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बॉलीवुड

130 रुपये लेकर मुंबई पहुंचे थे 'मिर्जापुर के दद्दा त्यागी', काम नहीं मिला तो 15 दिन रहे भूखे

Liliput
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लिलिपुट का स्ट्रगल किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. एक्टर बनने का सपना लेकर मुंबई आए लिलिपुट ने कई सालों तक स्ट्रगल किया है. नौबत तो भूखे सोने तक की आ गई थी. हालांकि आज वे इस बात से बेहद खुशी है कि करियर के इस फेेज में अब उन्हें भुखमरी का सामना नहीं करना पड़ेगा.

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लिलिपुट आज भले ही इंडस्ट्री का जाना-पहचाना नाम बन चुके हैं लेकिन क्या आप जानते हैं, लिलिपुट की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी था, जब वे लगातार पंद्रह दिनों तक भूखे रहे थे.जब वे अपने दोस्त के घर खाने गए, तो वहां चक्कर खाकर गिर गए. कुछ समय पहले लिलिपुट की आर्थिक तंगी को लेकर एक अफवाह उड़ी थी कि वे बेहद गरीब हो चुके हैं और अपनी बेटी के घर पर मजबूरन रह रहे हैं.

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पैसे इतने हैं कि चल जाता है घर 

अपनी आर्थिक हालात पर बात करते हुए लिलिपुट ने आजतक को बताया, मेरे बारे में अफवाह उड़ी थी कि मैं बेटी के घर गरीबी के दिन काट रहा हूं. मैं बता दूं, एक्टिंग में आने के बाद मेरे हालात कभी ऐसे नहीं रहे कि मुझे आर्थिक तंगी से गुजरना पड़े. राइटिंग और एक्टिंग से इतने पैसे आ जाते थे कि मैं अपना गुजारा कर लेता हूं. रही बात बेटी के साथ रहने की, तो मैंने उन्हें अपना घर दे दिया है और मैं यहां अपनी पत्नी संग रहता हूं. हाल ही में मैंने एक साउथ की फिल्म की है, जहां से पैसे आए हैं. इसके साथ ही मिर्जापुर 3 की भी तैयारी है. हां, यह कह सकते हैं कि बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन इससे ज्यादा की जरूरत भी नहीं. 

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मैं पंद्रह दिन तक भूखा सोया हूं

अपने स्ट्रगल के दिनों को याद कर लिलिपुट कहते हैं, इसे भी कोई स्ट्रगल कहा जाएगा. असल स्ट्रगल तो उस वक्त था, जब मैं पहली बार बिहार के गया से मुंबई पहुंचा था. वहां मेरे एक दोस्त ने मुझे 130 रुपये दिये थे, जिससे मैंने टिकट ली और पैसेंजर में नाम लिख दिया लिलिपुट. यहां से मेरी जर्नी की शुरुआत हुई. 31 दिसंबर 1975 में मुंबई पहुंचा था. उस साल से लेकर 1982 तक का टाइम बहुत स्ट्रगल भरा रहा. एक टाइम पर मुझे काम के लिए तालियां मिल रही हैं, तो उसी वक्त मैं कई रात भूखे सोया हूं. भूखे रहने का मेरा पंद्रह दिन तक का रेकॉर्ड रहा है. हालांकि गरीब परिवार से हूं, तो दो-तीन दिन भूखे रहने की ट्रेनिंग पहले से थी. एक दोस्त को जब मेरी हालत पता चली, तो उसने खाने के लिए बुलाया और 15वें दिन उसके घर पहुंचते ही मैं बेहोश हो चुका था. लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी, हमेशा ख्याल रहता था कि गांव जाकर क्या मुंह दिखाऊंगा. 

 

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लकड़ियां काटने, होर्डिंग लगाने तक का काम किया है 

मैं जिस दोस्त के भरोसे मुंबई पहुंचा था, उसकी भी नौकरी चली गई थी. ऐसे में मेरे उसी दोस्त ने मुझे ट्यूशन करवा दिया. जहां मेरी मासिक शुल्क 20 रुपये तय की गई. उस वक्त हम खार के एक रेलवे क्वार्टर में पेइंग गेस्ट के रूप में कई लड़के रहा करते थे. बस अपनी-अपनी चादर तक ओढ़ने की जगह हुआ करती थी. रोज काम की तलाश में निकलते. जब काम नहीं मिलता, तो मैं पोस्टर चिपकाने, गड्ढे खोदने, लकड़ियां काटने से लेकर होर्डिंग लगाने तक सभी छोटे-मोटे काम कर लिया करता था.

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 आनंद महेंद्रू लिलिपुट को नहीं, लिली को ढूंढ रहे थे  

थिएटर के दौरान कई बड़े दिग्गज हमारा प्ले देखने आया करते थे. ऐसे में एक बार गुलजार साहब ने भी मेरा काम देखा था. एक दिन उन्होंने आनंद महेंद्रू जी से कहा कि जाओ पहले लिली का काम देखकर आओ. आनंद जी उस दिन प्ले देखने पहुंचे. उन्होंने पूरा प्ले देख लिया और लिली को न देखकर वे गुलजार साहब के पास दोबारा ग उन्होंने  गुलजार साहब से कहा कि पूरे शो में  मुझे लिलि नहीं मिली. तो गुलजार साहब हंसते हुए कहते हैं, मैं लिलिपुट की बात कर रहा हूं. इस तरह मैं आनंद महेंद्रू जी संग जुड़ा और फिर यहां से मेरी राइटिंग करियर की शुरुआत हुई.

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फिल्म जीरो की वजह से विवाद में फंस चुके हैं लिलिपुट
जब जीरो फिल्म आई थी, तो उस वक्त मैंने उसे बेवकूफी ही कहा था. उस दौरान मेरे कई इंटरव्यू देखे थे. देखिए, ये बौने किरदार का सिलसिला जो शुरू हुआ है, वो मेरे आने के बाद हुआ है. हालांकि इसका क्रेडिट मुझे कभी मिला नहीं. कमल हासन जब मेरे साथ सागर कर रहे थे, तो उस वक्त उनसे काफी मीटिंग हुई. वो मेरी सोच और साइकोलॉजी को समझने की कोशिश करते थे. आगे चलकर उन्होंने अप्पू राजा बना दी. उनकी फिल्म जो थी, वो बहुत ही बौद्धिक स्तर पर बेहतरीन थी. उसके बाद जो अनुपम खेर, रितेश देशमुख और शाहरुख खान भी बौने गए. इसका क्या मतलब होता है, इसके सिवाय छोटे होने के और क्या है अलग. सोच भी आपकी ही तरह होती है, खाना, इश्क, गुस्सा सब नॉर्मल इंसान की तरह ही करता है. अपाहिज, अंधा या लंगड़ा होता, तो आपको एक्टिंग करने की जरूरत पड़ती. इसमें बौना होने पर क्या अलग एक्टिंग करेंगे. आप अगर इंडस्ट्री में रहकर यह सब कह देते हैं, तो आपको आउट कर दिया जाता है. शायद यही वजह है कि मैं आउट हूं. मैंने जीरो के लिए जो कहा है, शायद इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. 

 

 

 

 

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शेरबहादुर में विलेन बनकर करता एंट्री

रितेश देशमुख ने जो बौने का रोल किया है, वो सुभाष घई जी ने कई साल पहले अमिताभ बच्चन और मेरे लिए लिखी थी. फिल्म का नाम था शेरबहादुर, वो फिल्म तो बनी ही नहीं. अगर वो बनती, तो इंडस्ट्री में मेरी एंट्री विलेन वाली होती. 

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खुद पर बने मीम्स को इंजॉय करते हैं लिलिपुट 

लिलिपुट सोशल मीडिया पर खास एक्टिव नहीं हैं. हालांकि अपने से जुड़ी सारे मीम्स को वो पढ़ते हैं और एंजॉय करते हैं. लिलिपुट को इस बात की खुशी है कि यूथ उन्हें नोटिस कर रहे हैं और उनके काम की जबरदस्त सराहना हो रही है. 

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