प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक तपन सिन्हा के जन्म शताब्दी वर्ष में उनकी फिल्मों और उनके अमिट प्रभाव को फिर से देखने और समझने के मकसद से बुधवार 13 मार्च की शाम एक अनूठा कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम को ओम बुक्स इंटरनेशनल, कुंजम बुक्स और ब्लू पेंसिल के साथ मिलकर न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन ने साकार किया.
इसमें तपन सिन्हा की 1963 की अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त प्रसिद्ध फिल्म ‘निर्जन शइकते’ ( #NirjanSaikate) की स्क्रीनिंग की गई. इससे पहले तपन सिन्हा, उनकी फिल्मों और बंगाली सिनेमा के सुनहरे दौर पर एक चर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें इस फिल्म में अभिनय कर चुकीं प्रसिद्ध अभिनेत्री शर्मिला टैगोर ने भी हिस्सा लिया.
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जमीनी मुद्दों की थी गहरी समझ- शर्मिला टैगोर
तपन सिन्हा के साथ काम करने के अपने अनुभवों के बारे में बताते हुए शर्मिला टैगोर ने उन्हें एक विलक्षण दृष्टि और प्रतिभा वाला निर्देशक बताया. उन्होंने कहा कि उन्हे जमीनी मुद्दों की गहरी जानकारी और समझ थी. इसके साथ-साथ उसे फिल्म में बदलने का कलात्मक हुनर भी उनमें था. चर्चा के अंत में उन्होने दर्शकों से भी संवाद किया और दर्शकों की ओर से आए ऐसे दिलचस्प सवालों का जवाब भी दिया कि आपकी फेवरिट फिल्म अमर प्रेम है या कश्मीर की कली. तपन सिन्हा के जन्मशताब्दी वर्ष को यादगार बनाने के लिए न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन ने एक पोस्टर भी जारी किया, जिसका शर्मिला टैगोर ने अनावरण किया.
70 के दशक के बंगाली सिनेमा में उठाए सामाजिक मुद्दे
शर्मिला टैगोर के साथ विशेष चर्चा में कोलकाता से आए लेखक-आलोचक अमिताव नाग शामिल हुए. वह प्रतिष्ठित फिल्म पत्रिका सिल्हुएट के संपादक हैं. इसके अलावा ओम बुक्स इंटरनेशनल के एडिटर इन चीफ शांतनु राय चौधरी ने भी शर्मिला टैगोर के साथ चर्चा की. अमिताव नाग ने तपन सिन्हा के ऊपर एक महत्वपूर्ण किताब ‘द सिनेमा ऑफ तपन सिन्हा, एन इंट्रोडक्शन’ लिखी है. यह किताब तपन सिन्हा के सिनेमा और भारतीय सिनेमा में उनके महत्वपूर्ण स्थान के बारे में जानकारी देती है. शांतनु और अमिताव ने तपन सिन्हा के सिनेमा के जरिए सत्तर के दशक के बंगाली सिनेमा में सामाजिक प्रतिबद्धता पर रोशनी डाली.
दिल्ली के कुंजम बुक कैफे में हुआ था यह आयोजन
ये आयोजन राजधानी के ग्रेटर कैलाश पार्ट टू स्थित कुंजम बुक कैफे में किया गया था. जहां हर किताब की खरीद पर एक कॉफी मुफ्त पिलाई जाती है. इसके अलावा भी सांस्कृतिक आयोजन के लिहाज से ये एक दिलचस्प जगह है. इस आयोजन में सिनेप्रेमियों, पुस्तकप्रेमियों समेत सांस्कृतिक और अकादमिक दुनिया से भी कई महत्वपूर्ण लोग शामिल हुए. ब्लू पेंसिल की ओर से सिने अध्येता, लेखिका और संपादक अंतरा नंदा मंडल भी इस आयोजन में मौजूद थीं. कुंजम बुक्स की ओर से सुबीर डे ने भी इसमें हिस्सा लिया.
तपन सिन्हा की फिल्में लोकप्रिय हुईं और अच्छी कमाई भी की
न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन के फाउंडर आशीष के सिंह ने बताया कि तपन सिन्हा की फिल्मों को आलोचनात्मक और लोकप्रिय प्रशंसा मिली. उनकी फिल्मों ने आर्थिक रूप से भी अच्छा प्रदर्शन किया और दूसरे फिल्मकारों को भी प्रेरित किया. तपन सिन्हा ने बांग्ला के साथ-साथ हिंदी में भी सगीना (1974), सफेद हाथी (1977), आदमी और औरत (1982) और एक डॉक्टर की मौत (1991) जैसी फिल्में बनाई थीं. ये फिल्में प्रशंसित और व्यापक रूप से सराही गईं.
गुलजार ने उनकी फिल्म का बनाया हिंदी वर्जन
1968 में बनाई उनकी फिल्म आपन जन एक राजनीतिक प्रतीकात्मक फिल्म थी, जिसको हिंदी में मेरे अपने नाम से बनाकर गीतकार गुलजार ने अपनी निर्देशकीय पारी की शुरुआत की थी. 1960 में टैगोर की ही कहानी पर बनायी फिल्म 'खुधित पाषान' को गुलजार ने रूपांतरित कर 1990 में 'लेकिन' नाम से फिल्म बनाई थी. 1968 में बनायी उनकी फिल्म 'गल्प होलेउ सत्यि' को हिंदी में हृषिकेश मुखर्जी ने 'बावर्ची' (1972) के नाम से बनाया था.
एक मुहिम है ‘सिनेमा ऑफ इंडिया’
कार्यक्रम के अंत में न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन की ओर से आशीष के सिंह ने बताया कि ‘सिनेमा ऑफ इंडिया’ भारत के महान फिल्मकारों के सिनेमा को देखने, समझने, सराहने के साथ-साथ नई पीढ़ी के फिल्मकारों के काम को देखने-दिखाने और सपोर्ट करने, आगे बढ़ाने की एक मुहिम है. तपन सिन्हा की फिल्मों पर आयोजन इसी का एक हिस्सा है. ‘सिनेमा ऑफ इंडिया’ कैंपेन के तहत अच्छे सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन इस साल और भी कई सार्थक कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है.