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दिल्ली में नवंबर में चुनाव करवाना क्यों है नामुमकिन? समझें वो प्रक्रिया जिस कारण फंस सकता है पेच

मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का ऐलान करने के साथ ही अरविंद केजरीवाल ने नवंबर में विधानसभा चुनाव कराने की भी मांग कर दी है. उनका कहना है कि महाराष्ट्र के साथ ही दिल्ली में भी नवंबर में चुनाव कराए जाएं. दिल्ली में फरवरी में विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है. ऐसे में जानते हैं कि क्या नवंबर में चुनाव कराना मुमकिन है?

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अरविंद केजरीवाल ने नवंबर में दिल्ली में चुनाव कराने की मांग की है. (फोटो-PTI)
अरविंद केजरीवाल ने नवंबर में दिल्ली में चुनाव कराने की मांग की है. (फोटो-PTI)

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा देने का ऐलान किया है. सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद जेल से बाहर आने के एक दिन बाद ही उन्होंने इस्तीफा देने की बात कही. मंगलवार को आम आदमी पार्टी के विधायक दल की बैठक होगी, जिसमें अगले मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगेगी.

15 सितंबर को आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने कहा, 'मैं मुख्यमंत्री की कुर्सी से इस्तीफा देने जा रहा हूं. और मैं तब तक सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा, जब तक जनता अपना फैसला न सुना दे.'

इस्तीफा देने के साथ ही केजरीवाल ने दिल्ली में नवंबर में ही विधानसभा चुनाव कराने की भी मांग की. उन्होंने कहा, 'फरवरी में दिल्ली के चुनाव हैं. मैं ये मांग करता हूं कि ये चुनाव नवंबर में महाराष्ट्र के साथ कराए जाएं.'

क्या ऐसा हो सकता है?

दिल्ली की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 23 फरवरी 2025 तक है. इस हिसाब से मोटा-मोटा पांच महीने का वक्त बाकी है.

जनप्रतिनिधि कानून की धारा 15 के तहत, किसी राज्य की विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से 6 महीने पहले तक चुनाव आयोग वहां चुनाव कराने का ऐलान कर सकता है. यानी कि चुनाव आयोग चाहे तो चुनाव की तारीखें घोषित कर सकता है.

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हालांकि, आमतौर पर ऐसा तभी होता है, जब वहां की विधानसभा भंग हो जाती है. अभी दिल्ली की विधानसभा भंग नहीं हुई है. जल्द चुनाव कराने के लिए दिल्ली सरकार को विधानसभा भंग करने की सिफारिश करनी होगी. इसके बाद उपराज्यपाल विधानसभा भंग करेंगे. 

यहां भी फंस सकता है पेच!

अगर विधानसभा भंग भी हो जाती है, तब भी नवंबर में चुनाव कराने का पेच फंस सकता है. दरअसल, अभी दिल्ली का इलेक्टोरल रोल तैयार होना बाकी है.

केजरीवाल का कहना है कि महाराष्ट्र के साथ ही दिल्ली के भी चुनाव नवंबर में करा दिए जाएं. लेकिन महाराष्ट्र के इलेक्टोरल रोल की प्रक्रिया चुनाव आयोग ने जून में ही शुरू कर दी थी. इलेक्टोरल रोल तैयार करने की प्रक्रिया में दो से तीन महीने का वक्त लगता है. इसके बाद चुनाव की तारीखों का ऐलान किया जाता है.

चुनाव आयोग ने जून में ही महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर के इलेक्टोरल रोल को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. चुनाव आयोग ने 25 जून से इसकी प्रक्रिया शुरू की थी, जबकि फाइनल डेटा 20 अगस्त को पब्लिश किया था. यानी कि दो महीने का वक्त लग गया था. चुनाव आयोग ने हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान 16 अगस्त को कर दिया था. जबकि, महाराष्ट्र और झारखंड की चुनाव तारीखों का ऐलान होना अभी बाकी है.

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एक अंग्रेजी अखबार ने चुनाव आयोग के एक अधिकारी के हवाले से बताया है कि देशभर में इलेक्टोरल रोल अपडेट करने की प्रक्रिया 20 अगस्त से शुरू हुई है. इसमें दिल्ली भी शामिल है. 19 से 28 अक्टूबर के बीच इंटीग्रेटेड ड्राफ्ट रोल तैयार किया जाएगा और इसे 29 अक्टूबर को पब्लिश किया जाएगा. इसके बाद 28 नवंबर तक दावे-आपत्ति दर्ज की जाएगी. 24 दिसंबर तक इन सभी दावे-आपत्तियों का निपटारा करने के बाद 6 जनवरी 2025 तक फाइनल इलेक्टोरल रोल पब्लिश होगा. यानी कि अगले तीन महीने तो इलेक्टोरल रोल तैयार करने में ही निकल जाएंगे. इसलिए नवंबर में चुनाव कराना थोड़ा मुश्किल हो सकता है.

इलेक्टोरल रोल अपडेट करना इसलिए जरूरी होता है, ताकि नए वोटर्स भी वोट डाल सकें. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसलिए चुनाव आयोग तय वक्त पर ही चुनाव करा सकता है.

दिल्ली सरकार को भी बताना होगा कारण

महाराष्ट्र में तो विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को खत्म हो रहा है. इसलिए यहां इससे पहले चुनाव कराना जरूरी है. लेकिन दिल्ली में कार्यकाल खत्म होने में अभी पांच महीने का समय है. लिहाजा, समय से पहले चुनाव कराने के लिए दिल्ली सरकार को चुनाव आयोग को कारण भी बताना होगा.

न्यूज एजेंसी पीटीआई ने संविधान के जानकारों से बात कर बताया है कि जल्दी चुनाव करवाने के लिए दिल्ली सरकार को चुनाव आयोग को लिखित में कारण भी बताना होगा. हालांकि, आखिरी फैसला चुनाव आयोग का ही होगा.

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एक एक्सपर्ट ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि चुनाव आयोग के पास महाराष्ट्र के साथ-साथ दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव कराने की शक्ति है. लेकिन पिछली बार दोनों राज्यों में अलग-अलग चुनाव हुए थे. ऐसे में इस बार साथ में चुनाव कराने के लिए कोई न कोई कारण तो होना चाहिए.

2020 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान 6 जनवरी को हुआ था. जबकि, 8 फरवरी को वोटिंग के बाद 11 फरवरी को नतीजे आए थे. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि, बीजेपी को 8 सीटों पर जीत मिली थी.
 

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