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चुनाव से ठीक पहले योगी कैबिनेट का विस्तार, सरकार से ज्यादा पार्टी का होगा उद्धार

योगी मंत्रिमंडल विस्तार का इकलौता लक्ष्य चार महीने के बाद यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जातिगत संतुलन को साधने का है. कैबिनेट में शामिल ये नए मंत्री अपने मंत्रालय में ठीक से पैर जमा पाएं कि इससे पहले ही राज्य में चुनाव आचार संहिता लग जाएगी. ऐसे में माना जा रहा है कि ये सातों मंत्री सूबे में योगी सरकार से ज्यादा बीजेपी के लिए चुनावी फायदा दिलाने का काम करेंगे? 

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छत्रपाल गंगवार, जितिन प्रसाद, संगीता बिंद
छत्रपाल गंगवार, जितिन प्रसाद, संगीता बिंद
स्टोरी हाइलाइट्स
  • योगी कैबिनेट में सात नए चेहरों को मिली जगह
  • नए मंत्रियों के पास महज चार महीने का समय
  • बीजेपी ने कैबिनेट के जरिए साधा समीकरण

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में सात नए चेहरों को जगह मिली है, जिनमें एक कैबिनेट और छह राज्य मंत्री शामिल हैं. योगी मंत्रिमंडल विस्तार का इकलौता लक्ष्य चार महीने के बाद यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जातिगत संतुलन को साधने का है. कैबिनेट में शामिल ये नए मंत्री अपने मंत्रालय में ठीक से पैर जमा पाएं कि इससे पहले ही राज्य में चुनाव आचार संहिता लग जाएगी. ऐसे में ये सातों मंत्री सूबे में योगी सरकार से ज्यादा बीजेपी के लिए चुनावी फायदा दिलाने का काम करेंगे? 

बीजेपी ने साधा सियासी समीकरण

सूबे की सियासत में इन दिनों छोटी-छोटी जातियों को साधने के लिए सियासी दलों के बीच शह-मात का दांवपेच चले जा रहे हैं. मोदी फॉर्मूले के तर्ज पर योगी सरकार ने भी एक ब्राह्मण, तीन ओबीसी और एक अनुसूचित जनजाति सहित तीन दलित मंत्री बनाए गए हैं. ब्राह्मण समुदाय से जितिन प्रसाद, पिछड़े वर्ग से छत्रपाल गंगवार, संगीता बिंद और धर्मवीर प्रजापति जबकि दलित चेहरे के तौर पर दिनेश खटीक, पल्टूराम सोनकर और गौंड समाज से आने वाले संजीव कुमार को जगह मिली है. 

योगी सरकार में शामिल किए नए मंत्रियों में जितिन को छोड़कर बाकी सभी राज्य मंत्रियों का आरएसएस और बीजेपी से जुड़ाव वर्षों पुराना रहा है. जितिन प्रसाद कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए हैं, जिसके चलते उन्हें एमएलसी के साथ-साथ उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाकर ब्राह्मण समाज को एक बड़ा संदेश दिया गया है जबकि बाकी राज्य मंत्रियों को मंत्रिमंडल में जगह देकर उनके सियासी कद को बढ़ाकर उनके समाज के बीच बीजेपी अपनी सियासी पैठ बनाने की कवायद में है. 

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नए मंत्रियों के पास चार महीने का वक्त

दरअसल, नए मंत्रियों को काम के लिए महज चार महीने का वक्त मिलेगा. अगले साल जनवरी के आखिरी सप्ताह में यूपी में चुनाव आचार संहिता लागू हो सकती है. ऐसे में उन्हें चार में महीने अपने-अपने मंत्रालय के कामकाज को समझने में ही गुजर जाएंगे. जितिन पहली बार यूपी में मंत्री बने हैं जबकि इससे पहले केंद्र में मंत्री रहे हैं. वहीं, जितिन प्रसाद को छोड़कर बाकी छह मंत्रियों को पास तो मंत्री के तौर पर काम करने का कोई अनुभव नहीं है. उन्हें पहली बार मंत्रालय के तौर पर एंट्री मिली है. 

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चार महीने के कार्यकाल में नए मंत्री न तो अपने विजन को जमीन पर उतार सकेंगे और न ही किसी तरह के विकास कार्य को अमलीजामा पहना सकेंगे. इतना ही नहीं उनके मंत्री रहते हुए किसी तरह का अब कोई बजट भी नहीं आने वाला है. योगी सरकार अनुपूरक बजट भी पिछले दिनों विधानसभा पेश कर चुकी है. ऐसे में मंत्रियों के पास सिर्फ बीजेपी के लिए चुनाव प्रचार करना ही बचेगा. ऐसे में उन्हें अपनी सीट जीतने के साथ आसपास की सीटों और अपने जातियों से जुड़े गढ़ को बचाने की जिम्मेदारी संभालनी होगी. 

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चुनाव के मद्देनजर कैबिनेट विस्तार

उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार काशी प्रसाद यादव कहते हैं कि चुनाव से पहले मंत्रिमंडल के विस्तार कर हर सरकार सोचती है कि उसके अधूरे काम पूरे हो जाएं. सरकार में सबकी भागीदार हो जाएगी, जिससे उसके राजनीतिक समीकरण बेहतर हो सकेंगे. मंत्री जरूर बना दिए गए हैं, लेकिन काम करने समय काफी कम बचा है. ऐसे में चार महीने में खुद को कैसे साबित करेंगे. सरकार में शामिल नए चेहरों को कुछ वक्त तो अपने-अपने विभाग को समझने में ही निकल जाएगा और तब तक चुनाव का ऐलान हो जाएगा. ऐसे में वो सरकार से ज्यादा बीजेपी के लिए चुनावी फायदा दिला सकते हैं. 

2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुए योगी कैबिनेट विस्तार को सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बीजेपी पर तंज कसा है. उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल में बदलाव करने से भी बीजेपी को कुछ हासिल होने वाला नहीं है. चेहरे बदलने के बाद भी सरकार तो बीजेपी की ही रहेगी. ओबीसी समाज जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं. सरकार के जाति के अनुसार मंत्री बनाने से कुछ नहीं होगा. वो न तो बजट होगा और न ही कोई काम, क्योंकि चार महीने के बाद चुनाव होने है. ऐसे में सरकार का चेहरा नहीं बदलेगा. जनता बीजेपी सरकार से ऊब गई है और वह अब उसे सत्ता से बेदखल करने का अंतिम निर्णय कर चुकी है. 

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दलित-ओबीसी को बीजेपी का संदेश

योगी सरकार के कैबिनेट विस्तार पूरी तरह से 2022 के चुनाव को ध्यान में रखकर किया गया है, जिसके लिए बीजेपी सबका साथ, सबका विकास फार्मूले का ख्याल रखते हुए नए चेहरों में तीन अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), दो अनुसूचित जाति (एससी) व एक अनुसूचित जनजाति (एसटी) से हैं, जबकि एक ब्राह्मण को मंत्री बनाया गया हैं. बीजेपी ने सामाजिक समीकरण सेट करने का दांव चला है. 

यूपी के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं कि योगी सरकार का कैबिनेट विस्तार विधानसभा चुनाव के लिए लिहाज से लिया गया निर्णय है. योगी सरकार ने कैबिनेट में उन छोटी छोटी पिछड़ी जातियों को जगह देने का प्रयास किया है, जिनसे एक निश्चित क्षेत्र में राजनीतिक लाभ मिल पाए. संगीता बलवंत बिंद को जगह देकर पूर्वांचल में बिंद बिरादरी के लोगों को सरकार में तरजीह देने का संदेश दिया गया है. अब तक सरकार में बिंद समाज का कोई मंत्री नहीं था. ऐसी ही स्थिति धर्मवीर प्रजापति, छत्रपाल गंगवार जैसे नेताओं को भी सरकार में रखकर मूल रूप से पिछड़ों को साधा जा रहा है. 

वह कहते हैं कि बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी की तरह ही गैर-जाटव दलितों को भी साधने के लिए खटिक समाज से दो मंत्री बनाए हैं तो एक सोनभद्र के गोंड समाज के अनुसूचित जनजाति को दिया है. इस तरह से बीजेपी ने मंत्री बनाकर उनके सियासी कद बढ़कर बढ़कर उनके समाज को साधने का दांव चला है. योगी कैबिनेट में शामिल नए मंत्री भले ही सरकार में कोई प्रभाव न दिखा सकें, लेकिन चुनाव में अपने-अपने समाज को बीजेपी के पाले में लाने के लिए जमकर मशक्कत करेंगे ताकि सत्ता में वापसी पर उन्हें दोबारा से मंत्री बनने का मौका मिल सके. 

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