कुलभूषण खरबंदा, वो एक्टर जो हमेशा से अपनी डायलॉग डिलीवरी के लिए जाने जाते हैं. कुलभूषण ने थियेटर से अपने करियर की शुरुआत की और बाद में फिल्मों में आए. दोनों ही क्षेत्र में उनका काम शानदार रहा. किसी भी कैरेक्टर को वो गहराई तक लेकर जाते थे. पिछले साल आई वेब सीरीज मिर्जापुर इसका ताजा उदाहरण है. कुलभूषण खरबंदा का जन्म 21 अक्टूबर, 1944 को हुआ था. उनके जन्मदिन के मौके पर बता रहे हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें.
कुलभूषण को बचपन से ही थियेटर का शौक था. कॉलेज के दौरान उन्होंने कई प्ले में भाग लिया. इसके अलावा उन्होंने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर अभियान नाम से एक थियेटर ग्रुप भी बनाया. बाद में वे कोलकाता आ गए और वहां एक थियेटर ग्रुप से जुड़े रहे. मगर लोग अक्सर उन्हें थियेटर छोड़ फिल्मों में काम करने की सलाह देते थे. मगर उस दौरान कुलभूषण थियेटर में रमे हुए थे.
एक बार की बात है जब कुलभूषण के किसी परिचित ने नामी डायरेक्टर श्याम बेनेगल की फिल्म में काम कराने के लिए डायरेक्टर को कुलभूषण के नाम का सुझाव दिया. ये सुनकर श्याम ने कुलभूषण को मुंबई भी बुलाया. मगर कुलभूषण ने ये कहकर आने से इंकार कर दिया कि उन्हें काम तो मिलेगा नहीं साथ ही आने-जाने और ठहरने का पैसा अलग से खर्च होगा.
ये सुनने के बाद श्याम बेनेगल ने एक्टर को फ्लाइट का टिकट भेज मुंबई बुलवाया. यहां उनका स्क्रीन टेस्ट हुआ और उन्हें फिल्में मिलने लगीं. श्याम बेनेगल के साथ कुलभूषण की जोड़ी शानदार रही. श्याम के निर्देशन में एक्टर ने मंथन, भूमिका, जुनून और कलयुग जैसी फिल्मों में काम किया. इन फिल्मों ने कुलभूषण को खूब शोहरत दी.
शान फिल्म से बदल डाली विलेन की परिभाषा
1980 में कुलभूषण खरबंदा ने रमेश सिप्पी की फिल्म शान में शाकाल का निगेटिव रोल प्ले किया. यह रोल उनके करियर का सबसे यादगार किरदार साबित हुआ. उनके अंदाज और स्टाइल ने भारतीय सिनेमा में विलेन की छवि को एक नई परिभाषा दी. पैरेलल सिनेमा में उनकी एक्टिंग की खूब सराहना हुई. उनकी पिछली कुछ बॉलीवुड फिल्मों में सूरमा, अजहर, ब्रदर्स और हैदर शामिल हैं.