बिहार के स्थानीय निकाय की विधान परिषद (MLC) की 24 सीटों पर गुरुवार देर शाम नतीजे आए हैं. 13 एमएलसी सीटों पर जीत हासिल कर एनडीए अपनी लाज बचाने में कामयाब रहा तो आरजेडी-भाकपा गठबंधन के खाते में 7 सीटें आई हैं. कांग्रेस अकेले चुनाव लड़कर अपनी इकलौती एमएलसी सीट बचाने में सफल रही तो जेडीयू-बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फायदा केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस की पार्टी एलजेपी को मिला है. चार एमएलसी सीटें निर्दलीयों के खाते में गई हैं. इस तरह एमएलसी चुनाव नतीजे से कई बड़े सियासी संदेश निकले हैं, जो बिहार के भविष्य की सियासत पर असर डाल सकते हैं?
बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी
बिहार एमएलसी चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें बीजेपी के खाते में आई हैं. एनडीए गठबंधन के तहत बीजेपी 12 एमएलसी सीटों पर चुनाव लड़कर सात सीटें जीतने में कामयाब रही और पांच सीटों पर उसे हार मिली है. इस तरह बीजेपी ने अपना प्रदर्शन बेहतर किया है. वहीं, सहयोगी नीतीश कुमार की जेडीयू के 11 प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें से महज पांच प्रत्याशी जीते हैं. इसके अलावा एनडीए में एक सीट केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस की पार्टी को मिली है. 2020 विधानसभा चुनाव की तरह ही एमएलसी चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन जेडीयू से बेहतर रहा है. विधानसभा में बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में है तो अब विधान परिषद में भी उसका पलड़ा भारी हो गया है.
जेडीयू पर आरजेडी भारी पड़ी
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की तरह ही एमएलसी चुनाव में भी जेडीयू पर आरजेडी भारी पड़ी. आरजेडी ने पिछले चुनाव की तुलना में दो सीटें अधिक मिली है. पिछले चुनाव में आरजेडी को 4 सीटें हासिल हुई थीं जबकि इस बार उसे 6 सीटें मिली हैं. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने एमएलसी चुनाव में कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ा, लेकिन लेफ्ट पार्टी को साथ रखा था. इस तरह से आरजेडी ने 23 सीट पर उम्मीदवार उतारे थे और छह सीटों से संतोष करना पड़ा. इसके अलावा एक सीट पर लेफ्ट लड़ी थी, जो जीत नहीं सकी. हालांकि, तेजस्वी के चुनाव प्रचार करने के बावजूद नवादा, मोतिहारी और मधुबनी सीट से पार्टी के अधिकारिक प्रत्याशी के खिलाफ बागी होकर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार जीते हैं. आरजेडी का प्रदर्शन बता रहा है कि तेजस्वी यादव के अगुवाई में आरजेडी लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रही है.
सवर्ण वोट में आरजेडी ने लगाई सेंध
एमएलसी चुनाव नतीजे से एक बड़ा सियासी संदेश निकला है, जो इस बात का इशारा कर रहे हैं कि बिहार की सियासत में नए सियासी समीकरण बन रहे हैं. आरजेडी ने अपने सियासी आधार वाले वोटबैंक का विस्तार किया है. आरजेडी ने मुस्लिम और यादव से आगे बढ़कर मुस्लिम-यादव-भूमिहार समीकरण बनाया है. आरजेडी ने खामोशी से 5 भूमिहार प्रत्याशी बनाए थे, जिनमें से तीन जीतने में सफल रहे. चार राजपूत प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से एक को जीत मिली है. ऐसे ही आरडजेडी ने एक वैश्य समुदाय से विनोद जायसावल को उतारा था, जो जीतने में सफल रहे. आरजेडी ने पहली बार 40 फीसदी सवर्णों को टिकट दिया था और नतीजे 65 फीसदी से भी अधिक रहा. बीजेपी के लिए निश्चित रूप से यह परेशानी है, क्योंकि सवर्ण वोट उसका कोर वोटबैंक माना जाता है.
विधान परिषद में बची राबड़ी की कुर्सी
एमएलसी चुनाव में आरजेडी को इतना सीटें मिल गई हैं, जिससे पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी बची रहेगी. सात सीटें जीतने के साथ ही आरजेडी के पास विधान परिषद सदन की कुल संख्या की 10 फीसदी सीटें से ज्यादा का आंकड़ा हासिल कर लिया है. बिहार विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए कुल सीटों की संख्या की 10 प्रतिशत सीटें (आठ) चाहिए होती हैं. बिहार उच्चसदन में कुल सीटों की संख्या 75 है. आरजेडी के पास पांच सीटें है और अब जीत के बाद नेता प्रतिपक्ष के लिए जरूरी आठ सीटों के आंकड़े को हासिल कर लिया है. इस तरह विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर राबड़ी देवी का कब्जा ही रहेगा.
कांग्रेस ने अकेले दम पर दिखाया दम
एमएलसी चुनाव में कांग्रेस कहती रही, लेकिन आरजेडी ने उसे अपने साथ नहीं रखा. ऐसे में कांग्रेस अकेले चुनावी मैदान में उतरी थी और स्थानीय निकाय कोटे की अपनी सीट को बरकरार रखने में सफल रही है. कांग्रेस 15 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे, जिनमें से उसे महज एक सीट पर जीत मिली है. हालांकि, कांग्रेस पिछले चुनाव में भी एक सीट जीती और इस बार भी उसे एक ही सीट मिली है. इसके अलावा कांग्रेस ने पूर्वी चंपारण की मोतिहारी सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी महेश्वर सिंह को समर्थन किया था, जो जीतने में सफल रहे. इस तरह से कांग्रेस की भले ही सीटें ज्यादा न मिली हों, लेकिन आरजेडी से अलग होकर चुनाव का कांग्रेस को पूर्व में जीते हुए सीट की हानि नहीं हुई है.
निर्दलीय ने भी दिखाया दम
बिहार के एमएलसी चुनाव में सात सीटों पर निर्दलीय लड़ाई में रहे. निर्दलीय जीते या फिर दूसरे स्थान पर रहे. चार निर्दलीय एमएलसी बनने में सफल रहे हैं और तीन दूसरे स्थान पर रहे. इस हिसाब से निर्दलीय कैंडिडिटों ने बीजेपी, जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस चारों को ही तीसरे स्थान पर धकेल दिया. पटना, मधुबनी, सीवान, नवादा, सारण, पूर्वी चंपारण और नालंदा में जीत-हार में निर्दलीयों की ही भागीदारी रही. निर्दलीय के रूप में सारण सीट से सच्चिदानंद राय, पूर्वी चंपारण से महेश्वर सिंह, नवादा से अशोक यादव, मधुबनी से अंबिका गुलाब जीते हैं.
बीजेपी के नेताओं के लिए ये बात निश्चित रूप से परेशान करने वाली रही कि सारण सीट से बागवत कर निर्दलीय उतरे सच्चिदानंद राय फिर जीते. ऐसे ही नवादा, मोतिहारी और मधुबनी में निर्दलीय का जीतना तेजस्वी यादव के चिंता का सबब है, क्योंकि तीनों ही नेता आरजेडी से बागवत कर मैदान में उतरे थे.
पशुपति पारस को मिला फायदा
रामविलास पासवान की सियासी विरासत को लेकर चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग पासवान के बीच सियासी वर्चस्व की जंग में एलजेपी दो हिस्सों में बंट गई. ऐसे में एलजेपी की कमान संभाल रहे पशुपति पारस ने एमएलसी चुनाव में एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फायदा मिला. पशुपति पारस की लोक जनशक्ति का खाता खुल गया. वैशाली-हाजीपुर सीट से इनके उम्मीदवार भूषण राय जीतने में कामयाब रहे. चिराग के लिए यह बड़ा सियासी झटका है तो पशुपति पारस के लिए संजीवनी से कम नहीं है.