
घर में कमाने वाला कोई नहीं है...मैं अकेली हूं, तो कहीं आने-जाने के लिए बस में चढ़ जाती हूं. सोचना नहीं पड़ता कि मेरे पास पैसे पड़े हैं या नहीं. किराये का पैसा बचता है, तो किसी और काम आ जाता है... 62 साल की सुरेखा देवी 50 साल से दिल्ली में रह रही हैं. कहीं आने-जाने के लिए बस का इस्तेमाल करती हैं और जब से महिलाओं के लिए फ्री बस सेवा की शुरुआत हुई है, उनके लिए सहूलियत हो गई है.
वो कहती हैं, 'अगर हमारे लिए बस सेवा फ्री नहीं होती तो टिकट लगता, 40 रुपये तो लगते ही लगते... 20 आना, 20 जाना, ये 40 रुपये मेरे किसी और काम आ जाते हैं.'
अक्टूबर 2019 में दिल्ली की डीटीसी और क्लस्टर बसों में महिलाओं के लिए फ्री बस सेवा शुरू हुई थी. इसे पांच साल हो चुके हैं और दिल्ली में अगले महीने चुनाव भी हैं. आंकड़े बताते हैं कि फ्री बस सेवा की शुरुआत के बाद से बस में यात्रा करने वाली महिलाओं की तादाद बढ़ी है. फ्री बस सेवा से महिलाओं को कितना फायदा हुआ है, ये जानने के लिए हम DTC और क्लस्टर बसों में गए, जहां हमने कई लाभार्थी महिलाओं से बात की.
'किराए के बचे पैसों से किताब खरीद लेती हूं'
19 साल की गरिमा कनॉट प्लेस स्थित एक प्राइवेट इंस्टिट्यूट में डी.एल. एड की पढ़ाई कर रही हैं. उनका इंस्टीट्यूट आना-जाना बस से ही होता है और फ्री बस सर्विस से उन्हें फायदा हुआ है. वो कहती हैं, 'मैं हर रोज बस से आती जाती हूं... कई बार पैसे होते हैं, कभी नहीं होते. बस की टिकट फ्री होने से किराया बच जाता है, जिससे कुछ खा लेती हूं, किताबें खरीद लेती हूं.'
17 साल की भूमि, कंप्यूटर साइंस में डिप्लोमा कर रही हैं और वो अपनी क्लासेज, एग्जाम के सिलसिले में नियमित दिल्ली की सरकारी बस से यात्रा करती हैं. हाथ में गुलाबी रंग की फ्री बस टिकट थामे भूमि कहती हैं, 'बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं, जिनके पास कहीं आने-जाने के लिए पैसे नहीं होते. फ्री बस सेवा से पहले उन्हें दिक्कत आती थी लेकिन अब कम से कम उन्हें किराए का नहीं सोचना पड़ता है. तो ये अच्छी बात है.'
भूमि अभी अपनी बात रख ही रही थी कि उनके सामने की सीट पर बैठे बुजुर्ग अपनी बात कहने लगे. नाम था खजान सिंह और उम्र 80 साल से ज्यादा हो चली थी. ये भूमि के दादा जी थे, जो अपनी पोती को कॉलेज ले जाने और ले आने का काम करते हैं. बीच में बोलता देख भूमि ने उन्हें चुप कराने की कोशिश में कहा, 'दद्दा,आपसे ना पूछ रहीं, महिलाओं की कहानी जान रहीं, आपसे मतलब कोनी.'
पोती की बात को अनसुना कर खजान सिंह ने शिकायती लहजे में मुझसे कहा, 'मुझसे नहीं पूछ रही... बताओ. लड़कियों की तो बड़ी भारी समस्या हो रही. 80 साल का हो गया हूं लेकिन पोती की वजह से रोज आना-जाना पड़े है. माहौल कत्ती गंदा हो रिया से (माहौल काफी खराब हो गया है). मार्शल थे तो सही था लेकिन उन्हें भी हटा दिया. एकाध बस में रह गए हैं बस. शहर में गदर मचा हुआ है...बच्चियों की सुरक्षा ही नहीं है.'

बसों में मार्शलों की कमी की समस्या
खजान सिंह की नाराजगी बेवजह नहीं थी. डीटीसी की चार बसों में हमने सफर किया लेकिन किसी में भी मार्शल नहीं दिखे. महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनजर दिल्ली की सरकारी बसों में मार्शलों की नियुक्ति की गई थी.
नवंबर 2023 में बसों में बतौर मार्शल काम कर रहे 10 हजार सिविल डिफेंस वालंटियर्स (CDVs) को उनके काम से हटा दिया गया था. महिलाओं की सुरक्षा के लिए बसों में तैनात CDVs को लेकर वित्त और राजस्व विभाग की तरफ से ऐसी आपत्ति जताई गई कि इनका काम आपदा के असर को कम करने के लिए मदद देना था और बसों में मार्शल के रूप में उनकी नियुक्ति गलत है.
10 हजार मार्शलों को हटाने पर काफी विवाद भी हुआ. नवंबर 2024 में दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने काम से लौटाए गए, 10 हजार CDVs की चार महीनों के लिए वापसी की घोषणा तो की लेकिन बतौर बस मार्शल नहीं बल्कि एंटी पॉल्यूशन काम के लिए.
अब दिल्ली की बहुत कम बसों में ही मार्शल रह गए हैं. उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से आने वाले प्रताप सिंह होमगार्ड हैं और डीटीसी की बस में पांच सालों से मार्शल का काम कर रहे हैं.
वो कहते हैं, 'मैं पांच सालों से बस में काम कर रहा हूं. इतने समय में मेरे से एक दो बार लड़कियों ने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की शिकायत की है. दो-तीन साल पहले की बात है... बस धौला कुआं की तरफ से जा रही थी. एक बच्ची अपने पापा के साथ कहीं जा रही थी और कोई लड़का उसे बस में परेशान कर रहा था. लड़की ने अपने पापा से कहा तो उन्होंने मुझसे शिकायत की. इसके बाद मैंने बच्ची से पूछताछ की और लड़के को पास के पुलिस स्टेशन में जाकर पुलिस के हवाले कर दिया.'
हालांकि, अन्य कई मार्शलों की तरह ही प्रताप सिंह की भी शिकायत है कि वो अपना काम तो पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं लेकिन उनकी सैलरी पर सरकार ध्यान नहीं दे रही. प्रताप कहते हैं कि चार महीनों से उनकी सैलरी नहीं आई है, घर चलाना मुश्किल हो गया है.
'मार्शल होते हैं तो बस में सुरक्षित महसूस होता है'
बस मार्शलों के बारे में मैंने जितनी भी महिलाओं से बात की, उनमें से लगभग 50 फीसदी ने शिकायत की कि बस में अगर कोई झगड़ा हो गया या सीट को लेकर कोई बात हो गई तो मार्शल कोई प्रतिक्रिया नहीं देते. हां, उन्होंने ये जरूर कहा कि बस में अगर मार्शल होते हैं तो वो अपेक्षाकृत ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं.

गरिमा ने बताया कि कई बार घर जाते वक्त कई बार रात के 8-9 बज जाते हैं और बस में जब मार्शल होते हैं तो उन्हें डर कम लगता है.
वो कहती हैं, 'बस में मार्शल होते हैं, तो सुरक्षा होती है. कई बार बस लेट हो जाती है और रात ज्यादा होने लगती है, तो डर लगने लगता है. बस में अगर कोई मार्शल हो तो डर नहीं लगता. लगता है कि सुरक्षित घर पहुंच जाएंगे.'
18 साल की रेणु कनॉट प्लेस में ही किसी कॉलेज में बी.ए. ऑनर्स की पढ़ाई कर रही हैं और वो पुरानी दिल्ली से आती हैं. रेणु बताती हैं, 'बस से फ्री में आती हूं, पैसे बच जाते हैं मेरे. बस की सभी बातें सही हैं लेकिन अब मार्शल सभी बसों में नहीं होते. मैं पुरानी दिल्ली की तरफ से आती हूं. कई बार रात हो जाती है और बस पूरी खाली रहती है तो डर लगने लगता है. लेकिन जब मार्शल होते हैं तो डर नहीं लगता.'
हालांकि, गरिमा ने बस मार्शलों को लेकर शिकायत भी है कि वो बस में हो रहे छोटे-मोटे झगड़ों को नजरअंदाज कर देते हैं और 'कान में तेल डालकर' पड़े रहते हैं. वो कहती हैं, 'कई बार ऐसा होता है कि महिलाओं की रिजर्व सीट पर अच्छे-खासे नौजवान पुरुष बैठ जाते हैं. उठाने पर भी नहीं उठते. कहते हैं कि एक तो फ्री में चल रही हो, ऊपर से दूसरों को सीट से उठाकर बैठोगी. मार्शल भी इन बातों पर ध्यान नहीं देते, अनसुना कर देते हैं.'
फ्री बस टिकट से कामकाजी महिलाओं को कितना फायदा?
50 साल की कांता देवी मंडी हाउस स्थित राउज एवेन्यू कोर्ट में काम करती हैं और ऑफिस आने के लिए बस का इस्तेमाल करती हैं.
कांता देवी बताती हैं, 'पांच साल से बस से ऑफिस आती-जाती हूं, पैसे नहीं लगते तो अच्छा लगता है कि चलो कुछ पैसे बचेंगे तो बच्चे की पढ़ाई में लगा दूंगी. बेटे का कोर्स है, उसे जैसे-तैसे पढ़ा रही हूं. बस से मेरे घर और ऑफिस का आसान सा रास्ता है, तो इससे भी ऑफिस आने-जाने में आसानी होती है.'
सुगंधी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में काम करती हैं और हर रोज बस से ही ऑफिस आना-जाना होता है. वो बताती हैं, 'बस से इसलिए ऑफिस आ जाती हूं क्योंकि पहली बात- बस फ्री है. दूसरी बात- बस का रास्ता मेरे लिए आसान पड़ता है, टिकट फ्री होने से तो हमें बहुत फायदा हुआ है.'
लेकिन सुगंधी को एक शिकायत भी है और ये शिकायत लगभग हर उस महिला की है, जो दिल्ली की सरकारी बस में यात्रा कर रही है.
सुगंधी शिकायती लहजे में कहती हैं, 'सब ठीक है लेकिन जब से फ्री बस सर्विस शुरू हुई है, कंडक्टर टिकट देने को राजी नहीं होता, दूसरा बस ड्राइवर गेट खोलने को राजी नहीं होता. उन्हें लगता है कि औरतें तो फ्री में जा रही हैं, इनके लिए क्यों रुकना, ड्राइवर दूसरी तरफ देखते हुए निकल जाता है.'

महिला यात्रियों के लिए नहीं रुकते बस ड्राइवर?
महिलाओं के इन आरोपों को मैंने एक बस ड्राइवर रविंदर के सामने रखा. हरियाणा के रहने वाले रविंदर पिछले पांच सालों से डीटीसी की बस चला रहे हैं. महिलाओं के आरोपों पर उन्होंने कहा, 'ऐसा नहीं है जी, टिकट का पैसा कौन सा हमारी जेब में जा रहा है जो हम महिलाओं को देखकर बस नहीं रोकेंगे. हम हर बस स्टैंड पर गाड़ी रोकते हैं अगर कोई सवारी दिखे वहां. महिला-पुरुष में फर्क नहीं करते.'
डीटीसी बस में बस कंडक्टर का काम कर रहे रमेश भी महिलाओं को आरोपों को खारिज करते हैं लेकिन वो दबी जुबान में बताते हैं कि बस ड्राइवरों को किलोमीटर का टार्गेट पूरा करना होता है.
वे कहते हैं, 'ड्राइवरों पर टार्गेट का दबाव रहता है. इसलिए जो बस में चढ़ गया, चढ़ गया, जो पीछे छूट गया, उसके लिए नहीं रुकते. कुछ लोग भी तो वैसे ही होते हैं, इधर-उधर देखते रहेंगे, बस में चढ़ने के बजाए. अब ड्राइवर जाकर उन्हें बस में तो चढ़ाएगा नहीं.'
रमेश ने इस बात से भी इनकार किया कि बस कंडक्टर महिलाओं को पिंक टिकट देने में आनाकानी करते हैं. उन्होंने कहा, 'आपने तो देखा कि बस में इतनी भीड़ होने के बावजूद, मैंने सभी महिलाओं को टिकट दिए. किसी ने अपने साथ वाले के लिए भी मांगे तो मैंने दे दिए. टिकट क्या मेरे घर से आ रहा या न देकर मुझे कोई फायदा हो रहा जो मैं टिकट नहीं दूंगा?'
'एक तो फ्री में बस में जाएंगी, ऊपर से सीट भी चाहिए'
बातचीत के दौरान मुझसे बहुत सी महिलाओं ने कहा कि उनके लिए रिजर्व सीट पर अकसर पुरुष बैठे होते हैं और उठाने पर भी नहीं उठते.
सुगंधी कहती हैं, 'महिलाओं की सीट पर पुरुष बैठ जाते हैं, फिर वो नहीं उठते, चाहे तबीयत खराब हो या कोई परेशानी हो, सीट नहीं मिलती. मेरे सामने ही एक बार ऐसा हुआ कि एक आंटी ने एक लड़के से महिला सीट खाली करने को कहा. लड़के तुनक गया और उठने से मना कर दिया. दोनों में कहासुनी होने लगी तो आसपास के जेंट्स ताने देने लगे कि एक तो फ्री में चलती हैं ये, ऊपर से सीट के लिए लड़ाई भी करती हैं. सरकार ने छूट दे रखी है. ये सब देखकर किसी को सीट से उठने के लिए कहने में भी डर लगता है.'
बसों में बढ़ी महिलाओं की संख्या
अक्टूबर 2024 में एक रिपोर्ट आई जिसमें बताया गया कि डीटीसी और महिलाओं की दिए जाने वाले पिंक फ्री बस पास की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. वित्त वर्ष 2020-21 में कुल टिकट बिक्री में पिंक पास का हिस्सा 25% था. 2021-22 में यह 28%, 2022-23 में इसमें बढ़ोतरी हुई. वित्त वर्ष 2023-24 में कुल टिकट बिक्री में पिंक पास का हिस्सा 46% हो गया. इस दौरान डीटीसी में रोजाना औसतन 26 लाख लोगों ने यात्रा की जबकि क्लस्टर बसों में लगभग 16.4 लाख यात्री चढ़े.

बस कंडक्टर रमेश ने बताया कि फ्री बस टिकट शुरू होने के बाद वीकेंड यानी शनिवार खासकर रविवार के दिन बसों में महिलाओं की भीड़ बढ़ गई है. वे कहते हैं, 'बस में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं यात्रा करती हैं क्योंकि पुरुष तो अपनी बाइक, गाड़ी से निकल जाते हैं. महिलाएं सरकारी बसें ज्यादा यूज करती हैं. शनिवार, रविवार तो बस में महिलाओं की भीड़ और ज्यादा होती है. कनॉट प्लेस में शॉपिंग के लिए आती हैं सब वीकेंड्स में तो भीड़ बढ़ जाती है. कई घूमने के लिए निकल जाती हैं परिवार, बच्चों के साथ.'
पिछले साल अक्टूबर में आई Greenpeace India की एक सर्वे रिपोर्ट आई थी, 'Riding The Justice Route.' इस रिपोर्ट से पता चला कि दिल्ली में 45 फीसदी महिलाएं कभी भी बस का इस्तेमाल नहीं करती हैं जबकि 35 प्रतिशत महिलाएं रोजाना या हफ्ते में तीन से पांच दिन बस से यात्रा करती हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं के लिए फ्री टिकट की शुरुआत के बाद से हर चार में से एक महिला ने बसों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. योजना की शुरुआत के बाद से, 23 फीसदी महिलाओं ने हफ्ते में कम से कम चार बार बस का इस्तेमाल शुरू कर दिया और 15 प्रतिशत महिलाएं, जो पहले कभी-कभार या कभी भी बसों का इस्तेमाल नहीं करती थीं, अब नियमित रूप से बसों का इस्तेमाल करती हैं.
सर्वे में 510 महिलाओं ने हिस्सा लिया था और इनमें से 50 प्रतिशत महिलाओं ने कहा था बस स्टॉप तक जाते समय, बस का इंतजार करते समय और बस में यात्रा करते समय उन्हें सुरक्षित महसूस होता है. सर्वे में यह भी बताया गया है कि 77 फीसदी महिलाएं शाम 5 बजे के बाद बस से यात्रा करते समय असुरक्षित महसूस करती हैं. हर तीन में से दो महिलाओं की शिकायत थी कि बस स्टॉप पर रोशनी कम होती है.

फ्री होने के बावजूद किराया देती हैं कई महिलाएं
रमेश ने बताया कि बस में कुछ महिलाएं ऐसी भी आती हैं, जो फ्री पास होने के बावजूद, पैसे देकर टिकट खरीदती हैं. हालांकि, उनकी संख्या बेहद कम होती हैं. वे कहते हैं, ' मैं सात सालों से नौकरी कर रहा हूं और पिंक पास को शुरू हुए पांच साल हो गए. इतने साल में दो-तीन लड़कियों ने पैसे देकर मुझसे टिकट लिए है. मैंने उनसे कहा कि आपके लिए फ्री का पिंक टिकट है लेकिन उन्होंने पैसे देकर टिकट लेना सही समझा.'
बस ड्राइवर रविंदर कहते हैं कि कुछ कामकाजी लड़कियों को फ्री में बस में चढ़ने में अच्छा नहीं लगता और वो टिकट लेती हैं.
वे बताते हैं, 'जॉब करने वाली कुछ लड़कियां बस में चढ़ने से हिचकती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वो फ्री में यात्रा कर रही हैं. कई को तो मैंने टिकट लेते देखा है, पैसों की टिकट लेकर बैठती हैं ताकि उन्हें कोई कुछ बोल न पाए सीट वगैरह के लिए. हां, लेकिन ऐसा कभी-कभार ही होता है.'