बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज होने और विभिन्न दलों की ओर से उम्मीदवारों के नाम को अंतिम रूप दिये जाने के बीच ऐसा लगता है कि इस बार चुनाव में महिलाएं पिछले पायदान पर चली गई हैं.
बिहार में ही आठ वर्षों तक राबड़ी देवी ने मुख्यमंत्री पद और उसके बाद विपक्ष की नेता का पद संभाला. लेकिन राजद और लोजपा के चुनावी गठबंधन करने के बाद लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया दूसरी ओर जद यू-भाजपा गठबंधन की ओर से एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.
कुछ समय पहले कांग्रेस गलियारे में ऐसी चर्चा चल रही थी कि इस महत्वपूर्ण राज्य के लिए पार्टी की ओर से लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया जायेगा ताकि प्रदेश में पार्टी को फिर से खड़ा किया जा सके.
हालांकि कांग्रेस अब किसी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बना रही है और पार्टी ने तय किया है कि वह सभी 243 सीटों पर अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी. पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद मीरा कुमार को लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया था.
गौरतलब है कि 243 सदस्यीय निवर्तमान विधानसभा में मात्र 26 महिला विधायक है लेकिन यहां कुछ महिला मंत्री भी हैं लेकिन उन्हें पुरूष सहयोगी के समान स्थान प्राप्त नहीं है.
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार सत्तारूढ़ जदयू-भाजपा गठबंधन राबड़ी देवी की अनुपस्थिति को मुद्दा बना रहा है जो राज्य की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री रही हैं. राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने हाल में पूछा, ‘राबड़ी देवी कहां हैं. बिहार विधानसभा चुनावी समर से वह गायब क्यों हैं.’ उन्होंने कहा कि शायद मुख्यमंत्री के रूप में अक्षम रहने के कारण लालू प्रसाद उन्हें सामने नहीं ला रहे हैं.
ऐसी भी खबरें सामने आ रही हैं कि राबड़ी देवी सक्रिय राजनीति को अलविदा कह सकती हैं. कम पढ़ी लिखी राबड़ी को अचानक 13 साल पहले उस समय राजनीति के मैदान में उतरना पड़ा था जब चारा घोटाले में उनके पति लालू प्रसाद के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल कर दिया गया है और जुलाई 1997 में लालू को पद छोड़ना पड़ा था.
राजद के साथ लोजपा ने गठबंधन करते समय यह स्पष्ट कर दिया था कि उन्हें (राबड़ी) मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने से लोगों में सही संदेश नहीं जायेगा.