प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में क्रिसमस के मौके पर दिल्ली के कैथेड्रल चर्च ऑफ द रिडेम्पशन का दौरा किया था. अब इसे लेकर कैथोलिक चर्च की मुखपत्र पत्रिका ‘दीपिका’ ने तीखे सवाल खड़े किए हैं.
पत्रिका में प्रकाशित संपादकीय में कहा गया है कि एक ओर हिंदू राष्ट्रवादी क्रिसमस की सजावट को नष्ट कर हिंसा कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री चर्च में प्रार्थना कर रहे थे. उनका चर्च जाकर प्रार्थना करना संदेह पैदा करता है.
संपादकीय में सवाल किया गया है कि क्या यह दौरा देश के नागरिकों के लिए था या फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक संदेश देने की कोशिश? पत्रिका का कहना है कि यदि प्रधानमंत्री की मंशा वास्तव में देश के अल्पसंख्यकों के साथ खड़े होने की होती, तो हमलों की खुलकर निंदा की जाती और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नजर आती.
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संपादकीय में लिखा है कि भाजपा के 11 वर्षों के शासनकाल में अल्पसंख्यकों, खासकर ईसाइयों पर हमले कोई नई बात नहीं हैं. संपादकीय के मुताबिक, सरकार की चुप्पी और शिकायतों पर कार्रवाई न होना अल्पसंख्यक समुदाय को हमलों से भी ज्यादा डराता है.
सरकार पर उठाए सवाल
पत्रिका ने यह भी कहा कि केवल सरकार को ज्ञापन सौंपने से समस्या का समाधान नहीं होगा. क्रिसमस के दौरान हुए हमलों को संविधान में प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए अदालत का रुख करने की जरूरत जताई गई है.
संपादकीय में कमजोर विपक्ष और अल्पसंख्यक नेतृत्व पर भी सवाल उठाए गए हैं, जो कानूनी समाधान लागू करने में प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं. आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा गया है कि वर्ष 2024 में ही ईसाइयों के खिलाफ 834 हिंसक घटनाएं दर्ज हुईं, जबकि इस साल नवंबर तक 706 मामले सामने आ चुके हैं.
भाजपा द्वारा इन आंकड़ों को आधिकारिक न मानने पर भी पत्रिका ने सवाल उठाया है और कहा है कि सरकार यह स्पष्ट नहीं करती कि इन आंकड़ों में क्या खामी है. साथ ही, ‘धर्मांतरण’ के आरोपों और ‘घर वापसी’ जैसे अभियानों पर दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप भी लगाया गया है.