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अयोध्या विवाद पर फैसले को लेकर कैसे एकमत हुए थे सभी जज? CJI चंद्रचूड़ ने अब बताई वजह

श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया था. तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली उस संविधान पीठ में जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर के अलावा वर्तमान मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ भी शामिल थे.

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अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे. (PTI Photo)
अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे. (PTI Photo)

दशकों पुराने श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया था. देश की शीर्ष अदालत ने विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करते हुए इसे एक ट्रस्ट को सौंपने का आदेश सुनाया था. साथ ही केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन उपलब्ध कराने के लिए कहा था. 

तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली उस संविधान पीठ में जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर के अलावा वर्तमान मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ भी शामिल थे. उन्होंने सर्वसम्मति से लिए गए उस फैसले के बारे में एक समाचार एजेंसी से विस्तार से बातचीत की है. उन्होंने कहा, 'दशकों पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में अपना अंतिम फैसला सुनाते समय, सुप्रीम कोर्ट ने संघर्ष के लंबे इतिहास को ध्यान में रखा और एक स्वर में बोलने का फैसला किया'.

ऐतिहासिक फैसले से 134 साल पुरानी कानूनी लड़ाई का पटाक्षेप हुआ

देश के सर्वोच्च न्यायाधीश ने कहा, 'अयोध्या मामले में न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से यह तय किया कि फैसले की कॉपी पर किसी का नाम नहीं जाएगा'. इस ऐतिहासिक फैसले ने 134 साल पुरानी कानूनी लड़ाई का पटाक्षेप किया था और अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया. हालांकि, पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस, जिसका ढांचा 1992 तक विवादित स्थल पर मौजूद था, अवैध था. 

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अयोध्या मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को होगी

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तीन साल से थोड़े अधिक समय बाद, अयोध्या में भक्तों के भव्य राम मंदिर के द्वार खुलने वाले हैं. पीएम मोदी ने 5 अगस्त 2020 को मंदिर का शिलान्यास किया था, और इसका उद्घाटन 22 जनवरी 2024 को होना निर्धारित है. इसी दिन मंदिर के गर्भगृह में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस आयोजन में मुख्य यजमान के रूप में उपस्थित रहेंगे. उन्होंने अपनी हालिया अयोध्या यात्रा के दौरान कहा था कि राम मंदिर का उद्घाटन एक 'ऐतिहासिक' क्षण होगा.

पीएम मोदी ने देशवासियों से की है श्रीराम ज्योति जालने का आग्रह

पीएम मोदी ने कहा था, 'हम बहुत भाग्यशाली हैं कि यह क्षण हमारे जीवन में आएगा. हमें देश के लिए एक नया संकल्प लेना होगा और खुद को नई ऊर्जा से भरना होगा. इसके लिए मैं सभी 140 करोड़ देशवासियों से आग्रह करता हूं कि वे अपने घरों में श्री राम ज्योति जलाएं, 22 जनवरी और दीपावली मनाएं'. प्रधानमंत्री 30 दिसंबर को अयोध्या दौरे पर आए थे. उन्होंने यहां नवनिर्मित अयोध्या धाम जंक्शन रेलवे स्टेशन और महर्षि वाल्मीकि इंटरनेशनल एयरपोर्ट का लोकार्पण किया था.

अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी बोले CJI चंद्रचूड़

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मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अयोध्या विवाद के अलावा आर्टिकल 370 और सेम सेक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में बात की. शीर्ष अदालत ने हाल ही में अनुच्छेद 370 को खत्म करने की वैधानिकता पर अपना फैसला सुनाया था, जिसमें उसने केंद्र सरकार की 5 अगस्त 2019 की कार्रवाई को बरकरार रखा था. विपक्षी नेताओं, कानून के जानकारों और एक पूर्व जज ने इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की तीखी आलोचना की थी. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ से जब इस बारे में पूछा गया तो जवाब देने से इनकार कर दिया.
 
सीजेआई ने कहा कि न्यायाधीश किसी मामले का फैसला 'संविधान और कानून के अनुसार' करते हैं. उन्होंने कहा, 'जहां तक ​​हमारा सवाल है, हम संविधान और कानून के मुताबिक फैसला करते हैं. मुझे नहीं लगता कि मेरे लिए आलोचना का जवाब देना या अपने फैसले का बचाव करना उचित होगा. हमने अपने फैसले में जो कहा है वह फैसले के हस्ताक्षरित दस्तावेजों में दिए गए कारण में प्रतिबिंबित होता है और मुझे इसे वहीं छोड़ देना चाहिए'. बता दें कि केंद्र ने 5 अगस्त 2019 को राष्ट्रपति के आदेश से जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए को समाप्त कर दिया था. 

'समलैंगिक विवाह मामले में SC के फैसले पर अफसोस नहीं है'

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डीवाई चंद्रचूड़ ने सेम सेक्स मैरिज के मुद्दे पर भी बात की. उन्होंने कहा कि उन्हें समलैंगिक विवाह मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कोई अफसोस नहीं है और फैसले का नतीजा कभी भी न्यायाधीश के लिए व्यक्तिगत नहीं होता है. शीर्ष अदालत ने 3-2 के फैसले में माना था कि शादी करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है और विशेष विवाह अधिनियम (SMA) के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था. सीजेआई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता के पक्ष में फैसला सुनाया था. जबकि न्यायमूर्ति भट्ट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा ने कहा था कि समलैंगिक तबके को अपना साथी चुनने का अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित नहीं हो सकता है, जब विवाह ही मौलिक अधिकार नहीं है.

 

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