उत्तराखंड के उधमसिंह नगर जिले की एक विधानसभा सीट है किच्छा विधानसभा सीट. किच्छा नगर पालिका परिषद भी है. ये उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का चौथा और सूबे का नौंवा सबसे बड़ा नगर है. किच्छा उत्तराखंड की एक पुरानी तहसील है जिसकी स्थापना अंग्रेजी शासन काल में हुई थी. सिडकुल की स्थापना के बाद इस नगर का विकास तेजी से हुआ है.
किच्छा भौगोलिक लिहाज से देखें तो तराई क्षेत्र में स्थित है. यहां की जलवायु शीतोष्ण है. किच्छा के पूर्व में गोला नदी है तो इसकी सीमा दक्षिण में पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश और उत्तर में नैनीताल जिले से लगती है. किच्छा बरेली-काठगोदाम रेल-लाइन से जुड़ा है. बरेली-नैनीताल सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है. यहां चीनी मिल, धान मिल भी इस शहर के आस-पास स्थापित है. बरेली-हल्द्वानी रेलमार्ग पर किच्छा रेलवे स्टेशन भी है. किच्छा को अविभाजित उत्तर प्रदेश की सरकार ने 14 अक्टूबर 1971 को टाउन एरिया घोषित किया था. इसे 8 अक्टूबर 1985 को नगर पालिका का दर्जा दिया गया था.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
किच्छा विधानसभा सीट साल 2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. किच्छा विधानसभा सीट जब से अस्तित्व में आई है तब से इस सीट के लिए दो दफे चुनाव हुए हैं. 2012 में हुए पहले चुनाव में किच्छा विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राजेश शुक्ला विधानसभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए.
2017 का जनादेश
किच्छा विधानसभा सीट 2017 के विधानसभा चुनाव में हॉट सीटों में से थी. किच्छा विधानसभा सीट से बीजेपी ने अपने निवर्तमान विधायक राजेश शुक्ला पर ही भरोसा जताया. बीजेपी के राजेश शुक्ला के सामने कांग्रेस से हरीश रावत चुनाव मैदान में थे. बीजेपी के राजेश ने कांग्रेस के हरीश रावत को दो हजार वोट से अधिक के अंतर से हरा दिया था.
सामाजिक ताना-बाना
किच्छा विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरणों की बात करें तो यहां हर जाति-वर्ग के लोग रहते हैं. किच्छा विधानसभा क्षेत्र में कुल करीब सवा लाख मतदाता हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में सामान्य जाति के मतदाताओं के साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति और जनजाति के मतदाता इस सीट का चुनाव परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
किच्छा विधानसभा सीट से विधायक बीजेपी के राजेश शुक्ला का दावा है कि उनके कार्यकाल में इलाके का चहुंमुखी विकास हुआ है. राजेश शुक्ला का दावा है कि उनके कार्यकाल में बुनियादी ढांचे के विकास पर अधिक जोर रहा है. राजेश शुक्ला के दावे को विपक्षी नेता सिरे से खारिज करते हुए ये कह रहे हैं कि इलाके की समस्याएं जस की तस हैं.