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दिल्ली-NCR में सांस लेना हुआ दूभर, रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ी अस्थमा-COPD की दवा बिक्री

फार्मास्युटिकल मार्केट इंटेलिजेंस फर्म फार्मारैक के आंकड़ों के अनुसार, सांस से जुड़ी दवाओं का हिस्सा कुल बिक्री का आठ प्रतिशत था. प्रदूषण के कारण सांस लेने में दिक्कतें बढ़ीं, जिससे इनहेलर और ब्रॉन्कोडाइलेटर की मांग में अभूतपूर्व उछाल आया.

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प्रदूषण से अस्थमा की मरीजों ज्यादा दिक्कत.(Photo: Pixabay)
प्रदूषण से अस्थमा की मरीजों ज्यादा दिक्कत.(Photo: Pixabay)

भारत के एक बड़े हिस्से को नवंबर महीने में जहरीली धुंध ने घेर लिया था, इस धुंध की वजह से आसमान तो धुंधला हुआ. बल्कि इस जहरीली धुंध ने अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (अस्थमा) की दवाइयों की सेल भी तीन साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचा दिया. दिल्ली और एनसीआर के लोगों को तो खासतौर पर इस जहरीली हवा में सांस लेने में दिक्कत हुई, यही वजह है कि अस्थमा और अस्थमा के मरीजों की संख्या कई गुना बढ़ गई है और इसी वजह से इनकी दवाइयों की बिक्री इस महीने कई गुना ज्यादा हुई. ऐसा हम नहीं बल्कि फार्मास्युटिकल मार्केट इंटेलिजेंस फर्म फार्मारैक के आंकड़े बोल रहे हैं,

इन आकंड़ों के मुताबिक, पिछले महीने बेची गई सभी दवाओं में सांस लेने से जुड़ी दवाओं का हिस्सा आठ प्रतिशत था, जो गंभीर वायु प्रदूषण से सीधे तौर पर जुड़ा एक असाधारण उछाल दर्शाता है. खुली हवा में आम लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल हो गया था, ऐसे में अस्थमा के मरीजों के लिए तो स्थिति ज्यादा भयानक थी. 

अस्थमा और सीओपीडी के मरीजों के साथ-साथ सिस्टमिक एंटीहिस्टामाइन दवाइयों भी दबदबा रहा. सिस्टमिक एंटीहिस्टामाइन आमतौर पर वो बिना डॉक्टर की पर्ची और डॉक्टर के पर्च से मिलने वाली एलर्जी की दवा होती हैं. Cipla की मशहूर इनहेलर दवाएं फोराकोर्ट, बुडेकोर्ट और डुओलिन, देश की टॉप 10 सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाओं में शामिल रहीं. सिर्फ नवंबर में ही इन दवाओं की बिक्री 194 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. 

अस्थमा और COPD क्यों बढ़ रहे हैं?

अस्थमा में सांस की नलियां सूज जाती हैं और सिकुड़ने लगती हैं. प्रदूषण, धूल, संक्रमण या ठंडी हवा आने पर यह और बढ़ जाता है. COPD पहले सिर्फ ज्यादा धूम्रपान करने वालों में दिखता था, लेकिन अब डॉक्टर कहते हैं कि प्रदूषण इसका सबसे बड़ा कारण बन गया है. लगातार खराब हवा फेफड़ों में सूजन और नुकसान करती है. 

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इनहेलर और ब्रॉन्कोडाइलेटर की डिमांड में रिकॉर्ड उछाल

उत्तर भारत, खासकर दिल्ली-NCR में नवंबर के दौरान AQI कई बार 800 के पार गया, जो खतरनाक लेवल माना जाता है. WHO के अनुसार सुरक्षित AQI सिर्फ 0–50 होना चाहिए. ऐसे में नवंबर में दिल्ली-एनसीआर के लोगों को कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा. अभी भी AQI का लेवल रेड जोन में ही बना हुआ है, जिसकी वजह से लगातर लंग्स से जुड़ी दिक्कतें लोगों में देखने को मिल रही हैं. 

लंबे समय तक खराब हवा में सांस लेने से क्या होता है? 

  • दिल की बीमारियां
  • कैंसर
  • सांस की दिक्कतों
  • प्रेग्नेंसी से जुड़ी समस्याओं
  • दिमागी बीमारियों का खतरा

नई रिपोर्ट में कई राज्यों में नवंबर में सांस की दवाओं की बिक्री में दोहरे अंक की बढ़ोतरी दर्ज हुई है. यानी जो बीमारियां पहले सिर्फ सर्दियों में होती थीं, अब हर साल प्रदूषण के कारण बढ़ने लगी हैं. 

डॉक्टरों की OPD में भी बढ़ी भीड़

डॉक्टरों का कहना है कि इस बार मरीजों की संख्या सामान्य से कहीं ज्यादा रही. 
दिल्ली के CK बिरला हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. विकास मित्तल बताते हैं कि इस साल फोराकोर्ट जैसे इनहेलर और एलर्जी की दवाओं की डिमांड बहुत बढ़ी. 

गुरुग्राम के पारस हेल्थ के डॉ. अरुणेश कुमार के अनुसार, कोविड के बाद लोग अपने सांस से जुड़े लक्षणों को लेकर ज्यादा एक्टिव हो गए हैं. इसलिए वे जल्दी डॉक्टर के पास जा रहे हैं और COPD व एलर्जी की दवाओं का लगातार इस्तेमाल कर रहे हैं.

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आगे बढ़ सकता है खतरा

सर्दी अभी जारी है और प्रदूषण में भी कोई खास सुधार नहीं दिख रहा. डॉक्टरों और एक्सपर्ट का अनुमान है कि आने वाले महीनों में भी इन दवाओं की मांग बढ़ती रह सकती है.यह स्थिति साफ बताती है कि खराब हवा अब सीधा स्वास्थ्य का बड़ा संकट बन चुकी है, जिसका असर दवा बाजार में भी साफ दिखाई दे रहा है. 

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