पैसिव यूथेनेसिया (निष्क्रिय इच्छा मृत्यु) के मसले पर पूछे गए सवाल पर केंद्र सरकार ने गुरुवार को लोकसभा में जवाब दिया. केंद्र द्वारा दिए गए जवाब में कहा गया कि पैसिव यूथेनेसिया पर कानून पर चर्चा के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत गठित एक्सपर्ट कमेटी ने अभी तक अपनी सिफारिश पेश नहीं की है. सिफारिश मिलने के बाद पैसिव यूथेनेसिया पर कानून को लेकर कोई कदम बढ़ाया जाएगा.
आपको बता दें कि पैसिव यूथेनेसिया यानी कि निष्क्रिय इच्छा मृत्यु किसी गंभीर मरीज को दिए जा रहे इलाज में धीरे-धीरे कमी करके दी जाती है. जबकि एक्टिव यूथेनेशिया में ऐसा प्रबंध किया जाता है, जिससे मरीज की सीधे मृत्यु हो जाए.
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ इच्छा मृत्यु की अनुमति दी थी. तब कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि असाध्य रोग से ग्रस्त मरीज इच्छा मृत्यु पत्र लिए कह सकता है, जो डॉक्टर्स को उसके जीवन रक्षक उपकरण हटाने की अनुमति देता है. वे मरीज, जो कभी ना ठीक हो पाने वाली बीमारी से पीड़ित हैं और घोर पीड़ा में जीवन काट रहे हैं. उन्हें सम्मान के साथ अपना जीवन खत्म करने की अनुमति है.
कोर्ट यह भी कहा था कि जीने की इच्छा नहीं रखने वाले व्यक्ति को निष्क्रिय अवस्था में शारीरिक पीड़ा सहने नहीं देना चाहिए. निष्क्रिय अवस्था में पड़े व्यक्ति को इच्छा मृत्यु और अग्रिम इच्छा पत्र लिखने की अनुमति है. इस मामले में कानून बनने तक ये फैसला प्रभावी रहेगा.
इसी मसले को लेकर लंबे समय से बहस जारी है. ऐसे में आज पैसिव यूथेनेसिया के मसले पर पूछे गए सवाल पर केंद्र सरकार ने लोकसभा में कहा कि इस पर कानून के बनाने की चर्चा के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत गठित एक्सपर्ट कमेटी ने अभी तक अपनी सिफारिश पेश नहीं की है.
गौरतलब है कि इच्छा मृत्यु को नीदरलैंड में वैध बनाया गया है. नीदरलैंड के अलावा बेल्जियम, लग्जमबर्ग, कोलंबिया और कनाडा जैसे देशों ने भी इच्छा मृत्यु को कानूनी रूप दिया गया है. यह अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के कई राज्यों में भी वैध है.