दिल्ली में कुछ ही महीने में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी अकेले ही उतरेगी. इससे पहले माना जा रहा था कि विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन हो सकता है. आम आदमी पार्टी ने साफ कर दिया है कि वो विधानसभा चुनाव में किसी से गठबंधन नहीं करेगी.
कांग्रेस ने भी कुछ दिन पहले सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया था. आम आदमी पार्टी भी 70 में से 11 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम घोषित कर चुकी है.
दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था. आम आदमी पार्टी ने 4 और कांग्रेस ने 3 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन ये गठबंधन एक भी सीट नहीं जीत सका था. बीजेपी ने लगातार तीसरे चुनाव में सभी सातों सीटों पर जीत दर्ज की थी.
कभी दोस्ती तो कभी दूरी
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में कभी दोस्ती होती है तो कभी दूरी ही बनी रहती है. कांग्रेस के समर्थन से ही पहली बार अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे.
2013 में हुए विधानसभा चुनाव में पहली बार आम आदमी पार्टी चुनावी मैदान में उतरी. पहले चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 28 सीटें जीतीं. 31 सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. कांग्रेस को 8 सीटें मिलीं. किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. बाद में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई. इस सरकार में अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने.
लेकिन जल्द ही इस गठबंधन पर सवाल उठने लगे. सवाल उठे कि जिस आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा था, बाद में उसी के साथ मिलकर सरकार बना ली. गठबंधन में भी बात बिगड़ने लगी और ये सरकार महज 49 दिन ही चली. 14 फरवरी 2014 को अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया और कहा कि विधानसभा में बहुमत नहीं है, इसलिए जन लोकपाल बिल पास नहीं करा पा रहे हैं, इसलिए फिर से चुनाव के बाद पूर्ण बहुमत के साथ लौटेंगे.
2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया. ये पहली बार था जब किसी पार्टी को इतनी ज्यादा सीटें मिली थीं. कांग्रेस का तो पूरी तरह सफाया हो गया था.
जब साथ आए केजरीवाल और कांग्रेस
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले 26 विपक्षी पार्टियों ने मिलकर इंडिया ब्लॉक बनाया. इस गठबंधन ने बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ा. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस भी इंडिया ब्लॉक का हिस्सा हैं. दोनों ने मिलकर दिल्ली, हरियाणा, गुजरात और गोवा में लोकसभा चुनाव लड़ा.
दिल्ली की 7 सीटों में 4 पर आम आदमी पार्टी और 3 पर कांग्रेस लड़ी. आम आदमी पार्टी को 24 तो कांग्रेस को लगभग 19 फीसदी वोट मिले. लेकिन दोनों पार्टियां एक सीट भी नहीं जीत सकी.
हरियाणा में भी आम आदमी पार्टी को 10 में से एक सीट मिली थी. लेकिन वो नहीं जीत सकी. कांग्रेस ने 5 सीटें जीती थीं. कांग्रेस का वोट शेयर लगभग 44 फीसदी था. आम आदमी पार्टी को 4 फीसदी वोट भी नहीं मिले थे. वहीं, गुजरात और गोवा में भी दोनों साथ मिलकर लड़ी. दोनों ही जगह कांग्रेस 1-1 सीट ही जीत सकी.
वहीं, पंजाब में आम आदमी पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा था. 2022 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 117 में से 92 सीट हासिल की थी. पार्टी को यहां अपने दम पर अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद थी. इसलिए उसने किसी के साथ न जाने का फैसला लिया. हालांकि, लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी खास प्रदर्शन नहीं कर पाई. उसे 13 में से मात्र 3 सीटों पर ही जीत मिली. जबकि, कांग्रेस ने 7 सीटें जीत लीं.
पिछले महीने एक इंटरव्यू में दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष देवेंदर यादव ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को 'गलती' बताया था. उन्होंने कहा था, गलती एक बार होती है और उसे बार-बार नहीं दोहराया जाता. यादव ने कहा था कि आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा है.
हरियाणा में बात बनते-बनते रह गई
लोकसभा चुनाव के बाद जब हरियाणा के विधानसभा चुनाव हुए, तब भी दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर काफी लंबे वक्त तक बातचीत चली. हालांकि, दोनों के बीच सीट शेयरिंग का फॉर्मूला नहीं बन पाया. आखिरकार दोनों ही पार्टियां अकेले-अकेले मैदान में उतरीं.
हरियाणा की 90 में से 48 सीटें जीतकर बीजेपी ने तीसरी बार सरकार बनाई. कांग्रेस को 37 सीटें मिलीं. आम आदमी पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल सकी.
इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को 1.79 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस को 39.09 और बीजेपी को 39.94 फीसदी वोट मिले. यानी, बीजेपी और कांग्रेस के वोट शेयर में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था. जानकार मानते हैं कि अगर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में गठबंधन हो जाता, तो बीजेपी को इतना ज्यादा फायदा नहीं मिलता.
हरियाणा में बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त सत्ता-विरोधी लहर थी. एग्जिट पोल भी बीजेपी की विदाई का अनुमान लगा रहे थे. लेकिन बीजेपी ने इस बार अपनी अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की. इससे पहले 2014 के चुनाव में बीजेपी ने 47 सीटें जीती थीं.
दिल्ली में क्यों नहीं आए साथ?
आम आदमी पार्टी के आने के बाद दिल्ली में कांग्रेस लगातार कमजोर ही हुई है. कांग्रेस अब यहां इतनी कमजोर हो गई है कि मुकाबले में दिखती ही नहीं है. दिल्ली में मुख्य मुकाबला बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच ही माना जाता है.
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां 8 सीटें जीती थीं. लेकिन 2015 और 2020 में कांग्रेस का एक भी विधायक विधानसभा नहीं पहुंच पाया. उसका वोट शेयर भी लगातार घट रहा है. 2013 के चुनाव में कांग्रेस को लगभग 25 फीसदी वोट मिले थे. 2015 के चुनाव में उसे 9.7 फीसदी और 2020 में 4.3 फीसदी वोट ही मिले थे.
कमोबेश यही हाल लोकसभा में भी है. 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सभी सातों सीटें जीती थीं. उसे 57 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. लेकिन 2014 के चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 15 फीसदी हो गया और पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी. 2019 में कांग्रेस का वोट शेयर बढ़कर लगभग 23 फीसदी तो हुआ लेकिन सीट एक भी नहीं मिली. इसी साल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 19 फीसदी वोट मिले. इस बार भी कांग्रेस यहां एक भी सीट नहीं जीत सकी.
एक तरह से देखा जाए तो कांग्रेस के लिए दिल्ली उन राज्यों में से एक बन गया है, जहां पार्टी का जनाधार बहुत कम हो गया है. पिछले तीन विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई है.
शायद यही वजह है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल कोई रिस्क नहीं लेना चाहते. उन्हें शायद इस बात का अंदाजा है कि अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन किया तो इसका नुकसान उन्हें ही होगा. क्योंकि कांग्रेस का वोट गठबंधन में ट्रांसफर होने की बजाय बीजेपी को मिल सकता है.