कांग्रेस के बिहार में सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने के निर्णय के साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव में जद :यू: के नेतृत्व वाले राजग, राजद-लोजपा गठबंधन और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय संघर्ष की संभावना बलवती हो गई है.
वर्ष 1995 के बाद से कांग्रेस अकेले चुनाव नहीं लड़ी है और लालू प्रसाद के राजद के सहयोगी के तौर पर यह सत्ता में दो बार शामिल रही.
अविभाजित बिहार में 1995 में पार्टी ने लालू प्रसाद के नेतृत्व वाले जनता दल के खिलाफ 324 सदस्यीय विधानसभा में एक सीट को छोड़कर सभी पर चुनाव लड़ा था और इसे 29 सीटें मिली थीं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की समता पार्टी चुनावों से ठीक पहले बनी थी और तब भाजपा की बिहार में कोई हैसियत नहीं थी .
अगले चुनावों में कांग्रेस ने सभी 324 सीटों पर चुनाव लड़ा और 23 सीटों पर जीत दर्ज की. इसने राबड़ी देवी सरकार का समर्थन किया और इसका भरपूर फायदा उठाते हुए सरकार में इसके 22 विधायक मंत्री बने जबकि एक को विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया.
फरवरी 2005 और अक्तूबर..नवंबर 2005 में हुए चुनावों में कांग्रेस ने राजद के साथ गठबंधन में क्रमश: 85 एवं 51 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन इसे सिर्फ 10 और नौ सीटें हासिल हुईं. नीतीश कुमार नवंबर 2005 में सत्ता में आए.{mospagebreak}
अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव राहुल गांधी ने बिहार में चुनावी अभियान शुरू कर दिया है . उन्होंने कहा, ‘हम बिहार और उत्तरप्रदेश दोनों जगहों पर कांग्रेस को सत्ता में वापस लाएंगे..बिहार केवल कांग्रेसी सरकार में ही विकास करेगा.’
नीतीश ने राज्य के पिछड़ेपन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस ने 63 वर्षों तक बिहार की उपेक्षा की और यहां के लोगों के साथ न्याय नहीं किया.’ दूसरी तरफ लालू ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रही है ताकि चुनावी फायदा राजग उठा ले जाए. उन्होंने कहा, ‘यह सक्षम पार्टी नहीं है लेकिन सिर्फ अड़ंगा लगा रही है.’ कांग्रेस के लिए अच्छी बात यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में इसका वोट प्रतिशत बढ़कर 13 फीसदी हो गया जबकि 2005 के विधानसभा चुनाव में यह सिर्फ पांच फीसदी था.
पिछले वर्ष 18 विधानसभा उपचुनावों में इसका वोट प्रतिशत बढ़कर 15 फीसदी तक पहुंच गया. पार्टी अब तक के अपने चुनावी अभियान की सफलता से काफी उत्साहित है और इसके कई केंद्रीय नेताओं ने राज्य का दौरा कर नीतीश सरकार की असफलता को उजागर किया.