
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान इस हफ्ते होने की संभावना है. ऐसे में राज्य पर पोस्टर युद्ध का बुखार चढ़ा देखा जा सकता है, लेकिन एक दिलचस्प ट्विस्ट के साथ. ट्विस्ट ये है कि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) दोनों ने ही अपनी प्रचार की रणनीति में बदलाव किया है.
आरजेडी ने पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद को अपने पोस्टरों से बाहर रखा है और सिर्फ तेजस्वी यादव को ही मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर हाईलाइट किया जा रहा है.
वहीं जेडी-यू के पोस्टरों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ देखा जा सकता है. इन पोस्टरों में पीएम मोदी को बिहार को आधुनिक बनाने के लिए नीतीश की तारीफ करते हुए दिखाया गया है. पोस्टर के निचले हिस्से में नारा दिया गया है- “न्याय के साथ तरक्की, नीतीश की बात पक्की”.
बिहार के राजनीतिक स्पेक्ट्रम पर 1990 से 2017 तक लालू यादव लगातार सक्रिय रहे. हालांकि अब चुनाव के मद्देनजर आरजेडी के पोस्टरों से लालू बाहर हैं. क्या चारा घोटाले में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के केसों की वजह से आरजेडी ने ऐसी रणनीति बनाई है. क्या इन केसों की वजह से पार्टी लालू को अब बोझ मानने लगी है? लालू इन दिनों 2017 में चारा घोटाले में सुनाई गई 27.5 साल की जेल की सजा काट रहे हैं.

हाल के दिनों में, यह देखा गया है कि जब भी आरजेडी ने तेजस्वी के साथ पोस्टर में लालू के चेहरे को प्रमुखता से जगह दी, जेडी-यू ने पलटवार में अपने पोस्टरों में लालू पर IRCTC घोटाले समेत भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों को लेकर वार करना शुरू कर दिया.
आरजेडी के टॉप नेतृत्व ने ये मानना शुरू कर दिया कि लालू का चेहरा तेजस्वी के ताजा और युवा चेहरे को दबा देता है जबकि तेजस्वी के नेतृत्व में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा जा रहा है और लालू चुनावी परिदृश्य से बाहर हैं.
2019 में लोकसभा चुनाव आरजेडी ने तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ा था जबकि लालू के जेल में होने के बावजूद उन्हें प्रचार में प्रमुखता से जगह दी गई. क्या ये भी एक कारण रहा जिसकी वजह से आरजेडी का उस चुनाव में पूरी तरह सफाया हो गया और पार्टी एक भी लोकसभा सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकी. ऐसा लगता है कि आरजेडी लोकसभा चुनाव की उस गलती को आगामी विधानसभा में नहीं दोहराना चाहती.
पटना में आरजेडी के एक पोस्टर में नारा देखा जा सकता है-"नई सोच नया बिहार, युवा सरकार अबकी बार." साफ है कि आरजेडी ने सोची समझी रणनीति के तहत लालू को पोस्टरों से बाहर रख तेजस्वी को ‘बिहार के लिए आशा की नई किरण’ के तौर पर पेश करने का फैसला किया है.
पूर्व मुख्यमंत्री और लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी को भी जानबूझकर आरजेडी के पोस्टरों में जगह नहीं दी गई है. आरजेडी की इस कोशिश को लालू-राबड़ी शासन के 15 वर्षों से जुड़े कथित 'जंगलराज' टैग से दूरी बनाने के तौर पर भी देखा जा रहा है.
जेडी-यू प्रवक्ता राजीव रंजन कहते हैं, 'तेजस्वी की ओर से खुद को प्रोजेक्ट करने और आरजेडी के पोस्टर से अपने पिता लालू को बाहर रखने का यह एक नया स्टंट है. मैं याद दिला दूं कि बिहार के लोग लालू-राबड़ी शासन के 15 खौफनाक वर्षों को भूलने नहीं जा रहे हैं. तेजस्वी के पास खुद की कोई पहचान नहीं है और वह चांदी के चम्मच के साथ पैदा हुए हैं. उनकी एकमात्र पहचान यह है कि वह लालू के बेटे हैं, लेकिन अब लगता है कि वह भी इससे डर रहे हैं.”
इसी तरह, 2005 से 2013 के बीच जेडी-यू सुप्रीमो और मुख्यमंत्री नीतीश हमेशा नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा करने से बचते रहे जो कि उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे.
चाहे बिहार में 2005 और 2009 के विधानसभा चुनाव हों या 2009 के लोकसभा चुनाव, नीतीश ने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि मोदी बिहार में प्रवेश न करें. क्योंकि वे इस बात से सावधान थे कि इससे उनकी धर्मनिरपेक्ष साख पर सेंध लग जाएगी. वास्तव में, 2013 में जब मोदी को बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया था, तो नीतीश ने भगवा पार्टी से 17 साल पुराने गठबंधन को तोड़ दिया.

हालांकि, बिहार में पिछले सात साल में राजनीति ने भारी बदलाव देखा और नीतीश 2017 में एनडीए में लौट आए. जेडी-यू की ओर से जारी ताजा पोस्टरों में नीतीश के साथ पीएम मोदी को भी प्रमुखता से दिखाया जा रहा है. यह पार्टी की रणनीति में बदलाव है, जो पहले नीतीश को मोदी की तुलना में अधिक कद्दावर नेता मानती थी.
जेडी-यू को इस तथ्य का एहसास है कि बीजेपी के बिना, नीतीश अपने दम पर विधानसभा चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं हैं. नीतीश की लोकप्रियता में पिछले पांच वर्षों में भारी गिरावट देखी गई जब उन्होंने 2015 में लालू के साथ चुनाव जीता और बाद में 2017 में उनसे किनारा कर फिर से बीजेपी से गठबंधन कर लिया.
2005 से 2017 के बीच, नीतीश को 17 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक का बड़ा समर्थन हासिल था. हालांकि, नीतीश के लालू से किनारा करने और बीजेपी से हाथ मिलाने के बाद उनके मुस्लिम समर्थन आधार ने भारी गोता लगाया. नीतीश ने अनुच्छेद 370 हटाने, ट्रिपल तलाक विधेयक और नागरिकता विधेयक जैसे सभी मुद्दों पर केंद्र को समर्थन प्रदान किया, जिससे उनसे मुस्लिम मतदाताओं के छिटकने की संभावना है.

आरजेडी के परंपरागत और प्रतिबद्ध वोट बैंक, यादव (14%) और मुसलमान (17%) लालू के पीछे बने हुए हैं. नीतीश अलग-थलग पड़ते दिख रहे हैं क्योंकि उनके कोर वोट बैंक में दलितों (16%) के साथ सिर्फ कुर्मी (2%) ही शामिल हैं.
यहीं पर बीजेपी पर नीतीश की निर्भरता सामने आती है. इसलिए, यह बिना कारण नहीं है कि मोदी को जेडी-यू के पोस्टरों में जगह दी जा रही है.
आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के बीच पहले कैसे संबंध रहे हैं, ये अभी भी लोगों के मन में ज्वलंत है. पहले, नीतीश पीएम मोदी के साथ तस्वीर खिंचवाने से भी कतराते थे, लेकिन अब वह उन्हें अपनी पार्टी के होर्डिंग्स में जगह दे रहे हैं. अब नीतीश कुमार को बिहार में वोटों के लिए पीएम मोदी पर निर्भर रहना पड़ रहा है.