अल्मोड़ा राजमार्ग पर उत्तरवाहिनी नदी के तट पर स्थित है पवित्र तीर्थस्थल कैंची धाम. भारत के महान एवं रहस्यवादी संत नीम करौली बाबा की स्थली होने के कारण यह स्थल आध्यात्मिक मान्यता का भी केंद्र बिंदु रहा है. 15 जून को कैंची धाम के स्थापना दिवस पर मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें करीब 1 से 2 लाख श्रद्धालु बाबा के दर्शन को मंदिर में आते हैं. इनमें सबसे ज्यादा विदेशी भक्त बाबा के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. ये विदेशी श्रद्धालु कनाडा, यूएस, जर्मनी और फ्रांस से भी आते हैं.
स्थापना दिवस पर भंडारा आयोजित
हर साल की तरह इस साल भी कैंची धाम में 15 जून 2023 को प्रसिद्ध भंडारे का आयोजन किया जाएगा. मंदिर प्रबंधन ने तैयारियां शुरू कर दी हैं और देश भर से बाबा के भक्त अभी से मंदिर प्रांगण पहुंचने लगे हैं. अनुमान है कि यहां लगभग 2 लाख से ज्यादा लोग प्रसाद ग्रहण करेंगे. कहते हैं कि भोजन ग्रहण करने वालों कि संख्या अधिक होने पर भी कभी भोजन की कमी यहां नहीं होती क्योंकि इस दिन नीम करौली बाबा (Maharajji) स्वयं इस भंडारे की देख-रेख करते हैं और किसी भी चीज की कमी नहीं होने देते.

प्रतिष्ठा दिवस के रूप में मनाया जाता है 15 जून
कैंची धाम आश्रम में हनुमानजी और अन्य मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा 15 जून को अलग-अलग वर्षों में की गई थी. इस तरह से 15 जून को प्रतिवर्ष प्रतिष्ठा दिवस के रूप में मनाया जाता है. नीम करोली बाबा (Maharajji) ने खुद भी कैंची धाम का प्रतिष्ठा दिवस 15 जून को तय किया था. नीम करौली बाबा (Maharajji) ने 10 सितंबर 1973 को महासमाधि ली थी और भौतिक शरीर को छोड़ा था. उनके अस्थि कलश को कैंची धाम में स्थापित किया गया था. और इस तरह बाबा के मंदिर का निर्माण कार्य 1974 में शुरू हुआ.
ऐसे शुरू हुआ था मंदिर का निर्माण कार्य
निर्माण कार्य में लगे कारीगरों/श्रमिकों और स्वयंसेवकों ने स्नान कर और स्वच्छ कपड़े पहन कर ही कार्य शुरू किया और हनुमान चालीसा के पाठ और "महाराज की जय" का उद्घोष किया. वहां मौजूद बाबा के भक्तों ने भी हनुमान चालीसा पाठ तथा श्री राम-जय राम-जय जय राम नाम का कीर्तन किया था. माताओं ने ईंटों पर "राम" लिखकर उन्हें श्रमिकों के पास भेजा. उस समय पूरा वातावरण "बाबा नीम करौली महाराज की जय" के जप से गूंज उठा था. कहते हैं भक्तों की भावना से अभिभूत हो कर और बाबा की कृपा से इन सभी कार्यकर्ताओं पर विश्वकर्मा (देवताओं के वास्तुकार) की विशेष कृपा हुई और उन्होंने कुशलता से अपना कार्य पूर्ण किया.

कोई भी मुराद मांगने वाला खाली हाथ नहीं लौटता
15 जून 1976 को महाराजजी की मूर्ति की स्थापना और अभिषेक का दिन था. स्थापना और अभिषेक समारोह से पहले भागवत सप्ताह और यज्ञ का आयोजन किया गया. भक्तों ने कलश स्थापित किया और घंटियों तथा शंखनाद के साथ मंदिर पर ध्वज फहराया गया. उस समय सभी ने नीम करौली बाबा की भौतिक उपस्थिति को महसूस किया. फिर वैदिक मंत्रोचार के साथ विशिष्ट विधि से बाबा की मूर्ति की स्थापना हुई और नीम करौली बाबा (Maharajji) कैंची धाम में गुरुमूर्ति रूप में विराजित हुए. बाबा नीम करौली को भगवान हनुमान जी का अवतार माना जाता है. यह एक ऐसी जगह है जहां कोई भी मुराद लेकर जाए तो वह खाली हाथ नहीं लौटता.
नीम कारोली बाबा के चमत्कार
रिचर्ड एलपर्ट रामदास ने नीम करौली बाबा के चमत्कारों पर 'मिरेकल ऑफ लव' नामक एक किताब लिखी है. इसी में 'बुलेटप्रूफ कंबल' नाम से एक घटना का जिक्र है. बाबा हमेशा कंबल ही ओढ़ा करते थे. आज भी लोग जब उनके मंदिर जाते हैं तो उन्हें कंबल भेंट करते हैं. केवल आम आदमी ही नहीं अरबपति-खरबपति भी बाबा के भक्तों में शामिल हैं. पीएम मोदी और हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्ट्स, एप्पल के फाउंडर स्टीव जाब्स और फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग जैसी हस्तियां भी बाबा के भक्त हैं.

जब भंडारे में पड़ी घी की कमी
कहा जाता है कि कैंची धाम में एक बार भंडारे के दौरान घी की कमी पड़ गई थी. बाबा ने कहा कि नीचे बहती नदी से कनस्तर में पानी भरकर लाएं. उसे प्रसाद बनाने हेतु जब उपयोग में लाया गया तो वह पानी घी में बदल गया. वहीं एक बार बाबा नीम करौली महाराज ने अपने भक्त को गर्मी की तपती धूप में बचाने के लिए उसे बादल की छतरी बनाकर, उसे उसकी मंजिल तक पहुंचाया.
...जब गर्म तेल में जल गया हाथ
बाबा के चमत्कार यहां कई बार देखने को मिले हैं. एक बार मंदिर में काम करते समय एक व्यक्ति का हाथ गर्म तेल की कढ़ाई में चला गया जिससे व्यक्ति का हाथ पूरी तरह जल गया हाथ में केवल हड्डियां ही हड्डियां बची किसी ने घटना की बात बाबा को बताई. बाबा ने उस व्यक्ति को अपने पास बुलाया और उस व्यक्ति के हाथ पर कंबल फेरा, कंबल फेरते ही व्यक्ति का हाथ पहले की तरह हो गया.
योगी का हुआ अपमान तो रुक गई ट्रेन
बात बहुत पुरानी है. अपनी मस्ती में एक युवा योगी लक्ष्मण दास हाथ में चिमटा और कमंडल लिए फरुर्खाबाद (उ.प्र.) से टूण्डला जा रही रेल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में चढ़ गया. गाड़ी कुछ दूर ही चली थी कि एक एंग्लो इण्डियन टिकट निरीक्षक वहां आया. योगी ने बहुत कम कपड़े पहने थे. उसने अस्त-व्यस्त बाल वाले बिना टिकट योगी को देखा तो क्रोधित होकर अपशब्द बोलने लगा. योगी अपनी मस्ती में चूर था अतः वह चुप रहा.
कुछ देर बाद गाड़ी नीब करौरी नामक छोटे स्टेशन पर रुकी. टिकट निरीक्षक ने उसे अपमानित करते हुए उतार दिया. योगी ने वहीं अपना चिमटा गाड़ दिया और शान्त भाव से बैठ गया. गार्ड ने झण्डी हिलाई पर गाड़ी बढ़ी ही नहीं. पूरी भाप देने पर पहिये अपने स्थान पर ही घूम गये. इंजन की जांच की गयी, तो वह एकदम ठीक था. अब तो चालक, गार्ड और टिकट निरीक्षक के माथे पर पसीना आ गया. कुछ यात्रियों ने टिकट निरीक्षक से कहा कि बाबा को चढ़ा लो, तब शायद गाड़ी चल पड़े.
इसके बाद टीसी ने बाबा से क्षमा मांगी और गाड़ी में बैठने का अनुरोध किया. बाबा बोले चलो तुम कहते हो, तो बैठ जाते हैं. उनके बैठते ही गाड़ी चल दी. इस घटना से वह योगी और नीबकरौरी गांव प्रसिद्ध हो गया. बाबा आगे चलकर कई साल तक उस गांव में रहे और नीम करौरी बाबा या बाबा नीम करौली के नाम से विख्यात हुए.

जब एक भक्त को लगा भूत का डर
एक बार स्थानीय निवासी धर्मानंद तिवारी नैनीताल से कहीं लौट रहे थे, जिसमें उनको रास्ते में काफी देर हो गई और उनको रास्ते में भूत का डर लगने लगा तभी एक व्यक्ति कंबल ओढ़े धर्मानंद को मिला और उसने बोला बेटा अभी तुमको गाड़ी मिल जाएगी और कुछ देर धर्मानंद को गाड़ी मिल भी गई जिसके बाद धर्मनंद ने बाबा से पूछा बाबा आप कौन हैं और अब कब दर्शन देंगे. इतना कहकर बाबा 20 साल बाद मिलने की बात कहकर वहां से ओझल हो गए. इसके बाद 20 साल बाद बाबा ने तिवारी को दर्शन दिये और 20 साल पुरानी बात बताकर इस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराने को कहा,जिसके बाद 15 जून को बाबा के मन्दिर का निर्माण कराया गया.
बाबा का प्रभाव इतना था कि जब वे कहीं मंदिर-स्थापना या भंडारे आदि का आयोजन करते थे, तो न जाने कहां से दान और सहयोग देने वाले उमड़ पड़ते थे और वह कार्य ठीक से संपन्न हो जाता था. ऐसी कई घटनाएं हैं जो बाबा ने भक्तों के लिए की और इसीलिए भक्त चमत्कारी बाबा नीम करोली के दर्शनो के लिए हर साल मंदिर में आते हैं.
बाबा ने ही दिया था एप्पल का लोगो!
एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स भी बाबा के दर्शन के लिए यहां आ चुके हैं. एप्पल के उत्पादों में जो लोगो है वह भी बाबा के द्वारा ही दिया गया है. बताते हैं कि बाबा ने स्टीव जॉब्स को अपने मुंह से कटा हुआ सेब दिया था जिसको प्रेरणा मानते हुए स्टीव जॉब्स ने अपना लोगो बनाया और स्टीव जॉब्स को उसके बाद सफलता ही सफलता मिली.
पीएम मोदी और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा भी हैं भक्तों में शामिल
वहीं बाबा के भक्तों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा का नाम भी शामिल है. बताया जाता है कि ओबामा के चुनाव से पहले अमेरिका से एक दल मंदिर आया था और उन्होंने ओबामा की जीत के लिए हनुमान चालीसा का पाठ किया था. बाबा का असली नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था तथा उनका जन्म अकबरपुर (उ.प्र.) में हुआ था. बाबा ने अपना मुख्य आश्रम नैनीताल (उत्तरांचल) की सुरम्य घाटी में कैंची ग्राम में बनाया. यहां बनी रामकुटी में वे प्रायः एक काला कम्बल ओढ़े भक्तों से मिलते थे.
बाबा ने खुद कर लिया था अपने समाधि स्थल का चयन
बाबा ने देश भर में 12 प्रमुख मंदिर बनवाए. उनके देहांत के बाद भी भक्तों ने 9 मंदिर बनवाए हैं. इनमें मुख्यतः हनुमान जी की प्रतिमा है. जब बाबा को लगा कि उन्हें शरीर छोड़ देना चाहिये, तो उन्होंने भक्तों को इसका संकेत कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने अपने समाधि स्थल का भी चयन कर लिया था. 9 सितम्बर, 1973 को वे आगरा के लिये चले. वे एक कापी पर हर दिन रामनाम लिखते थे. जाते समय उन्होंने वह कापी आश्रम की प्रमुख श्रीमां को सौंप दी और कहा कि अब तुम ही इसमें लिखना. उन्होंने अपना थर्मस भी रेल से बाहर फेंक दिया. गंगाजली यह कह कर रिक्शा वाले को दे दी कि किसी वस्तु से मोह नहीं करना चाहिये.

कई स्थानों पर है बाबा की समाधि
आगरा से बाबा मथुरा की गाड़ी में बैठे. मथुरा उतरते ही वे अचेत हो गये. लोगों ने शीघ्रता से उन्हें रामकृष्ण मिशन अस्पताल, वृन्दावन में पहुंचाया, जहां 10 सितंबर, 1973 (अनन्त चतुर्दशी) की रात्रि में उन्होंने देह त्याग दी. बाबा की समाधि वृन्दावन में तो है ही पर कैंची, नीम करौली, वीरापुरम (चेन्नई) और लखनऊ में भी उनके अस्थि कलशों को भू समाधि दी गई. उनके लाखों देशी एवं विदेशी भक्त हर दिन इन मंदिरों एवं समाधि स्थलों पर जाकर बाबा जी का अदृश्य आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
कैंची धाम में मालपुआ (प्रसाद) बनाना शुरू, स्थापना दिवस पर होगा वितरण
कैंची धाम में बाबा नीम करौली महाराज के मंदिर में 15 जून को स्थापना दिवस को लेकर सोमवार से मालपुओं का प्रसाद बनना शुरू हो गया है. मथुरा से आए कारीगरों ने प्रसाद बनाने का काम शुरू कर दिया है. 15 जून को कैंची धाम के मेले में भक्तों को मालपुआ देने की प्रथा वर्षों से चली आ रही है. आटा, घी, गुड़, सौंफ और कालीमिर्च से बनने वाले मालपुए को प्रसाद के रूप में बांटने की इच्छा स्वयं नीम करौली महाराज जी की ही थी.
मंदिर में हनुमान चालीसा का पाठ जारी
कैंची धाम मंदिर समिति के प्रबंधक के अनुसार पहली बार जब 15 जून को मंदिर का स्थापना दिवस मनाया गया था, तब बाबा की आज्ञा के अनुसार मालपुआ ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया गया था और उसके बाद से आज तक मालपुआ ही प्रसाद के रूप में दिया जाता है. वहीं मंदिर में बाबा के भक्तों की ओर से हनुमान चालीसा का पाठ लगातार जारी है. 14 जून को मंदिर में अखंड रामायण का पाठ किया जा रहा है और 15 जून की सुबह पूजा-अर्चना के बाद बाबा नीम करौली महाराज को भोग लगाने के साथ श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया जाएगा. जिला और पुलिस प्रशासन की ओर से मेले को सफल बनाने के लिए पार्किंग, यातायात व्यवस्था, पेयजल, बिजली और शौचालय को लेकर तैयारियां शुरू कर दी है. इसे लेकर पुलिस की ओर से कैंची और भवाली में जगह-जगह पार्किंग की व्यवस्था की गई है.