ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में आतंकवादी हमले में अब तक 15 मौतें हो चुकीं. यह टारगेटेड अटैक था, जो यहूदियों पर किया गया, यानी वे लोग जो धार्मिक तौर पर इजरायल से जुड़े हुए हैं. दुनिया में यही आबादी सबसे ज्यादा मजहबी नफरत का शिकार हो रही है. एंटी-सेमिटिज्म की लहर के बीच मुस्लिम-बहुल देश अजरबैजान पूरी तरह से फिलो-सेमिटिक है, मतलब यहूदियों से लगाव रखने वाला.
क्या है एंटी-सेमिटिज्म का इतिहास
यह एक विचारधारा है, जो यहूदियों से नफरत पर टिकी हुई है. ऐसे लोग यहूदी मूल के लोगों पर हेट कमेंट्स करते हैं, हिंसा करते हैं, यहां तक कि उन्हें खत्म करने की कोशिश करते हैं. इस नफरत की जड़ें काफी गहरी हैं. सदियों पहले क्रिश्चियन्स ने आरोप लगाया कि यहूदी कैथोलिक बच्चों को मारकर जादू-टोना करने की कोशिश करते हैं. इसके बाद से यहूदियों से डर बढ़ा जो जल्द ही नफरत में बदल गया. लेकिन क्रिश्चियन्स ही नहीं, मुस्लिम आबादी भी यहूदियों से बेहद दूर रहती आई. गाजा में हमास और इजरायल की जंग के बाद से इस्लाम को मानने वाले देश ही नहीं, आम मुस्लिम भी यहूदियों के खिलाफ बोलने लगे.
अमेरिका से लेकर अब सिडनी में भी उनपर हमला हुआ. यही एंटी-सेमिटिज्म है. इसका बिल्कुल उलट है, फिलो सेमिटिज्म. ये लोग यहूदियों को पसंद करते हैं और उनकी रक्षा करना चाहते हैं. इसे जूडोफीलिया भी कहते हैं.
दुनिया में तकरीबन सारे ही मुस्लिम देश एंटी-सेमिटिक सोच रखते हैं. यहां तक कि ज्यादातर देशों ने इजरायल को देश बतौर मान्यता तक नहीं दी है. वहीं अजरबैजान इससे अलग दिशा में काम करता रहा. ये देश इजरायल के साथ न तो सीमा साझा करता है, न ही धार्मिक सोच, इसके बाद भी यह यहूदियों के हित में बात करता आया.

अजरबैजान क्यों है अलग
इजरायल और अजरबैजान के बीच दोस्ती सिर्फ कूटनीतिक नहीं बल्कि रणनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक वजहों से है. अजरबैजान को अक्सर फिलो-सेमिटिक कहा जाता है, यानी यहूदी समुदाय के लिए पॉजिटिव और सम्मानजनक रवैया रखने वाला. यह रिश्ता कई परतों में समझा जा सकता है.
अजरबैजान–इज़रायल साझेदारी तीन दशक पुरानी है, जब न्यूयॉर्क में इजरायल और अजरबैजान के लीडर्स की सीक्रेट मुलाकात हुई थी. इजरायल को एनर्जी की जरूरत थी, जबकि अजरबैजान को सैन्य तकनीक की. दोनों ने म्युचुअल हित देखते हुए व्यापारिक पार्टनरशिप कर ली. जल्द ही ये रिश्ता व्यापारिक हितों से आगे बढ़ने लगा और अजरबैजान तेल अवीव के पक्के दोस्त की तरह दिखाई देने लगा.
गाजा जंग पर भी नहीं की टिप्पणी
अक्तूबर 2023 में आतंकी संगठन हमास के यहूदियों पर हमले के बाद जब इजरायल ने गाजा पट्टी पर जवाबी अटैक किया, तब तमाम मुस्लिम देश, यहां तक कि यूरोपीय देशों ने भी तेल अवीव को ही घेरा. इस बीच भी अजरबैजान ने चुप्पी को चुना. वो न तो गाजा को सपोर्ट कर रहा था, न इजरायली एक्शन की बुराई कर रहा था. ये सलेक्टिव चुप्पी थी. बेहद दबाव पड़ने पर उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि गाजा की त्रासदी खत्म होनी चाहिए.
इसके अलावा भी कई वजहें रहीं. अजरबैजान में यहूदी समुदाय सदियों से मौजूद है, खासकर माउंटेन ज्यूज. यह एक मिसाल है जहां मुस्लिम-बहुल देश में यहूदी आबादी ऐसे सुरक्षित ढंग से रहती आई. यहां मस्जिद और सिनेगॉग एक ही शहर में रहे और कहीं कोई धार्मिक मुश्किल नहीं हुई.

दूसरा बड़ा कारण राजनीति और सुरक्षा है. इजरायल और अजरबैजान दोनों खुद को ऐसे पड़ोसियों से घिरा पाते हैं जिन्हें वे रणनीतिक चुनौती मानते रहे. अजरबैजान का ईरान के साथ रिश्ता कॉम्प्लिकेटेड है. वहीं इजरायल भी ईरान से परेशान रहा. साझा चिंता ने दोनों देशों को साझेदार बना दिया. वे आपसी मदद करने लगे.
तीसरा कारण डिप्लोमेसी है. अजरबैजान खुद को धर्मनिरपेक्ष और वेस्ट के लिए भरोसेमंद मुस्लिम देश के रूप की तरह पेश करना चाहता है. इजरायल से करीबी रिश्ते उसे अमेरिका और यूरोप में अलग पहचान दिलाते हैं.
कई और देश भी फिलो-सेमिटिक
- चेक गणराज्य सबसे ज्यादा फिलो-सेमिटिक देशों में गिना जाता है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से इसके इजराइल के साथ मजबूत संबंध हैं.
- हंगरी ने भी इजरायल के साथ अच्छे संबंध रखे हुए हैं. यूरोपीय संघ में इसने कई बार इजराइल-विरोधी प्रस्तावों को डायल्यूट किया.
- नीदरलैंड ऐतिहासिक रूप से यहूदियों के लिए सुरक्षित समाज रहा, जो सुरक्षा मामलों में भी उसके साथ काम करता है.
- अमेरिका दुनिया का सबसे खुला हुआ फिलो-सेमिटिक देश रहा, खासकर यहां की राजनीति में यही रवैया रहा.
- जर्मनी दूसरे वर्ल्ड वॉर में होलोकॉस्ट के कारण खुद को गिल्टी मानता रहा और यहूदियों की सुरक्षा की बात करता रहा.
- भारत के भी इजरायल के साथ कूटनीतिक, सैन्य और सामाजिक संबंध हैं. यहां हिमाचल प्रदेश यहूदियों का लगभग स्थाई ठौर बना हुआ है.