वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने के इस वर्ष पर लगातार चर्चाएं जारी हैं. संसद के दोनों सदनों में हाल ही में इस मुद्दे पर जोरदार बहसें हुई हैं. वहीं गुरुवार को 'एजेंडा आजतक' में इस विषय पर बातचीत हुई. एक खास सत्र 'वंदे मातरम् के 150 साल' के दौरान मंच पर कवि डॉ. कुमार विश्वास ने शिरकत साथ ही इस सत्र को दिलचस्प बनाया दो और बड़ी शख्सियतों ने, वंदे मातरम् गीत लिखने वाले कवि-विचारक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की पांचवी पीढ़ी के परिवार के दो सदस्य भी एंजेडा आजतक में शिरकत करने पहुंचे.
सजल चट्टोपाध्याय और जॉयदीप चट्टोपाध्याय ने इस दौरान बंकिम चंद्र से जुड़ी अनसुनी बातें साझा कीं, साथ ही कहा कि वह चाहते हैं कि बंकिम बाबू के नाम से विश्वविद्यालय और रिसर्च सेंटर बनाया जाए.
वंदे मातरम् का अनसुना किस्सा
बंकिम चंद्र के परिवार की पांचवीं पीढी से आने वाले सजल चट्टोपाध्याय ने कहा कि जब बकिंम बाबू ने यह गीत लिखा था तो उस वक्त क्या हुआ था. वह कहते हैं कि परिवार के बड़ों से हमने इसका किस्सा सुना है. जब बंकिम बाबू यह गीत लिखे थे तब उन्होंने इसे सबसे पहले अपनी बड़ी बेटी को दिखाया था. उन्होंने इस गीत को बहुत प्रभावी नहीं बताया था और यह भी कहा था कि इसे आनंद मठ में न रखें. बंकिम जी अपनी बड़ी बेटी को बहुत मानते थे. बंकिम ने उनसे कहा कि इस गीत को रहने दो, 'हम जब नहीं रहेंगे तो लोग इसके बारे में बातें करेंगे और सोचेंगे कि बंकिम बाबू क्या लिखकर गए थे.' सजल चट्टोपाध्याय ने कहा कि आज वही हो रहा है.

'देश से बड़ा कोई नहीं होता- बंकिम बाबू ने हमें सिखाया'
वहीं वंदे मातरम् को लेकर जॉयदीप चट्टोपाध्याय ने कहा कि, हमने बचपन में इस गीत की खूब कहानियां सुनी हैं. इस गीत की महिमा सुनते हुए हम बड़े हुए हैं. सोचिए, बंकिम बाबू ने हमें सिखाया कि देश से बड़ा कोई नहीं होता है. देश हमारे अस्तित्व का एक नाम है. आप सोचिए कि इस गीत की क्या ताकत है, कि जिसको फांसी हो रही थी, उसके चेहरे पर कोई दुख की बात नहीं है, बल्कि उसके होठों पर था तो सिर्फ वंदे मातरम्. ये सिर्फ एक गीत नहीं ऐसा मंत्र है जिसमें हजारों सूर्य की शक्ति है. हमारी परंपरा ऐसी है कि हम मानते हैं कि माता सबसे ऊपर है, और बंकिम चंद्र ने हमें देश को ही माता मानना सिखाया.
बंकिम बाबू के नाम पर बने यूनिवर्सिटी
इस दौरान जब दोनों चट्टोपाध्याय बंधुओं से पूछा गया कि आज इतने सालों बाद और जब देश वंदे मातरम् के 150 वर्ष मना रहा है तो आपकी क्या इच्छा है? इस पर सुजॉय ने कहा कि हम और हमारा परिवार चाहते हैं कि भारत में बंकिम चंद्र के नाम से यूनिवर्सिटी हो और भारत के कोने-कोने में हर स्टेट में बंकिम भवन रिसर्च सेंटर बने और वंदे मातरम् भवन बनाए जाए.ताकि लोग वंदे मातरम् और इसकी महानता को फिर से न भूल जाएं.
उनके नाम पर बनने वाले रिसर्च सेंटर व्यावसायिक शिक्षा से अलग भारत की उस सांस्कृतिक शिक्षा परंपरा को जिंदा रखने का काम करें. जॉयदीप कहते हैं कि आज पीढ़ियां बदल गईं हैं. बच्चे सिर्फ अपनी परंपरा ही नहीं माता-पिता को भी भूलते जा रहे हैं. मुझे याद आता है और हम घर में भी सुनते थे कि 'बंकिम चंद्रजी जब प्रशासनिक सेवा में थे और उन्हें घर से दूर जाना होता था, तब वह अपने साथ एक कांच की बोतल में माता-पिता की चरणों का जल लेकर जाते थे. वह माता-पिता को साक्षात ईश्वर मानते थे. इसलिए शिक्षा पद्धति से ऐसी संतति और समाज का निर्माण हो, जो हमारी परंपरा को जीवंत बनाए रखे.
क्या बोले कवि कुमार विश्वास?
वहीं इस विषय पर कवि कुमार विश्वास ने भी अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् भारत की मूल भावना का मंत्र है. इसमें सिर्फ ऐसा नहीं है कि किसी हिंदू देवी या दुर्गा माता की पूजा है. बल्कि यह देश को ही भवानी के रूप में देखने का मंत्र है. देश को ही कहा जा रहा है कि तुम ही दुर्गा हो,तुम ही लक्ष्मी हो, तुम ही सरस्वती और काली हो. यानी हमारे लिए जो भी है देश ही है. उन्होंने कहा कि यह भावना कोई अचानक या एक दिन में नहीं आई, बल्कि यह हमारे वेदों से आया है, जहां लिखा है 'माता भूमि पुत्रोअहं पृथ्वियाः'
उन्होंने कहा कि, 'जब परतंत्र भारत में किसी व्यक्ति ने भारत माता की इस वंदना का विरोध नहीं किया तो स्वतंत्र भारत में विरोध करके आप क्या पाना चाहते हैं. आज तो होना ये चाहिए था गली-गली वंदे मातरम् गूंजना चाहिए था, लेकिन हो क्या रहा है कि विपक्ष बीते 11 वर्षों से सत्ता पक्ष का दिया हुआ होमवर्क सॉल्व करने में लगा हुआ है. वंदे मातरम् हमारे कुलऋषि का लिखा महामंत्र है, इसे देश अपने मानस पर सजाएगा ही सजाएगा. इससे हमें कोई विलग नहीं कर सकता है.'