बिहार में माता सीता की जन्मभूमि सीतामढ़ी को लेकर राज्य सरकार गंभीर नहीं दिख रही है. बीते 33 सालों से बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव का राज है. लेकिन दोनों नेताओं ने अब तक माता जानकी की जन्मस्थली को लेकर कोई काम नहीं किया है. लेकिन लोकसभा चुनाव आते ही मुख्यमंत्री को माता जानकी की याद आने लगी है.
केंद्र सरकार की ओर से बार-बार प्रस्ताव मांगने के बाद भी मंदिर के विकास के लिए राज्य सरकार की ओर से प्रस्ताव नहीं भेजा गया. जब भव्य राम मंदिर बन सकता है तो माता सीता की जन्मस्थली सीतामढ़ी में विशाल मंदिर का निर्माण क्यों नहीं हो सकता? यह बयान नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा का है. उनका यह बयान नीतीश कुमार के मां जानकी की जन्मस्थली पुनौरा धाम में 72.47 करोड़ रुपए की योजना का शिलान्यास करने के बाद आया था.
दूसरी ओर नीतीश कुमार के करीबी और बिहार विधानपरिषद में सभापति देवेश चंद्र ठाकुर ने 13 दिसंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुनौरा धाम में योजनाओं के शिलान्यास के बाद बड़ी बात कही थी. उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज मां जानकी मंदिर की नींव रखी, इसके साथ ही राजनीति का दूसरा अध्याय भी शुरू हो गया. जहां एक तरफ भाजपा राम मंदिर को लेकर अपनी सियासत मजबूत करेगी, तो नीतीश कुमार मां सीता के मंदिर के निर्माण का पूरा श्रेय लेने की कोशिश करेंगे. हालांकि इससे पहले भारत सरकार ने अयोध्या और सीतामढ़ी को जोड़ने के लिए रामायण सर्किट की व्यवस्था की है. बता दें कि राम जहां-जहां गए हैं, उस रूट को जोड़कर रामायण सर्किट बनाया जा रहा है.
मंडल के साथ कमंडल वाली सियासत!
इन दोनों बयानों के आइने में बिहार में शुरू हो चुकी मंडल के साथ कमंडल वाली सियासत को समझना होगा. कारण ये है कि हाल में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातिगत सर्वे कराया. उस हिसाब से आरक्षण का दायरा भी बढ़ा दिया. इसे जानकार मंडल की राजनीति करार दे रहे हैं. वहीं दूसरी ओर माता सीता के मंदिर के पुनर्विकास का बीड़ा उठाकर मुख्यमंत्री ने ये स्पष्ट कर दिया कि वे कमंडल की सियासत करने से भी पीछे हटने वाले नहीं हैं.
नीतीश कुमार कई फ्रंट पर एक साथ बीजेपी से अकेले लड़ रहे हैं. हाल में विधानसभा चुनावों के रिजल्ट से पता चला कि कांग्रेस अब क्षेत्रीय दलों पर दबाव बनाने की स्थिति में नहीं है. नीतीश कुमार अकेले सियासी तीर चला रहे हैं. लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही सीता जन्मस्थली को लेकर शुरू हुई राजनीतिक बयानबाजी पूरी तरह कमंडल की सियासत वाली धारा में बहने लगी है.
सीता जन्मस्थली के पुनर्विकास को लेकर नीतीश कुमार की सक्रियता का अंदाजा उनके बयान से भी लगा सकते हैं. उन्होंने शिलान्यास के बाद कहा कि नवीनीकरण का कार्य तेजी से पूरा होना चाहिए. सीताकुंड को विकसित किया जाए और ज्यादा से ज्यादा भक्तों को आकर्षित करने के लिए आसपास के क्षेत्र के सौंदर्यीकरण पर भी ध्यान दिया जाए.
निशाने पर लगा नीतीश का तीर!
नीतीश कुमार को साफ दिख रहा है कि बीजेपी राम मंदिर के उद्धाटन को लेकर अक्रामक राजनीति कर रही है. अब बिहार सरकार के इस फैसले ने बीजेपी को असहज कर दिया है. बीजेपी नेताओं के बयान से साफ लगता है कि नीतीश कुमार का ये तीर सीधे निशाने पर लगा है. ध्यान रहे कि रामायण सर्किट पर केंद्र की धार्मिक स्थलों की 15 सूची में सीतामढ़ी शामिल है. उसके बाद भी बिहार सरकार ने इसके विकास का प्लान बना लिया. ये केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के स्वदेश दर्शन योजना के तहत पहचाने गए स्थलों में से एक है. ये फैसला राज्य सरकारों से बातचीत के बाद ही लिया गया था.
सीता जन्मस्थली पर मंदिर के छत को बलुआ पत्थर के पिलरों के साथ एक परिक्रमा पथ तैयार करने की बात कही गयी है. उसके अलावा कैफेटेरिया और पार्किंग स्थल के अलावा लव-कुश वाटिका और एक शांति मंडप का निर्माण किया जाएगा. यहां मां सीता के जीवन को दर्शाने वाली थ्री डी एनिमेशन फिल्म की तैयारी भी की गई है. प्लान के तहत भगवान राम और सीता से जुड़े कम से कम 12 से ज्यादा दर्शन स्थलों के पुनर्विकास का काम किया जाएगा.
ऐसे शुरू हुआ विवाद
सीता जन्मस्थली को लेकर विवाद जेडीयू और बीजेपी के नेताओं के बयान से शुरू हुआ. सबसे पहले जेडीयू के नीरज कुमार ने दावा किया कि सीएम ने हमेशा कहा है कि वह सभी धर्मों का सम्मान करते हैं. उन्होंने कहा कि चाहे कब्रिस्तान हों या किसी के भी धार्मिक स्थल, हमारी सरकार ऐसे सभी स्थलों के विकास के लिए काम कर रही है. सीता माता से संबंधित स्थल बिहार की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण भी हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को राम मंदिर के विकास पर 3,000 करोड़ रुपये खर्च करने के साथ-साथ सीता माता से संबंधित स्थलों को भी विकसित करना चाहिए था. हम अपना काम कर रहे हैं. इसमें कोई राजनीति नहीं है. हमारे देवताओं पर कोई कॉपीराइट नहीं है.
नीरज कुमार के बयान के तत्काल बाद नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने बयान दिया. उन्होंने बड़ी-बड़ी बातें कहते हुए राज्य सरकार पर सीता जन्मस्थली का विकास नहीं करने का आरोप लगाया. उसके अलावा उन्होंने सीतास्थली के विकास के लिए प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजने की बात कह दी. उनका इस बयान ने आग में घी डालने का काम किया, जिसमें उन्होंने कहा कि राम मंदिर की तर्ज पर सीता स्थली का भी विकास करेंगे.
सीतामढ़ी में हुआ था सीता मां का प्राकट्य
ध्यान रहे कि अयोध्या से 400 किलोमीटर दूर सीतामढ़ी में मां सीता का प्राकट्य हुआ था. प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक बिहार के सीतामढ़ी जिले के पुनौरा गांव में मां जानकी की जन्मभूमि है, जिसे पुनौरा धाम के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि माता सीता इसी स्थान पर धरती से प्रकट हुई थी. प्राचीन कथा के मुताबिक मिथिला में एक बार भीषण अकाल पड़ा. ऐसे में वहां के पुरोहितों ने राजा जनक को खेत में हल चलाने की सलाह दी. जब राजा जनक हल चला रहे थे तब जमीन से मिट्टी का एक घड़ा निकला, जिसमें माता सीता शिशु अवस्था में थी. उसके अलावा पुनौरा धाम मंदिर के पीछ एक जानकी कुंड के नाम से सरोवर है. इस सरोवर में स्नान करने से संतान की प्राप्ति होने की बात कही जाती है.
कुल मिलाकर सियासी जानकारों की मानें, तो नीतीश कुमार ने बिहार में धार्मिक स्थलों और मंदिरों की चारदीवारी का संकल्प लिया है. कैबिनेट में बकायदा मंदिरों के लिए प्रस्ताव पास किया था. राम मंदिर को लेकर बीजेपी अपना एजेंडा सेट करने में जुटी है. कहा जा रहा है कि राम मंदिर के ऐजेंडे का असर बिहार पर भी पड़ेगा. नीतीश इस बात को समझ रहे हैं.इसलिए उन्होंने सॉफ्ट हिंदुत्व वाले राह को चुना है. मां सीता के मंदिर के पुनर्विकास का शिलान्यास इसी कड़ी में एक कदम है.
हालांकि जनकपुर नेपाल की फिजा अलग है, भले ही मां सीता के प्रकट होने की भूमि सीतामढ़ी में है लेकिन उनका पालन पोषण जनकपुर के भव्य महल में हुआ है. आज जनकपुर में विवाह पंचमी को लेकर उत्सव का माहौल रहता है, लेकिन सीतामढ़ी के पुनौराधाम में वो रौनक दिखाई नहीं देती. लेकिन अयोध्या में श्रीराम का भव्य मंदिर बनने से सीतामढ़ी का विकास होना तय है.