
'मैं सही समय पर रिटायर होऊंगा, 2027 में, अगर भगवान ने चाहा तो!', ये लाइन जगदीप धनखड़ ने 12 दिनों पहले दिल्ली में स्थित जेएनयू यूनिवर्सिटी में एक प्रोग्राम में बोला था. हालांकि, सोमवार (21 जुलाई) को उन्होंने उपराष्ट्रपति के तौर पर इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया. संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन उन्होंने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दिया. उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दिया है.
विपक्ष जो जगदीप धनखड़ की ज्यादातर समय आलोचना किया करते थे और उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव तक लाया था, इस फैसले से चौंक गए. विपक्षी दलों का कहना है कि मामला कुछ और है, जो साफ नजर नहीं आ रहा.
ना बयान, ना बधाई — BJP भी चुप
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद न तो सरकार की ओर से और न ही उपराष्ट्रपति के ऑफिस के तरफ से कोई आधिकारिक बयान जारी किया गया. इससे राजनीतिक हलकों में अटकलों का दौर शुरू हो गया.
बीजेपी के मंत्रियों की ओर से भी कुछ विशेष नहीं कहा गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो धनखड़ को कभी 'किसान पुत्र' और 'प्रेरणादायक नेता' कहे थे, उन्होंने इस्तीफे के 15 घंटे बाद इसे लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स ट्वीट किया.

बीमारी की बात, लेकिन वक्त पर सवाल
ये सही है कि जगदीप धनखड़ बीते कुछ समय से बीमार चल रहे थे और हाल में ही हृदय संबंधी समस्याओं का इलाज करवाया था. मानसून सत्र के पहले दिन ही उनके इस्तीफे न सबको चौंका दिया. एक विपक्षी दल के नेता ने तो कहा कि जब इस्तीफा ही देना था तो सत्र शुरू होने के पहले ही दे देते.
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सोमवार शाम 4 बजे उपराष्ट्रपति सचिवालय द्वारा जारी प्रेस रिलीज में कहा गया कि इस सप्ताह वे जयपुर जाने वाले हैं — जिससे रहस्य और गहरा गया.
आइए जानते हैं अचानक इस्तीफा क्यों? जगदीप धनखड़ के फैसले के पीछे की 3 चर्चित थ्योरीज
क्या बिहार चुनाव के लिए रास्ता बना रहे हैं?
बिहार में इस साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस चुनाव में अपना पैर पसारना चाहती है. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति बनाए जाने का रास्ता साफ़ हो गया है.
बीजेपी इस बार बिहार में ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश में है. ऐसे में नीतीश को उपराष्ट्रपति बना देना एक राजनीतिक रणनीति हो सकती है, ताकि उन्हें साथ बनाए रखा जा सके.
बीजेपी विधायक हरिभूषण ठाकुर ने भी इस अटकल को हवा दी. उन्होंने कहा, 'अगर नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति बनाया जाए तो यह बिहार के लिए बहुत अच्छा होगा.'

मंगलवार को धनखड़ ने राज्यसभा की अध्यक्षता नहीं की. उनके स्थान पर जेडीयू के हरिवंश नारायण सिंह, जो 2020 से राज्यसभा के उपसभापति हैं, कार्यवाही की अध्यक्षता करेंगे.
बिहार के एक नेता का उच्च सदन की कार्यवाही को चलाना एनडीए के लिए चुनावी नजरिये से फायदेमंद हो सकता है.
क्या अपमान था असली कारण?
एक और थ्योरी यह है कि सोमवार को मानसून सत्र के पहले दिन जो घटनाएं घटीं, वह धनखड़ के इस्तीफे का कारण हो सकती हैं.
धनखड़ ने एक नोटिस को स्वीकार किया था जिसमें 68 विपक्षी सांसदों ने जज यशवंत वर्मा को हटाने की मांग की थी. यह उस वक्त हुआ जब सरकार लोकसभा में एक अहम प्रस्ताव ला रही थी. इससे सरकार को 'क्रेडिट' लेने का मौका नहीं मिला.
इसके बाद राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमिटी (BAC) की एक महत्वपूर्ण बैठक में बीजेपी के दो वरिष्ठ मंत्री — जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू — शामिल नहीं हुए. यह बैठक संसद की कार्यसूची तय करने के लिए अहम मानी जाती है.
जेपी नड्डा ने कहा कि दोनों मंत्री पहले से व्यस्त थे और उन्होंने धनखड़ को सूचित कर दिया था. कांग्रेस ने नड्डा की एक टिप्पणी को भी 'अपमान' बताया. विपक्ष के हंगामे के बीच नड्डा को यह कहते सुना गया, 'रिकॉर्ड पर सिर्फ वही आएगा जो मैं बोलूंगा.'
नड्डा ने कहा कि यह बात उन्होंने विपक्षी सांसदों को लेकर कही थी, न कि उपराष्ट्रपति को.
न्यायपालिका से लगातार टकराव भी एक वजह?
एक और थ्योरी यह है कि धनखड़ के लगातार न्यायपालिका के खिलाफ तीखे बयानों से सरकार असहज हो गई थी.
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) कानून रद्द किए जाने की निंदा करते हुए यायपालिका द्वारा संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन का आरोप लगाया था.
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उनके बयानों को अक्सर सरकार का रुख माना जाता था, जिससे सरकार आलोचना के घेरे में आ जाती थी.
हालांकि, थ्योरीज जो भी हो लेकिन ये भी संभव हो सकता है कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के पीछे वास्तव में स्वास्थ्य कारण हो सकता है.