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वियतनाम में आज भी फट पड़ती हैं बारूदी सुरंगें, क्या है लैंडमाइन संधि, जो टूटी तो खतरे में आ जाएंगे आम लोग?

पोलैंड, फिनलैंड और तीनों बाल्टिक देशों ने हाल में ओटावा संधि से हटने की प्रोसेस शुरू कर दी है, जो एंटी-पर्सनल लैंडमाइंस पर रोक लगाती है. इनका कहना है कि रूस से बढ़ते खतरे को देखते हुए ये कदम उठाना जरूरी हो चुका. वैसे जमीन के नीचे बिछे विस्फोटकों की वजह से सेना कम, लेकिन आम लोग ज्यादा मारे जाते हैं. अमेरिकी माइन्स के चलते आज भी वियतनाम में हादसे हो रहे हैं.

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रूस की आक्रामकता के बीच कई देश लैंडमाइन करार तोड़ने की बात कर रहे हैं. (Photo- Getty Images)
रूस की आक्रामकता के बीच कई देश लैंडमाइन करार तोड़ने की बात कर रहे हैं. (Photo- Getty Images)

जमीन के नीचे बिछे विस्फोटक जंग के बाद भी आम लोगों की जान लेते रहे. इसे ही देखते हुए शीत युद्ध के दौरान एक करार हुआ, जिसके तहत देशों ने एंटी-पर्सनल लैंडमाइंस पर रोक लगा दी. लेकिन अब  रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान यूरोप के कई देश इस संधि से हटने की कोशिश शुरू कर चुके. खासकर रूसी सीमा से सटे देश जमीन के नीचे बारूद बिछाने की इजाजत चाहते हैं ताकि अपनी सीमाओं की सुरक्षा कर सकें.

पाबंदी हट जाए तो न केवल दशकों पहले चली मुहिम बेकार चली जाएगी, बल्कि आम लोगों के लिए खतरे भी कई गुना बढ़ जाएंगे. वियतनाम युद्ध पचास साल पहले खत्म हो चुका, लेकिन अमेरिका की बिछाई बारूदी सुरंगें अब भी वहां तबाही मचाए हुए हैं. 

क्या हैं लैंडमाइन और क्या जोखिम

ये हथियार आधुनिक युद्ध के सबसे खतरनाक और अमानवीय तकनीकों में से एक माना जाता है. इसमें सड़कों के नीचे बारूद या पानी के सोर्स के आसपास विस्फोटक छिपा दिए जाते हैं. जैसे ही इनपर किसी का पैर या दबाव पड़ता है, ये फट पड़ते हैं. वैसे तो ये कंसेप्ट पुराना है, लेकिन दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान इसका प्रयोग खूब दिखा. जर्मनी अपने टैकों के आसपास विस्फोटक छिपा देता था ताकि दुश्मन उस तक न पहुंच सकें.बाद में ये ज्यादा आधुनिक होते चले गए और जंग में इनका इस्तेमाल भी जमकर होने लगा. 

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एंटी-पर्सनल विस्फोटकों की सबसे खतरनाक बात ये है कि इनसे हुआ नुकसान लड़ाई तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि इसके बाद भी महीनों या कई बार सालों तक चलता है. इंटरनेशनल कमेटी ऑफ रेड क्रॉस के मुताबिक, 80 फीसदी से ज्यादा माइन विक्टिम सामान्य नागरिक हैं.  

why some nations want to quit landmine treaty amid russia ukraine war photo AFP

वियतनाम का सबसे ज्यादा हुआ नुकसान

वियतनाम युद्ध में इसी वजह से भारी नरसंहार हुआ, जो जंग के बाद चलता रहा. अमेरिका और वियतनाम के बीच चली लंबी लड़ाई में यूएस आर्मी ने लगभग 75 से 80 लाख टन बम और विस्फोटक सामग्री वियतनाम, लाओस और कंबोडिया की जमीनों पर गिराई. यह क्वांटिटी दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान गिराए गए कुल बमों से कहीं ज्यादा थी. इसका मकसद सिर्फ दुश्मन सैनिकों को मारना नहीं था—बल्कि पूरा जंगल, खेत, गांव, रास्ते, सुरंगें और छिपने की संभावित सारी जगहों को तबाह कर देना था ताकि दुश्मन सेना में कोई न छूटे . 

इन बमों में कई तरह की तकनीकों का इस्तेमाल हुआ ताकि नुकसान ज्यादा से ज्यादा हो सके. इतनी बमबारी की गई कि वियतनाम का कोई कोना अछूता नहीं रहा. कई इलाकों में तो यह अनुमान लगाया गया है कि हर व्यक्ति के हिस्से में 300 किलो विस्फोटक गिरा. वियतनाम एंबेसी की रिपोर्ट के अनुसार, देश के ग्रामीण इलाकों में भी अब भी  तीन लाख अनएक्सप्लोडेड ऑर्डनेंस बाकी हैं, और जो फटे उनकी वजह से हजारों जानें जा चुकीं, जबकि हजारों लोग अपंग हो चुके. 

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क्यों हुआ ऐसा

दरअसल यूएस आर्मी ने जो विस्फोटक बिछाए, उनमें से लाखों बम अनएक्सप्लोडेड ऑर्डनेंस के रूप में रह गए, यानी जो फटे नहीं, लेकिन जमीन में दबे हुए हैं और कभी भी विस्फोट हो सकता है. बच्चों से लेकर खेत में काम करते किसान तक इससे अछूते नहीं रहे. कथित शांति आने के बाद भी वियतनाम में रह-रहकर विस्फोट होते रहे. हालात ये हैं कि आज भी इस देश में लोग जमीन जोतते या पानी के लिए खुदाई करते हुए डरते हैं कि कहीं ब्लास्ट न हो जाए. माइन्स हटाने का काम वहां अब भी चल रहा है, जबकि युद्ध खत्म हुए पचासों साल हो चुके. 

why some nations want to quit landmine treaty amid russia ukraine war photo Reuters

अमेरिका कर रहा भूल-सुधार

इन विस्फोटकों को हटाने का काम लगातार चल रहा है लेकिन बचे-खुचे माइन्स को हटाने में भी लगभग 100 साल लग जाएंगे. अमेरिका ने अपनी गलती मानते हुए इन्हें हटाने के काम में फंडिंग भी शुरू की. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक इसके लिए वो 750 मिलियन डॉलर के करीब दे चुका. हालांकि डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद कथित तौर पर इसपर भी रोक लग चुकी है. 

कब लगी रोक और अब क्यों टूट सकती है संधि

साल 1997 में इंटरनेशनल एग्रीमेंट के तहत 164 देशों ने युद्ध में जमीन के नीचे बारूदी सुरंगें बिछाने पर पाबंदी लगा दी. लेकिन 32 मुल्क अब भी इस करार से दूर हैं. इनमें रूस भी शामिल है. पिछले तीन से ज्यादा सालों से रूस और यूक्रेन जंग जारी है. अमेरिकी सरकार इसमें मध्यस्थता तो कर रही है लेकिन उसका झुकाव भी मॉस्को की तरफ है.

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ऐसे में यूरोप को डर है कि रूस यूक्रेन के एक छोटे हिस्से पर भी कब्जा कर ले तो जल्द ही उसकी सेना यूरोपियन देशों में घुसपैठ कर सकती है. यही वजह है कि बॉर्डर से सटे देश - पोलैंड, फिनलैंड और बाल्टिक (एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया) अब करार से हटने की बात कर रहे हैं. वहीं यूक्रेन में अब भी लैंडमाइंस का काम हो रहा है ताकि रूस उसकी सीमा के भीतर घुसपैठ न कर सके. 

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