 में वह यहां से पास आउट हुए.

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जिसके बाद 22 साल के संदीप भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट (Lieutenant) बन गए. उन्हें 7 बटालियन ऑफ बिहार रेजिमेंट मिला. उस समय जम्मू कश्मीर के करगिल में ऑपरेशन विजय चल रहा था. जुलाई 1999 में संदीप को वहां भेजा गया. उन्होंने वहां पाकिस्तानी सेना को हेवी आर्टिलरी फायरिंग के दौरान अपनी बहादुरी के दम पर मुंहतोड़ जवाब दिया.

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फिर 31 दिसंबर 1999 में उन्हें एक टास्क दिया गया. उनके पास 6 जवानों की टीम थी. उस टीम को लीड करते हुए उन्होंने पाकिस्तान की सेना से लोहा लिया और उन्हें पीछे खदेड़ते हुए वहां से 200 मीटर आगे तक इंडियन आर्मी का पोस्ट बना लिया था. उस समय उनकी बहादुरी देखते हुए सीनियर्स को भी लग गया था कि संदीप सबसे हटकर हैं. उनमें वो जज्बा है जो कि उन्हें एक परफेक्ट इंडियन आर्मी ऑफिसर बनाता है.

फिर आया साल 2003. संदीप लेफ्टिनेंट से प्रमोट होकर कैप्टन बन गए. फिर दो साल बाद जून 2005 में वह मेजर बन गए. फिर वो बेलगाम के कमांडो ट्रेनिंग सेंटर गए. वहां उन्होंने घातक कोर्स की ट्रेनिंग ली. उन्होंने इस कोर्स में टॉप भी किया. इसके बाद यहां से वह गुलमर्ग से भी सेना की कुछ ट्रेनिंग लीं.

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इस तरह उन्होंने सियाचिन, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और गुजरात में अपनी सेवाएं दीं. उनके शानदार सेवाओं को देखते हुए उन्हें नेशनल सिक्योरिटी गार्ड सर्विस दिल्ली में सिलेक्ट कर लिया गया. संदीप फिर दिल्ली आ गए. जनवरी 2007 में संदीप को एनएसजी के स्पेशल एक्शन ग्रुप का ट्रेनिंग ऑफिसर बना दिया गया.

17 दिसंबर 2008 को घर आने वाले थे संदीप

इसी बीच संदीप के पिता रिटायर हो गए. संदीप ने नवंबर 2008 को फोन करके माता-पिता को बताया कि कर्नाटक में उनके एक दोस्त की शादी है. इसलिए वह 17 दिसंबर 2008 में घर आएंगे. उनकी 30 दिसंबर 2008 को वापसी की टिकट भी कन्फर्म थी. घर वाले यह सुनकर काफी खुश हो गए. क्योंकि काफी लंबे समय बाद संदीप घर आ रहे थे.

सब कुछ सही चल रहा था. लेकिन 26 नवंबर 2008 में लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादियों ने मुंबई में हमला कर दिया. मुंबई की आइकॉनिक बिल्डिंग्स को आतंकवादी निशाना बना रहे थे. वहीं, पर फेमस ताज होटल में आतंकवादी घुस गए थे. तभी संदीप को कहा गया कि उन्हें अपनी टीम के साथ फौरन मुंबई पहुंचना होगा.

टीम के साथ मुंबई पहुंचे मेजर संदीप

संदीप भी बिना देर किए देश की रक्षा के लिए तैयार हो गए. वो अपनी टीम के साथ मुंबई पहुंचे. 26 नवंबर 2008 को ही रात साढ़े 11 बजे संदीप ने अपने पिता को फोन किया. बताया कि मुंबई में हालात बहुत खराब हैं. वहां आतंकियों ने होटल ताज पर हमला कर दिया है. आतंकियों के इस हमले में एटीएस चीफ हेमंत करकरे भी शहीद हो गए हैं. लेकिन संदीप ने पिता को यह नहीं बताया कि वो भी यहां ऑपरेशन के लिए आए हैं.

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अगले दिन 27 दिसंबर 2008 को भी अटैक चलता रहा. उस दिन ज्वाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस देवेन भारती के पास पुलिस कंट्रोल रूम से कॉल आया. उन्हें बताया गया कि प्रिया फ्लोरेंस मार्टिस नामक महिला ताज होटल में फंसी हुई है. उनके अलावा और भी कई लोग होटल में फंसे हुए थे. भारती उस समय ताज में एनएसजी के साथ कोऑर्डिनेशन का काम देख रहे थे.

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प्रिया ने अपने अंकल को किया था फोन

भारती के पास यह कॉल सीधे नहीं आई थी बल्कि ताज में गोलीबारी शुरू होने के समय से ही उसके डेटा सेंटर में छिपी प्रिया फ्लोरेंस मार्टिस ने अपने अंकल को फोन किया था, जिन्होंने इसकी सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दी. उनका साथी मनीष सर्वर रूम के एक अन्य हिस्से में छिपा हुआ था. आतंकी हमले के बाद से ही उनके पास खाने-पीने को कुछ नहीं था.

भारती ब्रिगेडियर सिसोदिया के साथ रिसेप्शन तक गए. उन्होंने फ्लोरेंस के दफ्तर के एक्सटेंशन पर डायल किया. दूसरी ओर से एक डरी हुई आवाज सुनाई दी. भारती ने सिसोदिया के सुनने के लिए फोन को स्पीकर पर डाल दिया. सिसोदिया ने पूछा, ''मैम, आप कहां हैं?” प्रिया ऐसे माहौल में पूरी तरह कन्फ्यूज हो चुकी थीं. उन्हें होटल के रास्ते याद नहीं थे. उन्होंने बस इतना ही कहा, ''मैं दूसरी मंजिल पर हूं.”

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सिसोदिया ने उन्हें तसल्ली दी, ''घबराएं नहीं, मेरे कमांडो आपको ले जाएंगे.” फिर उन्होंने प्रिया की बताई जगह को होटल के एक कागज पर लिखा और उसे कर्नल श्योराण को दे दिया.

कर्नल श्योराण ने उन्नीकृष्णन को दिया निर्देश

श्योराण ने मेजर उन्नीकृष्णन को उन्हें लाने के निर्देश दिए. एनएसजी के अफसरों ने उन तक पहुंचने के लिए वैकल्पिक रास्ता निकाला. यह रास्ता हेरिटेज विंग की भव्य सीढ़ियों वाला था. इससे दूसरी मंजिल तक जाने के लिए संदीप ने योजना बनाई. इन रास्तों को अब भी साफ नहीं किया गया था. पिछली रात इसी इलाके में डीसीपी नांग्रे-पाटील के सिपाहियों को आतंकियों की भारी गोलीबारी झेलनी पड़ी थी. संदीप को इस बारे में जानकारी नहीं थी.

मेजर संदीप 28 नवंबर की रात एक बजे सुनील जोधा, मनोज कुमार, बाबूलाल और किशोर कुमार की अपनी टीम को इसी रास्ते लेकर ऊपर की ओर बढ़े. वह शानदार सीढ़ी जो काफी लंबी और सीधी थी, आगे जाकर अंग्रेजी के वाइ अक्षर की तरह दो रास्तों में बंट जाती थी. टीम जैसे ही सीढ़ियों से ऊपर की ओर बढ़ी, अचानक अंधेरे में गोलीबारी हुई. पता चला कि आतंकवादी ऊपर से फायर कर रहे थे.

संदीप ने दो जवानों को बाईं ओर जाने का दिया संकेत

संदीप ने बाबूलाल और सुनील को बाईं ओर जाने का संकेत दिया, जिधर भूरे रंग के विशाल दरवाजे थे जिनसे होकर पाम लाउंज और बॉलरूम तक पहुंचा जा सकता था. उन्हें ग्रेनेड फेंककर पाम लाउंज का रास्ता साफ करना था. दोनों कमांडो चुपचाप हथियार नीचे कर आगे बढ़े. उन्होंने दरवाजे के दोनों ओर पोजिशन संभाल ली. दरवाजे बंद थे.

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आगे बढ़ते रहे मेजर संदीप उन्नीकृष्णन

तभी अचानक अंधेरे में कहीं से एक ग्रेनेड उड़ता हुआ आया. कालीन वाली सीढ़ी पर गिरा और फट गया. ऊपर से एके47 के चलने की आवाज आई. उसकी गोलियों ने सीढ़ियों को छेद दिया था. गोलियां दरवाजे के इर्द-गिर्द दीवारों को भेद गई थीं और दीवारों से पत्थर और चूना झ्ड़ रहा था. टाटा की प्रतिमा को घेरने वाला कांच टूट चुका था. यह छुपकर किया गया हमला था. आतंकियों ने एनएसजी कमांडो के कपड़े देख लिए थे और उन्होंने इनके आने तक इंतजार किया था. वे मजबूत स्थिति में थे. अब यहां मौत का खेल होना बाकी था. मेजर उन्नीकृष्णन अपने दो कमांडो के कवर फायर के बीच आगे बढ़ते रहे.

उसके बाद एक और ग्रेनेड ऊपर की किसी मंजिल से लहराता हुआ आया और ग्रेनाइट के फर्श पर फटा. ग्रेनेड में से निकले करीब 5,000 बॉल बेयरिंग ने सीढ़ियों के इर्द-गिर्द मौत का मंजर रच दिया था. सुनील जोधा की देह को गोलियां और छर्रे पूरी तरह छेद गए थे. वे गिरे और सीढ़ियों से नीचे टाटा की प्रतिमा तक लुढ़कते गए. कवर फायर दे रहे कमांडो ने अपने अदृश्य दुश्मन पर गोलियों की बौछार कर दी. सुनील के शरीर से खून बह रहा था. दो गोलियां उनकी छाती में लगी थीं. एक उनकी बुलेटप्रूफ  जैकेट में लगे सिरेमिक राइफल प्लेट में फंस गई थी. उनका बायां हाथ स्टील के बेयरिंग से चोटिल हो चुका था.

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संदीप भागकर सुनील के पास आए. उनकी देह से रिसता खून देख कर बाबूलाल से उन्होंने कहा, ''इसे फर्स्ट एड के लिए ले जाओ.” और ऐसा कहकर अचानक एक झटके में वे अकेले ऊपर पाम लाउंज तक पहुंच गए. उन्होंने अपने साथियों को कहा, ''ऊपर मत आता. इन सबको मैं संभाल लूंगा.''

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कोई नहीं था संदीप को कवर करने वाला

संदीप ने अपनी एमपी5 लहराते हुए एट्रियम की ओर गोलियों की बौछार कर दी. गोलियां दीवारों को भेद गईं. इसके बाद वे पाम लाउंज में खुलने वाले दूसरे दरवाजों की ओर जाने के लिए सीढ़ियों पर चढ़े. यह एक जोखिम भरा कदम था क्योंकि उन्हें कवर करने के लिए कोई नहीं था. अगर नीचे से उनका संपर्क टूटा तो चूहे-बिल्ली का खेल दोबारा शुरू होने वाला था. उन्होंने तय किया कि उन्हें अचानक हमला करके आतंकवादियों को चौंका देना है. वे इतनी सावधानी से चल रहे थे कि उनके जूतों की आवाज भी नहीं हो रही थी. उन्हें अपने सामने बिखरी हुई विशाल कुर्सियां और टेबल नजर आया.

उन्होंने कारतूस पेटी को टटोला. सिर्फ एक ग्रेनेड बचा था. उन्होंने ग्रेनेड का पिन उखाड़ा और लाउंज में उछाल दिया. ग्रेनेड काफी आवाज के साथ फटा, जिससे खिड़कियां चकनाचूर हो गईं. संदीप इस विस्फोट के बीच भीतर घुस गए. फिर उन्होंने समुद्र की ओर खुलने वाली खिड़कियों की ओर गोलीबारी की. उनके सामने एक भूरे रंग की ग्रिल थी, जो किसी धातु के आवरण की तरह बॉलरूम को ढके हुए थी.

उनके निशाने पर यही बॉलरूम था. गलियारे में काफी तेजी से आगे बढ़ते हुए उन्होंने एमपी5 अपने ठीक सामने ताने रखी. उनकी बाईं ओर छोटी-सी आंगननुमा जगह थी जिसमें दो सोफे और एक गोल आकार का ग्रेनाइट टेबलटॉप रखा हुआ था. अचानक टेबल के नीचे से हमला हुआ और दो आवाजें तकरीबन एक-साथ सुनाई दीं. एक एके-47 की और दूसरी एमपी5 से गोलीबारी की.

अहम रास्तों पर एनएसजी कंमाडो का कब्जा था

कर्नल श्योराण का संदेश ताज की फिजाओं में गूंज रहा था लेकिन उसे सुनने वाला कोई न था. कोई जवाब नहीं आया. एनएसजी ने काफी तेजी से होटल के जल चुके दक्षिणी सिरे को यानी दूसरी मंजिल पर समुद्र की ओर वाले लाउंज को साफ किया. अब होटल के उत्तरी हिस्से में संपर्क के सारे अहम रास्तों पर एनएसजी कमांडो का कब्जा था.

शुक्रवार 28 नवंबर की सुबह तीन बजे तक मेजर कांडवाल की टीम ने ताज टावर की सभी 21 मंजिलों को खाली करवा लिया था. कांडवाल ने टावर मुंबई पुलिस के कब्जे में सौंप दिया. चार घंटे बाद दोनों होटलों में सारे कमरों से संभावित बंधकों को निकाल लिया गया था. अब आतंकियों की तलाश का समय था. लेकिन मेजर उन्नीकृष्णन कहां थे?

श्योराण चौथी मंजिल पर पहुंचे और सीढिय़ों से नीचे उन्होंने एट्रियम में झंककर देखा. एट्रियम के इर्द-गिर्द गलियारे क्षत-विक्षत शवों से भरे पड़े थे. दिक्कत यह थी कि इन लाशों को हटाया नहीं जा सकता था क्योंकि बूबी ट्रैप साफ करने के बाद 'रेंडर सेफ  प्रोसीजर’ पूर्ण होने पर ही एनएसजी ऐसा कर सकती थी. इसके लिए जरूरी था कि इमारतों से आतंकियों का सफाया किया जाए.

कर्नल श्योराण को हो रही थी संदीप की चिंता

श्योराण को हालांकि संदीप की चिंता थी और वे उन्हें ही खोज रहे थे. उन्होंने सबसे पहले पहली मंजिल पर देखा जहां उनकी पहली मुठभेड़ आतंकियों से हुई थी. उसके चार दरवाजे थे. इनमें एक दरवाजा खुला था, जो टाटा की प्रतिमा की तिर्यक दिशा में था. यह होटल के भीतर ले जाता था. संदीप उल्टी दिशा में आतंकियों की तलाश में गए थे.

सवेरे साढ़े छह बजे एक आवासीय भवन की छत पर तैनात जसरोटिया के रेडियो में अचानक हरकत हुई, ''सिएरा सिक्स, दिस इज सिएरा वन, कम टु ऑपरेशन सेंटर. ओवर.” श्योराण को लापता मेजर की तलाश के लिए और लोगों की जरूरत थी. टीम का आकार छोटा कर दिया गया था. जसरोटिया को दो हिट टीमें दी गईं और पहली मंजिल पर संदीप को तलाशने का काम दिया गया. उन्हें तलाशी किचन वाले इलाके से शुरू करनी थी, जहां एक नए आए अधिकारी मेजर जॉन तैनात थे. श्योराण के अधिकारी लगातार संदीप के मोबाइल पर डायल कर रहे थे. लेकिन वह स्विच ऑफ  था.

हो चुकी थी मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की मौत

करीब साढ़े नौ बजे मेजर कांडवाल और मेजर जसरोटिया ने उन्नी के कदमों के निशान देखते हुए उस ओर चलना शुरू किया. वे एक जोड़ी की तरह आगे बढ़ते रहे. जसरोटिया ने अपनी एमपी5 सामने की ओर तान रखी थी. कांडवाल पीछे का हिस्सा कवर करते हुए अपनी एमपी5 ऊपर ताने हुए थे. अचानक फर्श पर एक काली आकृति पड़ी हुई दिखाई दी. वो संदीप थे. उसकी बाईं टांग दाईं के नीचे मुड़ी हुई थी. दायां बाजू फैला हुआ था और बायां छाती पर था. देह गोलियों से छलनी थी. उनकी लाश जम चुके खून के ढेर में पड़ी हुई थी. सारी गोलियां बाईं ओर से मारी गई थीं. जिस गोली से वह शहीद हुए थे, वह निचले जबड़े से घुसी और सिर को चीरती हुई ऊपर निकल गई थी. वॉकी-टॉकी सिर से दो फुट दूर बिल्कुल दुरुस्त पड़ा था और स्विच ऑफ था. उनके अंगूठे से एक ग्रेनेड की पिन की रिंग लटक रही थी.

यह पता चलने में ज्यादा देर नहीं लगी कि आखिर क्या हुआ होगा. आतंकवादी मूर्ति के पीछे टेबल और सोफे के नीचे छिपे थे. कॉरिडोर में आगे बढ़ते हुए उन्नी को उन्होंने निशाना बनाया था. संदीप को एके-47 की गोलियां लगी थीं. आतंकी उनका हथियार लेकर होटल के उत्तरी हिस्से में निकल लिए थे. ऐसा नहीं कि संदीप ने उन्हें जवाब नहीं दिया. उन्होंने अपने हमलावरों पर खूब गोलीबारी की थी जिसका पता इस बात से लगता है कि संदीप की एमपी5 की गोलियां दीवारों और लकड़ी की जाली में धंसी थीं. वहीं, एक आतंकी का खून में सना जूता छूट गया था. बॉलरूम की ओर बढ़ते हुए खून के निशान बता रहे थे कि संदीप ने भागते आतंकी को जख्मी कर डाला था.

इस हमले में मारे गए पहले एनएसजी अफसर थे संदीप

मेजर संदीप उन्नीकृष्णन इस हमले में मारे गए एनएसजी के पहले अफसर थे. मेजर उन्नीकृष्णन के आखिरी हमले की वजह से आतंकी ताज के उत्तरी हिस्से में रेस्त्रां की ओर जाने को मजबूर हुए थे. उससे आगे वे नहीं जा सकते थे. श्योराण ने तय किया कि संदीप की शहादत को बेकार नहीं जाने देंगे. उन्होंने उत्तरी हिस्से को कवर करने के लिए अपने स्नाइपर लगा दिए. इसके बाद श्योराण ने अपनी टीम को बॉलरूम में घुसने का निर्देश दे दिया.

कमांडो जब उसमें घुसे तो वहां अंधेरा था. उन्होंने काफी सावधानी से खिड़कियों के परदे फाड़ने शुरू किए और कमरे की तलाशी लेने लगे. इस तलाशी में करीब पांच घंटे लगे. बॉलरूम अब साफ  था.

इस तरह प्रिया को ढूंढ निकाला गया

इस दौरान डेटा सेंटर में फंसी प्रिया फ्लोरेंस मार्टिस अपने फोन पर मित्रों और परिजनों से संपर्क में थीं. अपने कमरे में काली आकृति को आता देख वे डर गई थीं. उन्हें बंदूक की नली दिखाई दी. उन्हें यह तो नहीं पता था कि यह व्यक्ति कौन है, लेकिन वह कुछ तलाश रहा था, इतना उन्हें समझ में आया. वह कुछ देर कमरे का चक्कर लगाकर निकल लिया. वे अपने कोने में भूखी-प्यासी और थकी दुबकी रहीं. वह आकृति कर्नल श्योराण की थी. वे वापस होटल की लॉबी में नीचे आए और उन्होंने नंबर मिलाया. प्रिया ने जवाब दिया, ''जब आप मेरे कमरे में आएं तो मेरा नाम पुकारें, वरना मैं बाहर नहीं आऊंगी.”

श्योराण दोबारा चुपचाप दूसरी मंजिल पर स्थित डेटा सेंटर में पहुंचे. दरवाजा खुला था. भीतर किसी के होने का संकेत नहीं था. वे चारों ओर देखकर बोले, ''फ्लोरेंस हम आपको बचाने आए हैं”. प्रिया फ्लोरेंस एक छोटी-सी टेबल के नीचे पिछले 36 घंटे से दुबकी हुई थीं. वे चल भी नहीं पा रही थीं. श्योराण ने उनकी मदद की, लेकिन उन्होंने वहां से निकलने से इनकार कर दिया. वे बोलीं, ''प्लीज मनीष को बचा लो. मैं उसके बगैर नहीं जाऊंगी.”

उन्हीं के विभाग में उनका सहकर्मी रहा मनीष गोलियों से कांच का दरवाजा चकनाचूर होने के बाद से ही सर्वर रूम में था. श्योराण उसकी तलाश में गए, लेकिन वहां कोई नहीं था. श्योराण वापस कमरे में गए. उनका धैर्य जवाब दे रहा था. अचानक उन्हें फर्श पर कुछ हरकत होती दिखी. फ्लोरबोर्ड हिल रहा था. श्योराण ने धीरे से पैनल को उठाया और उन्होंने जो देखा,उसे देख चौंक गए. मनीष फ्लोरबोर्ड के नीचे उस जगह पर छिपे हुए थे, जहां तारों को छिपाया जाता है. वे काफी थके हुए और सदमे में थे.

14 बंधकों की जान बचाई गई थी इस हमले में

दो कमांडो ने उन्हें बड़ी मुश्किल से निकाला और खड़े होने में मदद की. एक घंटे बाद फ्लोरेंस, मनीष और बचाए गए पांच सैलानियों को नीचे सुरक्षित लाया गया. बता दें, इस आतंकी हमले में 14 बंधकों की जान बचाई गई थी.

उधर मेजर संदीप के माता-पिता को भनक भी नहीं थी कि उनका बेटा यहां मारा गया है. जैसे ही उन्हें सेना की तरफ से यह सूचना दी गई तो वे बेसुध हो गए. उन्हें पता ही नहीं था कि उनका बेटा मुंबई में था और उसके साथ यह सब हो गया.

संदीप को श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों की तादाद में उमड़ी भीड़

जब उनका पार्थिव शरीर बेंगलुरु लाया गया तो हजारों की तादाद में भीड़ मेजर संदीप को श्रद्धांजलि देने के लिए उमड़ पड़ी. सभी की आंखों में आंसू थे.  इसके बाद उनका सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. संदीप की शहादत के लिए उन्हें मरणोप्रांत अशोक चक्र से भी सम्मानित किया गया. बेंगुलरु की एक सोसायटी और एक रोड का नाम भी संदीप उन्नीकृष्णन के नाम पर रखा गया है. इस तरह संदीप ने लोगों की जान बचाते हुए अपनी जान गंवा दी. संदीप के पिता ने बताया कि वह हमेशा से यही कहते थे कि मेरी जब मौत होगी तो वो कोई आम मौत नहीं होगी. मेरी मौत को पूरा देश याद रखेगा. और सच में हुआ भी ऐसा ही.

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