साल 1971 में पूर्वी पाकिस्तान जब टूटकर बांग्लादेश बना, तब भी पाकिस्तान के भीतर कई हिस्से सुलग रहे थे. अलगाव की मांग वक्त के साथ और मजबूत हुई. इसमें सिंधी बोलने वाले लोग सिंधुदेश की मांग करते रहे. अब हाल में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयान ने पहले से डरे पाकिस्तान को और बौखला दिया है.
डिफेंस मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने कहा कि आज सिंध की जमीन भारत का हिस्सा भले न हो, लेकिन सभ्यता के हिसाब से सिंध हमेशा हमारा हिस्सा रहेगा.और जहां तक जमीन की बात है, कब बॉर्डर बदल जाए कौन जानता है. हो सकता है कि कल सिंध दोबारा भारत का हिस्सा हो जाए. एक सम्मेलन के दौरान वे यह बात कर रहे थे. उन्होंने लाल कृष्ण आडवाणी की एक किताब का जिक्र करते हुए कहा कि सिंधी हिंदू अब भी खुद को भारत से अलग नहीं मानते हैं.
जनसंख्या किस तरह की
बंटवारे के दौरान सिंध प्रांत पाकिस्तान के पास चला गया क्योंकि यहां मुस्लिम आबादी ज्यादा थी. फिलहाल बलूचिस्तान और पंजाब के बाद सिंध, पाकिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा प्रांत है. बंटवारे से पहले वहां 71.5 प्रतिशत मुस्लिम, जबकि 26.4 प्रतिशत सिंधी थे. बाकी आबादी ट्राइब्स की थी. इनमें बहुत से लोग राजस्थान और कच्छ के थे, जिनकी भाषा अलग थी. पार्टिशन के बाद काफी लोग भारत आ गए. जो बाकी रहे, उनकी आबादी भी कम होती चली गई. खुद ह्यूमन राइट्स कमीशन ऑफ पाकिस्तान मानता है कि सिंधी हिंदू सुरक्षित नहीं.
सिंध प्रांत के भीतर भी उनकी बड़ी आबादी कराची, हैदराबाद, लरकाना, सक्खर, थट्टा, बदीन, शिकारपुर और मीरपुर खास जैसे जिलों में ज्यादा है. कराची में सिंधी आबादी घनी है, लेकिन शहर में दूसरी जातियों के ज्यादा होने से वे अल्पसंख्यक दिखते हैं.

किस वजह से बढ़ी नाराजगी और दूरियां
भाषा के आधार पर सिंधी हिंदुओं और मुस्लिमों में शुरुआत से ही दूरी रही, जो वक्त के साथ बढ़ती चली गई. दरअसल सिंधी हिंदू यहां खेती-किसानी करते हैं, मजदूरी, या फिर नौकरियां. नौकरियां में भी वे मुस्लिम सिंधियों के अंडर में काम करते हैं.
सिंधी लोग कहते हैं कि सिंध प्रांत के प्राकृतिक संसाधन, जैसे गैस, तेल, खदानें और बंदरगाहों से मिलने वाली कमाई का बड़ा हिस्सा सेंटर ले लेता है.
कराची जैसे शहरों में उर्दू भाषी आबादी बढ़ने के बाद सिंधी लोग अपनी राजनीतिक ताकत और पहचान कमजोर पा रहे हैं. वे नाराज हैं कि उनकी भाषा और कल्चर को वैसी जगह नहीं मिली, जैसे पंजाब को, जबकि वे भी आकार और कुदरती तौर पर समृद्ध हैं. बराबरी की मांग करने पर सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता गायब होने लगे. इससे नाराजगी गहराती चली गई.
मुस्लिम आबादी भी पहले सिंधुदेश की समर्थक थी
1970 के दशक में अलग सिंधुदेश की मांग होने लगी. वैसे तब आंदोलन के नेता जीएम सैयद थे, जो खुद मुस्लिम थे. मुस्लिम लीग से जुड़े नेता को लगा कि पाकिस्तान बनने के बाद से सिंधियों के राजनीतिक हक कम हो रहे हैं. साथ ही उसे कहीं भी वो जगह नहीं मिली, जिसके वो हकदार थे.
आंदोलन को कमजोर करने के लिए इस्लामाबाद ने कई तरीके अपनाए. वे दूसरे इलाकों से उर्दू भाषियों को सिंध भेजने लगी ताकि सिंधी आबादी कमजोर पड़े. इससे हुआ ये कि हिंदू सबसे ज्यादा लपेटे में आए. उनपर भाषागत और सांस्कृतिक तौर पर अलग होने के चलते हिंसा होने लगी. तब अलगाव का आंदोलन एक तरह से सिंधी हिंदुओं के पास चला गया.

किन इलाकों को शामिल करने का प्रस्ताव
इसकी मांग करने वाले समूह आम तौर पर पूरे सिंध को इसके दायरे में मानते हैं. इसमें मुख्य इलाकों को देखें तो कराची, हैदराबाद, लरकाना, खैरपुर, शिकारपुर, मीरपुर खास, थट्टा और बदीन इलाके, उमरकोट सक्खर और रोहड़ी जैसे कई क्षेत्र प्रस्तावित हैं. इनका एक झंडा भी है. लाल रंग के झंडे में बाई और नीला हिस्सा है, जो सिंधु नदी का प्रतीक है. वैसे ये झंडा कई बार छोटे-मोटे बदलावों से गुजरता रहा. पाकिस्तान अलगाव को खारिज करता है लेकिन राष्ट्रवादी गुट इसे ही अपनी पहचान बताने लगे.
सिंध में हिंदू लगभग सात प्रतिशत ही रह गए हैं. ये डेटा भी अक्सर बदलता रहता है. वहां नाबालिग हिंदू बच्चियों के अपहरण और जबरन इस्लाम कबूल करवाने की घटनाएं सामने आती रहती हैं. अल्पसंख्यक होने के कारण धमकी, जमीन कब्जाने की शिकायतें आम हैं. कई गरीब हिंदू परिवार बंधुआ मज़दूरी में फंसे हुए हैं. यहां तक कि पुलिस और अदालतें भी उनके लिए सख्त रहीं.
क्या भारत के साथ आना चाहता है
वैसे सिंधी भाषी लोग हमेशा आजाद सिंध की बात करते रहे, लेकिन बीच-बीच में कुछ राष्ट्रवादी संगठन यह भी मानते हैं कि सिंध भारत से कल्चरल तौर पर बेहद करीब है. या फिर अलग पाकिस्तान उनकी न सुने तो कहीं न कहीं भारत उनकी सुनेगा. हालांकि राजनीतिक तौर पर यह आधिकारिक मांग नहीं मानी जाती.
भारत भी खुले तौर पर सिंधुदेश की मांग को सपोर्ट नहीं करता. यह कूटनीतिक मसला है. अगर भारत अलगाववाद को सपोर्ट करेगा तो पाकिस्तान इसे आंतरिक मामलों में दखल की तरह लेगा. यही वजह है कि बलूचिस्तान से भी भारत की मदद की मांग आने पर हमारे यहां से कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं हुई. अब इस सबके बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का बयान पाकिस्तान को परेशान कर रहा है.