“हेमंत हैं तो हिम्मत है” का नारा कोलहान के आदिवासी भाई आज भी पूरे भरोसे से दोहराते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इस नारे को कठघरे में खड़ा कर रही है. झारखंड की अबुआ सरकार में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई नजर आ रही है. जहां जरूरतमंदों को इंसानियत के आधार पर भी सुविधा मिलना मुश्किल हो गया है.
शुक्रवार को पश्चिमी सिंहभूम जिले के कोलहान प्रमंडल अंतर्गत चाईबासा सदर अस्पताल से एक ऐसा हृदय विदारक दृश्य सामने आया. जिसने पूरे सिस्टम को बेनकाब कर दिया. नोवामुंडी प्रखंड के बालजोड़ी गांव निवासी गरीब आदिवासी पिता डिम्बा चातोम्बा को अपने चार वर्षीय मासूम बेटे की मौत के बाद एम्बुलेंस तक नसीब नहीं हुई.
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दो दिन पहले डिम्बा अपने बीमार बच्चे को इलाज के लिए चाईबासा सदर अस्पताल में भर्ती कराता है, लेकिन शुक्रवार को इलाज के दौरान मासूम की मौत हो जाती है. बच्चे की मौत के बाद सबसे बड़ी चुनौती बच्चे के शव को घर तक पहुंचाना था. डिम्बा ने अस्पताल प्रबंधन से बार-बार एम्बुलेंस की गुहार लगाई. इसके लिए घंटों इंतजार किया, लेकिन न तो सिस्टम पसीजा और न ही कोई जिम्मेदार आगे आया.
नहीं मिली एंबुलेंस तो झोले में रखकर शव गांव ले गया पिता
आर्थिक रूप से लाचार डिम्बा के पास न पैसे थे, न पहुंच और न ही पैरवी. अंततः मजबूरी में उसने अपने चार वर्षीय बच्चे के शव को एक झोले (थैले) में रखा और पैदल ही अस्पताल से नोवामुंडी के बालजोड़ी गांव तक का सफर तय किया. यह दृश्य सिर्फ एक पिता का दर्द नहीं, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर लगा करारा तमाचा है.
स्थानीय लोगों को जब इस घटना की जानकारी मिली तो रोंगटे खड़े हो गए. सवाल उठने लगे कि क्या एम्बुलेंस सिर्फ सिफारिश और रसूख वालों के लिए है? क्या गरीब की लाश भी सम्मान की हकदार नहीं? इस घटना ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली और सरकार के दावों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.