भारत की विदेश नीति अब 'नॉन अलाइंड' से 'ऑल अलाइंड' हो चुकी है, जिसके तहत वह रूस से एस-400 और अमेरिका से प्रीडिक्टर ड्रोन खरीदता है. देश ईरान और इजरायल दोनों से संबंध बनाए रखता है, साथ ही किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करता. भारत वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति मजबूती से रखता है.
ईरान-इजरायल की जंग में बम गिर रहे हैं. मिसाइलें आग उगल रही हैं. फाइटर प्लेन कहर बरपा रहे हैं. ड्रोन का डर साये की तरह मंडरा रहा है लेकिन जंग के इस मैदान से करीब हजार किलोमीटर दूर दिल्ली में सियासी बम ने असर दिखाना शुरु कर दिया है. कांग्रेस नेता सोनिया गांधी अब ईरान-इजरायल के बीच चल रहे युद्ध पर खुलकर सामने आ गई हैं. एक लेख में सोनिया ने ईरान- इजरायल युद्घ पर खुलकर ईरान का समर्थन करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी की चुुप्पी पर निशाना साधा है.
सोनिया गांधी ने कहा, ईरान भारत का पुराना दोस्त रहा है और ऐसे हालात में भारत की चुप्पी परेशान करने वाली है. गाजा में हो रही तबाही और ईरान में हो रहे हमलों को लेकर भारत को स्पष्ट, जिम्मेदार और मजबूत आवाज में बोलना चाहिए. अभी देर नहीं हुई है. ईरान भारत का पुराना दोस्त रहा है, और दोनों सभ्यताओं के बीच गहरा जुड़ाव है. ईरान ने कई मौकों पर भारत का साथ दिया है. 1994 में ईरान ने संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव ब्लॉक करने में मदद की थी, जिसमें जम्मू-कश्मीर के मसले पर भारत की आलोचना की गई थी.
उन्होंने कहा कि भारत टू स्टेट समाधान का समर्थक रहा है. इजरायल खुद परमाणु शक्ति है, लेकिन ईरान को परमाणु हथियार न होने पर भी टारगेट किया जा रहा है. ये इजरायल का दोहरा मापदंड है. उन्होंने यह भी कहा कि ईरान भारत का पुराना दोस्त रहा है और ऐसे हालात में भारत की चुप्पी परेशान करने वाली है.
ऐसा नहीं कि मोदी सरकार इस अंतरराष्ट्रीय मामले से बेखकर है. 13 जून को जब इजरायल ने ईरान पर हमला किया था तभी मोदी सरकार ने संयमित प्रतिक्रिया दिया था. ईरान पर हमले के दिन ही इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की थी. इसकी जानकारी खुद पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पर दी थी. पीएम मोदी ने लिखा, मुझे इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का फोन आया. उन्होंने मुझे मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी दी. मैंने भारत की चिंताओं को साझा किया और क्षेत्र में शांति और स्थिरता की शीघ्र बहाली की आवश्यकता पर जोर दिया.
प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति में संतुलन, सामर्थ्य और रणनीति का अनोखा मेल दिखाई देता है. मोदी की कूटनीति नारे से नहीं, निर्णायक निर्णयों और वैश्विक मंचों पर भारत की दमदार उपस्थिति से पहचानी जाती है. मौजूदा सरकार फालतू की बयानबाजी से बचती है. जहां जितना जरूरत होता है उतना ही बयान देती है और अपनी कूटनीति को आगे बढ़ाती है. इसका उदाहरण शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ के उस बयान में साफ दिखा जब भारत ने ईरान पर इजरायली हवाई हमलों की निंदा करने वाले प्रस्ताव से खुद को अलग कर लिया. रूस और चीन की लीडरशिप वाले संगठन एससीओ ने 13 जून को ईरान इजरायली हमलों को अंतरराष्ट्रीय कानून और यूएन चार्टर का उल्लंघन बताया था.
जंग के 9वें दिन इजरायल ने 15 लड़ाकू विमानों से बमबारी की. 2 ईरानी सैन्य अधिकारियों को मार गिराया गया. वहीं ईरान ने भी कई मिसाइलों से पलटवार किया है. इजरायल और ईरान के बीच जंग के नौवें दिन क्या-क्या हुआ आप नीचे वीडियो में देख सकते हैं.
भारत वैश्विक मंचों पर उभरती शक्ति है. भारत ग्लोबल साउथ की अगुवाई करता है. दुनिया के बड़े फैसले भारत के बिना संभव नहीं. ऐसे पीएम मोदी का संदेश साफ है - दुनिया को युद्ध की नहीं बल्कि बुद्ध की जरूरत है यानी बातचीत की टेबल पर ही मसले हल हो सकते हैं. पीएम मोदी के इस संदेश को देश में सियासत करने वाली पार्टियों को भी समझना चाहिए और दुनिया के उन देशों को भी जिन्होंने जंग की आग में खुद को झोंक दिया है.
"तो क्या भारत को खुलकर बोलना चाहिए था? क्या हमारी चुप्पी हमारे वैश्विक कद को कम कर रही है? क्या सोनिया गांधी की चिंता सिर्फ कूटनीतिक है या सियासी भी?"
ईरान-इज़रायल की जंग में भारत की चुप्पी अब सियासी बवंडर बन चुकी है. लेकिन सवाल यही — क्या चुप्पी भी कभी रणनीति होती है?