बिहार चुनाव के नतीजों के बाद से ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी पार्टी जेडीयू के राजनीतिक समीकरण को दुरुस्त करने के लिए सिर्फ मंथन ही नहीं बल्कि लगातार जरूरी बदलाव भी कर रहे हैं. नीतीश ने पहले जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की कमान अपने सबसे भरोसेमंद और कुर्मी समुदाय से आने वाले आरसीपी सिंह को सौंपी है. वहीं, अब जेडीयू बिहार प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी कोइरी समुदाय से आने वाले उमेश कुशवाहा को दी है. माना जा रहा है कि नीतीश ने अपने परंपरागत और पुराने वोटबैंक कोइरी-कुर्मी समीकरण को मजबूत करने की रणनीति के तहत कदम उठाया है.
उमेश कुशवाहा का सियासी सफर
जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष रहे वशिष्ठ नारायण सिंह के अस्वस्थ होने के चलते उमेश कुशवाहा को जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है. कुशवाहा अभी महज 48 साल के हैं, इस तरह से जेडीयू की कमान एक युवा नेतृत्व के हाथों में सौपी गई. उमेश कुशवाहा का जन्म 3 जनवरी 1973 में हुआ और उन्होंने 1990 में राजनीति में कदम रखा और धीरे-धीरे नीतीश के करीबी नेताओं में शामिल हो गए. जनता दल में रहे और बाद में नीतीश कुमार के साथ समता पार्टी और जेडीयू में शामिल रहे.
उमेश कुशवाहा संगठन में लंबे समय तक रहे, लेकिन पहली बार 2015 में विधायक बने. बिहार के महनार विधानसभा सीट से जेडीयू के टिकट पर विधायक बने, लेकिन 2020 के चुनाव में उन्हें आरजेडी की बीना सिंह के हाथ शिकस्त का सामना करना पड़ा. महनार सीट एक समय बीजेपी की परंपरागत सीट मानी जाती थी और यहां 2010 में डॉ. अच्युतानंद विधायक थे. 2015 में जेडीयू का बीजेपी से गठबंधन टूट गया था और वह आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी, जिसके चलते जेडीयू ने उमेश कुशवाहा को उतारा था और जीत दर्ज की थी.
नीतीश का लव-कुश समीकरण
बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली नई सरकार के मंत्रिमंडल में जेडीयू का लव-कुश फॉर्मूला भले नहीं चल सका हो, पर पार्टी में आरसीपी सिंह और उमेश कुशवाहा को कमान देकर अमलीजामा पहनाने की कवायद जरूर की गई है. नीतीश इसी समीकरण के बदौलत बिहार की सत्ता में आरजेडी के सियासी वर्चस्व को तोड़पाने में सफल हुए थे. एक बार फिर उसी लव-कुश फॉर्मूले को मजबूत करने में जुट गए हैं, क्योंकि माना जाता है कि यह दोनों जातियां जेडीयू के 'कोर वोटर' हैं. इस बार के चुनाव में नीतीश के इस दुर्ग में आरजेडी सेंधमारी करने में कामयाब रही है.
कुर्मी-कुशवाहा विधायकों में आई कमी
बिहार चुनाव में इस कुर्मी और कुशवाहा विधायकों की संख्या भी घट गई है. इस बार 9 कुर्मी समुदाय के विधायक ही जीत सके हैं जबकि 2015 में 16 कुर्मी विधायक जीतने में सफल रहे थे. इस बार जेडीयू के 12 कुर्मी प्रत्याशियों में से 7 ही जीत हासिल कर पाए हैं जबकि बीजेपी के टिकट पर दो कुर्मी विधायक चुने गए हैं. वहीं, कुर्मी समुदाय की तरह कोइरी (कुशवाहा) विधायकों की संख्या में भी कमी आई है.
वहीं, बिहार चुनाव में इस बार 16 कुशवाहा समुदाय के विधायक जीत हासिल कर सके हैं जबकि 2015 के चुनाव में 20 विधायक जीते थे. बीजेपी से 3, जेडीयू से 4, आरजेडी से 4 और सीपीआई (माले) से 4 कुशवाहा समाज के विधायक चुने गए हैं जबकि एक सीपीआई के टिकट पर जीते हैं. इसका खामियाजा नीतीश कुमार की पार्टी को उठाना पड़ा है, जिसके चलते पार्टी तीसरे नबंर पर रही. यही वजह है कि अब नीतीश अपने पुराने वोटबैंक को लेकर भी सक्रिय हो रहे हैं. इसी के चलते उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की कमान कोइरी को सौंपी है तो बिहार की जिम्मेदारी कुशवाहा समुदाय को.
नीतीश लौटे अपने पुराने फॉर्मूले पर
दरअसल, बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार ने कुर्मी और कुशवाहा समीकरण के जरिए जड़ें जमाईं. इसके लिए नीतीश ने पटना के गांधी मैदान में कुर्मी और कोइरी समुदाय की बड़ी रैली की थी, जिसे उन्होंने लव-कुश का नाम दिया था. यह पहली बार था जब नीतीश कुमार ने लालू यादव के सामने खुद को स्थापित किया था और चुनौती दी. नीतीश कुमार ने 2003 में रेल मंत्री रहते हुए बिहार के मुख्य विपक्षी पार्टी की कुर्सी पर उपेंद्र कुशवाहा को बैठाने का काम किया. कुशवाहा को प्रतिपक्ष का नेता बनाकर नीतीश ने बिहार में लव-कुश यानी कुर्मी-कोइरी (कुशवाहा) समीकरण को मजबूत किया. इसी फॉर्मूले के जरिए नीतीश ने 2005 में बिहार की सत्ता की कमान संभाली थी.
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने लव-कुश समीकरण के सहारे खुद को सत्ता के करीब रखा है. लेकिन इस समीकरण में लव को जबरदस्त फायदा मिला तो कुश में नाराजगी दिखी. कुशवाहा समाज के लोगों के बीच में आक्रोश इस बात को लेकर है कि एक तरफ 2.5 प्रतिशत संख्या वाले ने 11 प्रतिशत वालों पर इमोशनल शोषण कर सीएम की कुर्सी पाई है.
1994 से लेकर 2005 तक के सफर में एकतरफ कुर्मी समाज अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया वहीं कुशवाहा समाज पिछलग्गू बनकर रह गया है. इसीलिए उपेंद्र कुशवाहा ने अलग पार्टी बनाई, लेकिन कोई बड़ा करिश्मा नहीं दिखा सके और अब नीतीश की शान में कसीदे गढ़ रहे हैं. वहीं, नीतीश कुमार ने जेडीयू में कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार करते हुए उमेश सिंह कुशवाहा को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर सभी को चौंका दिया है.
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