
शाहरुख खान की 'कमबैक' फिल्म कही जा रही 'पठान' ने बॉलीवुड को लंबे समय बाद बॉक्स ऑफिस पर हरियाली दिखाई. इंडिया में 500 करोड़ रुपये से ज्यादा कलेक्शन के साथ बॉलीवुड की सबसे कामयाब फिल्म बन चुकी 'पठान' ने इंडस्ट्री के चेहरों को खोयी हुई मुस्कराहट वापस लौटाई है. लॉकडाउन के बाद से ही बॉलीवुड फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर जनता का प्यार पाने के लिए बहुत जूझना पड़ा है. मगर 'पठान' पर ये प्यार ऐसी बारिश बनकर बरसा कि बॉक्स ऑफिस पर कमाई की बाढ़ आ गई.
पिछले कुछ समय में साउथ में बनीं 'कांतारा' और 'कार्तिकेय 2' जैसी फिल्मों ने हिंदी में शानदार बिजनेस किया. ये वे फिल्में हैं जिनके हीरो का चेहरा हिंदी ऑडियंस ने पहले नहीं देखा था. दूसरी ओर, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बनी 'सम्राट पृथ्वीराज' और 'सर्कस' जैसी फिल्में फ्लॉप हो गईं, जो आज से कुछ ही साल पहले सिर्फ अपने हीरो के चेहरे पर हिट हो जातीं.

'पठान' के हिट होते ही ऐसा माहौल बना जैसे अब इंडस्ट्री पटरी पर लौट आई है. यूं लगा जैसे 2018-19 की तरह, फिल्मों का 100 करोड़ कमा लेना फिर से आम बात हो जाएगी. लेकिन तभी कहानी में ट्विस्ट आ गया. 'पठान' के बाद रिलीज हुईं दो फिल्में कार्तिक आर्यन की 'शहजादा' और अक्षय कुमार, इमरान हाशमी स्टारर 'सेल्फी' बॉक्स ऑफिस पर हांफ रही हैं, पानी मांग रही हैं. यानी सबकुछ अभी ठीक तो नहीं ही हुआ है. तो फिर गड़बड़ कहां है?
प्रमोशन के पुराने उबाऊ तरीके
फिल्मों की कमाई में फिल्म प्रमोशन का बहुत बड़ा हाथ होता है. प्रमोशन के लिए हमेशा से एक तरीका खूब चलता रहा है. किसी भी फिल्म के स्टार्स अलग-अलग शहरों में टूर करते हैं. एक बड़ा सा इवेंट होता है, जिसमें खूब भीड़ उमड़ती है. लोग स्टार्स को देखते हैं, उनके साथ फोटो क्लिक करवाते हैं, नई फिल्म का ट्रेलर देखते हैं और फिल्म के लिए माहौल बनाया जाता है. लेकिन समय के साथ फिल्म मार्केटिंग का ये तरीका उतने बेहतर नतीजे नहीं ला पा रहा जिस तरह इसका असर पहले होता था. जैसे, कार्तिक आर्यन ने 'शहजादा' के प्रमोशन में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी. आगरा के ताज महल और दिल्ली में 'शहजादा' के प्रमोशनल इवेंट पर खूब भीड़ जुटी. अगर ऐसी भीड़ थिएटर्स में भी होती तो 'शहजादा' बॉक्स ऑफिस पर इतनी बुरी तरह नहीं जूझ रही होती.

अक्षय कुमार की फिल्में पिछले साल लाइन से फ्लॉप हुईं. हालांकि, 'रक्षा बंधन' के लिए उन्होंने इंदौर से जयपुर तक और 'सम्राट पृथ्वीराज' के लिए दिल्ली से वाराणसी तक खूब टूर किए. मगर बॉक्स-ऑफिस पर दोनों फिल्मों का क्या हुआ ये आप जानते ही हैं. सिटी टूर में लोग स्टार्स को देखने तो जुट जाते हैं, मगर थिएटर्स में फिल्म देखने नहीं पहुंचते.
जनता से बढ़ती दूरी
लॉकडाउन के दौरान जब फिल्में आना बंद हुईं और जनता का नौकरी-धंधे के लिए ट्रेवल करने का समय बचा, तो सबसे बड़ा फायदा ओटीटी को हुआ. हिंदी फिल्मों के दर्शकों ने साउथ से लेकर दुनिया भर का कंटेंट डिस्कवर किया और इसी वजह से बॉलीवुड फिल्मों से उनकी उम्मीद बढ़ गई. जबकि दूसरी तरफ इंडस्ट्री को दर्शकों के टेस्ट का आईडिया एक ऐसे सिस्टम से मिल रहा है, जो खुद हवा-हवाई है और जिसका कोई सॉलिड आधार नहीं है.
बीते कुछ सालों में करण जौहर से लेकर इंडस्ट्री के कई बड़े नाम इस सिस्टम के सड़ने का इशारा करते रहे हैं. लेकिन खुलकर स्वीकारना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि ये सिस्टम खुद इसी इंडस्ट्री का ही पाला-पोसा हुआ है. पुराने प्रमोशन के तरीकों के कामयाब न होने पर इंडस्ट्री ने इस नए सिस्टम का सहारा लिया और ये कहना सटीक होगा कि इसमें इन्वेस्ट भी किया. लेकिन अब ये सिस्टम ही इंडस्ट्री पर बैकफायर करने लगा है.
जुबानी तारीफ का असर और सरप्राइज हिट फिल्में
2010 के बाद आई इन फिल्मों के नाम देखिए- प्यार का पंचनामा, क्वीन, जॉली एल एल बी, OMG: ओह माय गॉड, हिंदी मीडियम, बधाई हो, स्त्री, अंधाधुन, द कश्मीर फाइल्स. इन सभी में एक बात कॉमन है... ये बिना लंबे चौड़े मार्केटिंग कैम्पेन के हिट हुई फिल्में हैं. इनमें से कई तो इतनी बड़ी हिट हो गईं कि इनके मेकर्स ने भी कहा कि उन्हें ऐसा होने की उम्मीद नहीं थी. इन फिल्मों को हिट करवाया 'वर्ड ऑफ माउथ' यानी दर्शकों से मिलने वाली जुबानी तारीफ ने.

कम बजट फिल्मों को जनता की तारीफ से मिली की जबरदस्त कामयाबी को देखते हुए एक नया ट्रेंड चालू हुआ 'वर्ड ऑफ माउथ' मैनुफैक्चर करने का. डिजिटल मीडिया पर 'इन्फ्लुएंसर' वाली हवा शुरू हो चुकी थी और ठीकठाक फॉलोवर्स रखने वाले यूजर्स की राय को महत्त्व मिलने लगा. सीधा गणित ये बना कि अगर सोशल मीडिया पर अच्छी फॉलोइंग रखने वाला कोई व्यक्ति फिल्म की तारीफ करे, तो ज्यादा से ज्यादा लोगों के थिएटर पहुंचने का चांस होगा और फिल्म हिट हो जाएगी. फिल्म मार्केटिंग और पी आर की किताब में सबसे नया चैप्टर यहीं से शुरू हुआ.
सोशल मीडिया पर फिल्म एक्सपर्ट्स की बाढ़
यही इन्फ्लुएंसर आज सोशल मीडिया पर जबरदस्त फॉलोअर्स के साथ फिल्म क्रिटिक, ट्रेड एक्सपर्ट सब बन चुके हैं. सोशल मीडिया पर जो लोग या चैनल लोगों का मूड बदलने की जरा भी ताकत रखते हैं, वो अब फिल्म बिजनेस में इनडायरेक्ट तरीके से ऑफिशियल हो चुके हैं. फिल्मों की मीडिया स्क्रीनिंग में क्रिटिक्स और एंटरटेनमेंट पत्रकारों को बुलाने की पुरानी परंपरा रही है. मगर मीडिया स्क्रीनिंग में फिल्म देख चुके क्रिटिक या पत्रकार के रिव्यू में आलोचना होने के चांस ज्यादा रहते हैं, क्योंकि उसका पहला हित अपने संस्थान के लिए रहता है.
दूसरी तरफ एक इन्फ्लुएंसर को अपना खुद का चैनल भी चलाना है, उसके पीछे ठोस संगठन नहीं है. फिल्म के पहले पोस्टर से लेकर टीजर, ट्रेलर तक प्रमोशन का हर कंटेंट उसके चैनल के बढ़ने में मदद करता है. यही फिल्म मार्केटिंग का नया ईको-सिस्टम है. इन्फ्लुएंसर को फिल्म से जुड़ा कंटेंट चाहिए और फिल्म के पी आर को चाहिए पॉजिटिव 'वर्ड ऑफ माउथ'. मगर इस पॉजिटिव तारीफ का खेल शुरू तो मार्केटिंग की मजबूरी में हुआ था, मगर फिर इसमें इंडस्ट्री को मजा आने लगा. इस खेल में अपनी पोजीशन छोड़ने वाले को हमेशा के लिए खेल से बाहर भी कर दिया जाता है. जैसे आपको कई ऐसे एंटरटेनमेंट पत्रकार, पोर्टल या इन्फ्लुएंसर सोशल मीडिया पर मिल जाएंगे जिन्होंने किसी फिल्म के बारे में नेगेटिव लिखा और फिर फिल्म प्रमोशन वालों ने उन्हें दोबारा अपनी किसी फिल्मों के लिए मीडिया स्क्रीनिंग का इनवाइट ही नहीं भेजा.
पेड रिव्यू
फिल्मों की कमाई पर रिव्यू का भी काफी असर रहता है. लोग एक बार के लिए पूरा रिव्यू न भी पढ़ें-देखें, मगर रिव्यू में मिली स्टार-रेटिंग पर नजर मार लेते हैं. आपने भी सोशल मीडिया पर फिल्म को लेकर आने वाला एक क्रिएटिव पोस्टर देखा होगा, जिसपर अलग-अलग जगहों से फिल्म को मिले स्टार्स छपे रहते हैं. कहीं से 3 स्टार, तो कहीं से 4 स्टार. इस स्टार रेटिंग के बारे में करण जौहर ने फिल्म कम्पेनियन के इंटरव्यू में कहा था कि 'किससे कितने स्टार्स मिले' वाला यह पोस्टर बहुत बार वो पहले ही बनवा कर लोगों को भेज देते हैं और फिल्म रिलीज की सुबह यही सोशल मीडिया पर चल रहा होता है.

फिल्म का अच्छा रिव्यू लिखवाने के लिए पैसे देना, बॉलीवुड का एक ओपन सीक्रेट है. सोशल मीडिया पर आपने ऐसी बातें खूब सुनी होंगी, मगर जानी मानी फिल्म क्रिटिक अनुपमा चोपड़ा तक को पैसे ऑफर किए जा चुके हैं. पिछले साल अनुपमा ने एक ट्वीट में बताया था कि एक पी आर कम्पनी ने उन्हें पेड रिव्यू करने का ऑफर दिया है.
इन्फ्लुएंसर की बनाई झूठी हवा
कार्तिक आर्यन की 'शहजादा' ओपनिंग वीकेंड यानी पहले 3 दिन में बड़ी मुश्किल से बॉक्स ऑफिस पर 20 करोड़ का आंकड़ा पार कर पाई. अक्षय कुमार और इमरान हाशमी की 'सेल्फी' का हाल इससे भी बुरा है और इसका ओपनिंग वीकेंड कलेक्शन 10 करोड़ ही रहा. दोनों फिल्मों के स्टार्स के नाम के हिसाब से बॉक्स ऑफिस कलेक्शन साफ बता रहा है कि जनता ने दोनों फिल्मों को एकदम रिजेक्ट कर दिया है.
फिल्म बिजनेस की रिपोर्ट्स लगातार शेयर करने वाले दो-तीन पुराने ट्रेड एक्सपर्ट्स के अलावा आजकल ट्विटर पर ढेर सारे ऐसे नाम हैं जो फिल्मों पर लगातार कमेंट्री कर रहे हैं. इनमें से कुछ नाम आपको अब भी ट्विटर पर 'सेल्फी' या 'शहजादा' जरूर देखने का मैसेज देते नजर आएंगे. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर डूब चुकी है, एक्टर अपने फेलियर को स्वीकार करते हुए परेशान नजर आ रहे हैं, लेकिन ये इन्फ्लुएंसर अब भी फिल्म के भौकाल में हवा भरने में लगे हुए हैं. ये पहली बार नहीं है, बल्कि पिछले कई सालों से हो रहा है. एक नई फिल्म का ट्रेलर आता है. जनता उसमें बहुत दिलचस्पी नहीं ले रही, लेकिन इन्फ्लुएंसर और उसके फॉलोवर फिल्म का प्रमोशनल कंटेंट लगातार शेयर कर रहे हैं, उसपर लगातार चर्चा कर रहे हैं.
ऐसी सूरत में होता ये है कि सोशल मीडिया से नापने पर लाइक्स, शेयर, व्यूज, कमेंट्स और डिजिटल इम्प्रेशन के पैमाने पर फिल्म का भौकाल जबरदस्त नजर आता है. मगर थिएटर्स में फिल्म देखने पहुंचने वालों की गिनती इसके अनुपात में जरा भी नहीं रहती.
इंटरव्यू, प्रमोशन और ब्लैकमेल
इंटरव्यू को तो बहुत सारी पी आर कंपनियां 'अघोषित घूस' की तरह इस्तेमाल करती हैं. एंटरटेनमेंट बीट कवर कर रहे व्यक्ति या चैनल के लिए एक्टर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर का इंटरव्यू बहुत मायने रखता है. फिल्म प्रमोशन के समय एक्टर्स के इंटरव्यू खूब होते हैं. इन इंटरव्यूज से हेडलाइन निकलती हैं. हालांकि, फिल्मों की रिलीज के आसपास कोई एक्टर जितने इंटरव्यू देता है, उन सबमें आधी से ज्यादा बातें लगभग एक जैसी ही होती हैं. लेकिन इस इंटरव्यू का बदले पी आर कंपनियां फिल्म का सिर्फ पॉजिटिव रिव्यू चाहती हैं.
इस खेल की एक दूसरी साइड भी है. सोशल मीडिया पर कई बार इंडस्ट्री से ऐसी बातें सामने आ चुकी हैं कि किसी रिव्यू करने वाले ने, किसी फिल्ममेकर को ब्लैकमेल किया कि अगर पैसे नहीं मिले तो फिल्म का नेगेटिव रिव्यू शेयर किया जाएगा. पिछले ही साल मलयालम फिल्ममेकर रोशन एंड्रूज ने थिएटर्स से अपील की थी कि वो यूट्यूब रिव्यूअर्स को बैन करें. उन्होंने आरोप लगाया कि यूट्यूब पर रिव्यू करने वाले ये लोग थिएटर्स के बाहर पहुंच जाते हैं और फिल्म पर जनता की राय रिकॉर्ड करते हैं, जो पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों हो सकती है. लेकिन ये फिल्म के प्रोड्यूसर्स को ब्लैकमेल करते हैं कि अगर उन्हें उनकी मांगी रकम नहीं मिली, तो सिर्फ वही क्लिप्स शेयर करेंगे जिनमें फिल्म की बुराई की जा रही है.
अंदर की खबर देने वाले, बाहर के लोग!
सोशल मीडिया पर कमाल राशिद खान उर्फ KRK को आपने फिल्मों पर खूब कमेंट्री करते देखा होगा. फिल्मों, स्टार्स, फिल्म इंडस्ट्री को अक्सर अपने निशाने पर रखने वाले KRK ने खुद को लीड रोल में रखकर कभी 'देशद्रोही' जैसी फिल्म बनाई थी. उनके फिल्म करियर का हाल किसी से छिपा नहीं है, लेकिन इसके अलावा उनका फिल्मों से कनेक्शन क्या है, आपने कभी ये सोचा है? KRK खुद एक पी आर एजेंसी टाइप की कंपनी चलाते हैं. KRK खुद बता चुके हैं कि उनकी अपनी वेबसाइट है जो बॉक्स ऑफिस आंकड़े देती है और इस काम के लिए उन्होंने बाकायदा एक टीम रखी हुई है.
2021 में एक एक्टर और बिजनेसमैन ने ऑडियो क्लिप शेयर करते हुए KRK पर आरोप लगाया था कि उन्होंने फिल्म का नेगेटिव रिव्यू न पोस्ट करने के बदले 25 लाख रुपये मांगे. इस मामले में KRK ने यही सफाई दी थी कि उनकी पब्लिसिटी कंपनी है और ऑडियो में सुनाई दे रही पैसे की बात 'पब्लिसिटी के लिए है, रिव्यू के लिए नहीं'. ये बात अकेले KRK की नहीं है.
Hello Friends, today I am sharing an audio recording as a revelation in front of you. In which I am talking to the biggest blackmailer of the Indian film industry who asks for money for not doing negative publicity of the film. #KRKBlackMailer #KRKKutta #RohitChoudhary pic.twitter.com/lzJIpTabTc
— ROHIT CHOUDHARY (BHAWAN SINGH) (@1rohitchoudhary) July 2, 2021
इस समय इंडस्ट्री से कनेक्शन रखने का दावा करने वाले बहुत सारे सोशल मीडिया हैंडल्स हैं जिनके बारे में इस तरह की बातें सुनने में आती रही हैं. कमाल की बात ये है कि बॉलीवुड के अंदर की जानकारी रखने का दावा करने वाले इस तरह के हैंडल्स ने कोविड महामारी के दौरान सोशल मीडिया पर फैली बॉलीवुड हेट में बहुत योगदान दिया. इस तरह के हैंडल्स से लगातार इंडस्ट्री को लेकर ऐसी बातें शेयर की जाती रहीं, जिन्हें इंडस्ट्री के लोग नकारते रहे. लेकिन इससे क्या ही फर्क पड़ता क्योंकि अफवाह वैसे भी ऐसा पक्षी है जिसके पंख सबसे बड़े होते हैं!
'सबसे पहला रिव्यू' देने वाला फिल्म क्रिटिक
पिछले कुछ सालों में ट्विटर पर एक और नाम बहुत तेजी से पॉपुलर हुआ है उमेर संधू. खुद को 'ओवरसीज सेंसर बोर्ड' का मेंबर बताने वाले इस 'फिल्म क्रिटिक' का काम करने का अलग तरीका है. इसके अकाउंट से तमाम फिल्मों के रिव्यू से लेकर, एडिटिंग में फिल्म तैयार हो जाने तक की जानकारी 'सबसे पहले' मिलती है. इस व्यक्ति का कहना है कि 'ओवरसीज सेंसर बोर्ड' में फिल्में बाकी सब जगहों से पहले दिखाई जाती हैं, जिसका वो सदस्य है.
पिछले साल इसी अकाउंट से मणिरत्नम की फिल्म 'पोन्नियिन सेल्वन- 1' (PS-1) का रिव्यू, रिलीज से बहुत पहले शेयर हुआ. डायरेक्टर की पत्नी सुहासिनी मणिरत्नम ने ट्विटर पर ही पूछ लिया, 'प्लीज बताएंगे आप कौन हैं? जो फिल्म अभी रिलीज भी नहीं हुई, उसका एक्सेस आपको कैसे मिला?' लेकिन जवाब का इंतजार जनता आजतक कर ही रही है. इसी अकाउंट ने 5 फरवरी को ट्वीट किया था कि 'प्रभास और कृति सेनन अगले हफ्ते सगाई कर रहे हैं.' इसी ने दावा किया था कि 'अजय देवगन का रकुल प्रीत सिंह से एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर चल रहा है'.

अजय देवगन की टीम ने तुरंत ऑफिशियल स्टेटमेंट में इसे निशाने पर लिया और कहा, 'ये उमेर संधू के सन्दर्भ में है, जिसने पिछले कुछ समय में इंडस्ट्री की ऑथेंटिक जानकारी होने का दावा किया है. हालांकि, वो गलत खबरें फैला रहा है और झूठ गढ़ रहा है. उमेर संधू के किसी भी देश में, किसी भी सेंसर बोर्ड से जुड़े होने का कोई आधिकारिक सबूत और सच्ची जानकारी नहीं है. हमने इस बात की सच्चाई जानने के लिए कई इंटरनेशनल सेंसर एसोसिएशन से चेक किया है. लेकिन हमें कोई भी देश अपनी सेंसर एडवाइजरी में उसे सपोर्ट करता हुआ नहीं मिला.'
इस खेल में क्यों फंसे हैं फिल्ममेकर्स?
फिल्म कम्पेनियन में बॉलीवुड प्रोड्यूसर्स की एक बातचीत में करण जौहर ने कहा कि 'इस महामारी ने इस पी आर बेवकूफी को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है.' इस बातचीत में मौजूद सभी प्रोड्यूसर इस बात पर सहमत थे कि अब ये एक ऐसा घातक सर्कल बन गया है जिससे बाहर निकलना मुश्किल है. इस डिस्कशन का निचोड़ ये था कि प्रोड्यूसर ने फिल्म पर पैसे लगाए, तो मार्किट में फिल्म चलने के लिए उसने पी आर किया और अपने हीरो को 'मेगास्टार' बताकर प्रचारित किया. अब इस एक्टर की मैनेजमेंट ने इसी प्रचार को उठाया और दूसरे प्रोड्यूसर को दिखाकर एक्टर की फीस ज्यादा मांगी. इसी से ऐड मिले और एक्टर की ब्रांड वैल्यू बनी. अब मामला इतना क्रिटिकल हो गया है कि फिल्म चलाने के लिए इस सर्कल का हिस्सा बनना ही पड़ेगा.

इस ट्रेंड का सिर्फ और सिर्फ एक ही तोड़ है. जनता को ये दिखना चाहिए कि फिल्म में उनके एंटरटेनमेंट का भरपूर दम है. टीजर देखने के बाद एक आम दर्शक को फिल्म के लिए एक्साइटमेंट होनी चाहिए. ट्रेलर में कहानी की झलक लोगों को पसंद आए, और इतना दम हो कि जनता उसके लिए थिएटर जाना चाहे. गाने अच्छे हों, ताजे हों और पसंद आने वाले हों. ये हमेशा से फिल्मों के फेवर में काम करने वाला सबसे बेहतरीन आईडिया है. ट्रेलर जानदार लगने के बाद फिल्म में अगर दर्शकों को भरपूर दम नहीं भी दिखा, तब भी फिल्म कम से कम पहले वीकेंड में ठीकठाक कमाई कर लेगी. भले उसके बाद लोगों की राय फिल्म के पक्ष में न हो और जनता का इंटरेस्ट कम होता जाए. लेकिन सबसे जरूरी चीज सिर्फ इतनी है कि फिल्म में कंटेंट मजेदार हो.
'पठान' ने तोड़ा ट्रेंड
सोशल मीडिया पर 'वर्ड ऑफ माउथ' मैनुफैक्चर करने, रिव्यू में स्टार दिलवाने और सिटी टूर जैसे सभी तरीकों से किनारा करने के बावजूद, शाहरुख खान की 'पठान' धमाकेदार ब्लॉकबस्टर बन चुकी है. इंडिया में 500 करोड़ और वर्ल्डवाइड 1000 करोड़ से ज्यादा कमा चुकी 'पठान' के प्रमोशन के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ. फिल्म के स्टार्स शाहरुख, दीपिका पादुकोण और जॉन अब्राहम ने रिलीज से पहले इंटरव्यू नहीं दिए. टीम ने अलग-अलग शहरों में चक्कर भी नहीं काटे. लेकिन फिर भी बॉलीवुड को, उसके इतिहास की सबसे कमाऊ फिल्म दी. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट कहती है कि प्रमोशन न कर के 'पठान' के मेकर्स ने 10 करोड़ से 20 करोड़ तक की बचत कर ली.
'पठान' में शाहरुख 4 साल बाद हीरो बनकर स्क्रीन पर लौटे. जनता के लिए शायद इतना ही काफी था. फिल्म रिलीज होने से पहले सिर्फ शाहरुख खान ट्विटर पर अपने फैन्स के साथ लगातार AskSRK सेशन करते रहे और उनके साथ इंटरेक्शन करते रहे. ये कहा जा सकता है कि शाहरुख का नाम ही फिल्म को धमाकेदार बनाने के लिए काफी था. लेकिन ये भी मानना पड़ेगा कि जनता को 'पठान' का ट्रेलर अपील कर चुका था और लोग शाहरुख को ताबड़तोड़ एक्शन करता हुआ देखने के लिए बहुत एक्साइटेड थे.
जहां बॉलीवुड के लिए 'पठान' की नो प्रमोशन स्ट्रेटेजी एक नई चीज हो सकती है, वहीं साउथ में कई बड़े स्टार्स इसी तरह से काम करते हैं. थलपति विजय और अजित जैसे स्टार्स अपनी फिल्मों का न प्रमोशन करते हैं, न इंटरव्यू देते हैं. मगर फिर भी उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड बनाती हैं. अब देखना ये है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री कबतक जनता को फिल्म में सॉलिड कंटेंट और एंटरटेनमेंट देने की बजाय, प्रमोशन की ट्रिक्स ही आजमाती रहेंगी.