दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी को नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी की अपील पर जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है. ईडी ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें ईडी की जांच पर संज्ञान लेने से इनकार किया गया था. अब सोनिया और राहुल गांधी को ईडी की याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है. इस मामले की अगली सुनवाई मार्च 2026 में होगी.
दिल्ली हाईकोर्ट में सोमवार को नेशनल हेराल्ड केस में ईडी की अपील पर सुनवाई हुई. ईडी की पैरवी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कर रहे हैं. मेहता ने दलील दी कि निचली अदालत का संज्ञान लेने से इनकार करने का आदेश पीएमएलए को निरर्थक बनाने के बराबर है. हमने पूरे तथ्यात्मक आधार और टाइम लाइन का विस्तृत ब्यौरा दिया है. एसोसिएटटेड जर्नल लिमिटेड यानी एजेएल को निगमित किया गया है. इसके बाद 2002-2003 के दौरान एजेएल को कांग्रेस का ऋण लगभग 88 करोड़ रुपये होता है.
कोर्ट ने पूछा कि ये एजेएल क्या है?
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा कि ये एजेएल क्या है? इस पर ईडी ने कहा कि एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड नामक ये एक गैर-सूचीबद्ध सार्वजनिक कंपनी है. ईडी ने आगे बताया कि यंग इंडिया की ओर से एजेएल को पत्र भेजा गया था. उसमें पहले लिए गए कर्ज की अदायगी या इसे इक्विटी में बदलने की बात कही गई थी. ये सब क्रमबद्ध और सुनियोजित ढंग से एक के बाद एक हुआ है.
क्या है अगस्त 2010 से शुरू कहानी, जो ईडी ने सुनाई
एजेएल अपनी वार्षिक आम सभा में यानी एजीएम के लिए नोटिस जारी करता है. एआईसीसी के ऋण के वास्तविक समनुदेशन से पहले ही प्रस्ताव पारित कर दिया जाता है. ईडी ने कहा कि असली कहानी अगस्त 2010 से शुरू होती है. एजेएल को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने कुल 90 करोड़ रुपये का ऋण दिया. इसके 20 दिनों के भीतर नए सिरे से एजेएल में निदेशकों की नियुक्ति की गई.
उस समय एजेएल के पास 100 करोड़ रुपए की संपत्ति थी. इसके बाद 22 जनवरी 2011 को यंग इंडिया में दो और लोगों को सोनिया गांधी और राहुल गांधी को निदेशक मंडल में शामिल किया गया. उनमें से प्रत्येक को 38% शेयर मिलते हैं यानी उन्हीं के पास यंग इंडिया में 76% शेयर हैं. यंग इंडिया ने एजेएल से पैसे वसूलने के अधिकार भी हासिल किए. फिर 23 नवंबर 2012 में यंग इंडियन को 5 लाख रुपए की शेयर पूंजी के साथ निगमित किया गया था. इन शेयरों में से सैम पित्रोदा के पास 550 शेयर थे जबकि दुबे ने 550 शेयर लिए थे.
2016 में डॉ सुब्रह्मण्यन स्वामी ने की थी शिकायत
ईडी ने दलील दी कि जून 2016 में (डॉ सुब्रह्मण्यन स्वामी) एक निजी शिकायत दर्ज की गई थी. अदालत ने शिकायत में उल्लिखित अपराधों का संज्ञान लिया. उसमें आर्थिक हेराफेरी के साथ आईपीसी की धारा 420 और 120 बी के तहत आरोप भी शामिल हैं. आईपीसी की धारा 420 एक अनुसूचित अपराध है.
संज्ञान आदेश को चुनौती दी गई. अदालत ने उनकी चुनौती याचिका खारिज कर दी फिर उन्होंने ये मामला सुप्रीम कोर्ट में डाला. वहां भी इस पर विचार नहीं किया गया यानी अदालत के आरोपपत्र पर संज्ञान लेने के आदेश की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट तक की गई. इसमें आर्थिक गड़बड़ी यानी अवैध तरीके से धन शोधन का मुद्दा होने से पीएमएलए के तहत जांच शुरू की गई थी. क्योंकि ये अनुसूचित अपराध हैं.
पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की. ईडी ने अभियोजन की शिकायत दर्ज की.
हालांकि यह निजी शिकायत कॉग्निजेबल यानी विधेय अपराध है. इस अपराध के आरोप का संज्ञान सक्षम न्यायालय ने लिया था. जब हम अपने आरोपपत्र पर संज्ञान लेने की प्रक्रिया पूरी करते हुए अदालत गए तो कोर्ट ने इसे ये कहते हुए खारिज कर दिया कि यह एफआईआर के साथ शुरू नहीं हुआ था. ये एक निजी शिकायत है जबकि इस से संबद्ध मामले पर सुप्रीम कोर्ट तक ने कोई आपत्ति नहीं जताई है.