महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार कोरोना की मार से निपटने की अभी जद्दोजहद कर ही रही थी कि ओबीसी को स्थानीय निकाय में आरक्षण का मुद्दा गरमा गया है. बीजेपी ने निकायों में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर उद्धव सरकार के खिलाफ सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक मोर्चा खोल रखा है. वहीं, कांग्रेस नेताओं से लेकर एनसीपी के छगन भुजबल अलग से 'ओबीसी आरक्षण दिलाओ मोर्चा' निकाल रहे हैं. इस तरह से महाराष्ट्र की सियासत ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर गरमा गई है.
आरक्षण की बहाली को लेकर बीजेपी आक्रमक
महाराष्ट्र के स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण को बहाल करने की मांग के लेकर बीजेपी के दिग्गज नेताओं ने तीन दिन पहले शनिवार को राज्य भर में विरोध प्रदर्शन किया था. विधानसभा में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने अपने गृह जिले नागपुर में विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था जबकि विधान परिषद में विपक्ष के नेता प्रवीण दारेकर ठाणे में प्रदर्शन में शामिल हुए. इसके अलावा बीजेपी की ओबीसी नेता पंकजा मुंडे ने भी आंदोलन में उतरकर आरक्षण की मांग को जोरदार तरीके से उठाया.
महाराष्ट्र में बीजेपी इन दिनों अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकारों को लेकर आक्रामक है. पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि महाविकास अघाड़ी सरकार ओबीसी का राजकीय आरक्षण बहाल करवाए या फिर सत्ता मुझे सौंपे. यदि हम चार महीने में ओबीसी को पुनः राजकीय आरक्षण नहीं दिलवा सके तो राजनीति छोड़ देंगे. देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि ठाकरे सरकार के चलते निकायों से ओबीसी का आरक्षण रद्द हो गया है.
2019 में ओबीसी आरक्षण का अध्यादेश
बता दें कि देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई वाली भाजपा-शिवसेना सरकार ने चुनाव से ठीक पहले 2019 में स्थानीय निकायों में ओबीसी को राजनीतिक आरक्षण दिया था. फडणवीस निकायों में ओबीसी आरक्षण के लिए रात में अध्यादेश लेकर आए थे और उसे तुरंत राज्यपाल के पास भी भेजा था. इसके तहत महाराष्ट्र में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण का दायरा बढ़ गया था
सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था आरक्षण
महाराष्ट्र के ओबीसी आरक्षण को लेकर कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल मार्च में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी के लिए आरक्षण पर ध्यान देने का आदेश जारी किया था. महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों में आरक्षण कुल सीटों के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है. वहीं, महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण को लेकर मजबूत तर्क नहीं दे सकी, जिसके कारण मई के आखिरी सप्ताह में निकाय में मिलने वाले ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम 1961 के भाग 12 (2)(सी) की व्याख्या करते हुए ओबीसी के लिए संबंधित स्थानीय निकायों में सीटों का आरक्षण प्रदान करने की सीमा से संबंधित राज्य चुनाव आयोग द्वारा वर्ष 2018 और 2020 में जारी अधिसूचनाओं को रद्द कर दिया था. इससे महाराष्ट्र की सियासत गरमा गई है और बीजेपी ने उद्धव ठाकरे सरकार को लेकर मोर्चा खोल दिया है.
आरक्षण रद्द के बाद हो रहे पांच जिले में चुनाव
इसके चलते राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) ने महाराष्ट्र के धुले, नंदुरबार, वाशिम, अकोला और नागपुर जिलों में उपचुनावों की घोषणा की है और जिला परिषद की 85 सीटें और 144 पंचायत समिति सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं. निकाय में ओबीसी का राजनीतिक आरक्षण रद्द हो जाने के कारण पांच जिलों में जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव में अब ओबीसी यह लाभ नहीं ले सकेगा.
देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि इन पांच जिलों के पंचायत चुनाव को स्थानीय निकायों में ओबीसी का राजनीतिक आरक्षण बहाल होने तक रोके जाएं यदि ऐसा नहीं होता तो बीजेपी इन चुनावों में सभी सीटों पर सिर्फ ओबीसी उम्मीदवार ही खड़े करेगी. ऐसे में वो चाहे हारे, चाहे जीते, लेकिन ओबीसी ही नेता चुनाव लड़ेंगे. बीजेपी के ओबीसी प्रेम यूं ही नहीं बल्कि इसके पीछे उसकी सारी राजनीति टिकी हुई है.
बीजेपी का सियासी आधार ओबीसी वोटों पर है
राज्य सांख्यिकी विभाग के 2015 में जारी आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र में ओबीसी की कुल आबादी 41 फीसदी है. 2011 की जनगणना के अनुसार भी राज्य में ओबीसी की जनसंख्या (कुणबी छोड़कर) 27 फीसदी है. यही अन्य पिछड़ा वर्ग एक समय बीजेपी का मजबूत जनाधार रहा है. गोपीनाथ मुंडे, नासा फरांदे, एकनाथ खडसे जैसे अन्य पिछड़ा वर्ग के नेताओं ने बीजेपी को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाई है.
हालांकि, गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद बीजेपी के पास अन्य पिछड़ा वर्ग का कोई बड़ा नेता नहीं रह गया है. मुंडे गुट के ही समझे जानेवाले एकनाथ खडसे भी बीजेपी का साथ छोड़कर एनसीपी में चले गए हैं. इसलिए आरक्षण मुद्दे के बहाने भाजपा अपने इस पुराने ओबीसी जनाधार को फिर संभालने की कवायद में जुटी है, जिसके लिए फडणवीस आक्रमक रुख अपनाए हुए हैं. वे कहते हैं कि हमने न्यायालय में भी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण मान्य करवा लिया था, लेकिन उद्धव सरकार 15 महीने तक हलफनामा भी नहीं दायर कर सकी. इसी के चलते महाराष्ट्र में ओबीसी को आरक्षण गंवाना पड़ा.
कांग्रेस-एनसीपी का फोकस भी ओबीसी सियासत पर
कांग्रेस का फोकस भी अब महाराष्ट्र में ओबीसी राजनीति पर है, क्योंकि उसके प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ओबीसी के कुनबी जाति से आते हैं. राज्य में करीब 22 फीसदी मराठा और 27 फीसदी ओबीसी हैं. जाहिर है सब चाहते हैं कि ये वोट उनको ही मिलें. वहीं, एनसीपी के ओबीसी चेहरा माने जाने वाले छगन भुजवल ने भी ओबीसी आरक्षण दिलाओ मोर्चा निकालने का ऐलान कर रखा है.