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पश्चिम बंगाल चुनाव: अंतिम चरण की वोटिंग कल, टीएमसी और कांग्रेस मुस्लिम वोटरों से आस

पश्चिम बंगाल के आठवें चरण में टीएमसी और कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन के बीच काटें की टक्कर होती नजर आ रही है. यहां कांग्रेस और टीएमसी दोनों की पार्टियों का सारा दारोमदार मुस्लिम मतदाताओं पर टिका है.

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राहुल गांधी, ममता बनर्जी, नरेंद्र मोदी
राहुल गांधी, ममता बनर्जी, नरेंद्र मोदी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बंगाल के आठवें चरण की 35 सीटों पर 29 अप्रैल को वोटिंग
  • अंतिम चरण में मुस्लिम वोटर निर्णयक भूमिका में हैं
  • टीएमसी-कांग्रेस दोनों की नजर मुस्लिम वोटरों पर टिकी

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के आठवें और आखिरी चरण में 35 सीटों पर गुरुवार को वोटिंग होनी है. पिछले सात चरण में टीएमसी और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला रहा है तो आठवें चरण में टीएमसी और कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन के बीच काटें की टक्कर होती नजर आ रही है. यहां कांग्रेस और टीएमसी दोनों पार्टियों का सारा दारोमदार मुस्लिम मतदाताओं पर टिका है. मुस्लिम मतदाताओं के रुख पर ममता की बंगाल में वापसी की उम्मीदें टिकी हुई हैं तो कांग्रेस के लिए अपने वजूद को बचाए रखने का सवाल है? 

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के आठवें चरण में 35 सीट के लिए वोट डाले जाएंगे. इनमें मालदा की 6, बीरभूम की 11, मुर्शिदाबाद की 11 और कोलकाता नॉर्थ की सात सीट शामिल हैं. हालांकि, मालदा और मुर्शिदाबाद जिले कुछ सीट पर सातवें चरण में मतदान हो चुका है, ऐसे में अब बाकी बची सीटों पर 29 अप्रैल यानि गुरुवार को मतदान होना है. 

2016 में टीएमसी-कांग्रेस का दबदबा

बता दें कि साल 2016 विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस और टीएमसी का सियासी वर्चस्व कायम था. इन 35 सीटों में से टीएमसी ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि 13 सीटें कांग्रेस को मिली थी. बीजेपी महज एक सीट ही जीत सकी थी और 3 सीटें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के खाते में गई थी. इसके अलावा  एक सीट पर निर्दलीय ने जीत दर्ज की थी. 

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अंतिम चरण का सियासी समीकरण

अंतिम चरण की 35 सीटों पर मुस्लिम वोटर काफी अहम माने जा रहे हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव से सियासी तस्वीर बदल गई है. मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद टीएमसी बनी थी, जिसके चलते उसे 19 सीटों पर बढ़त मिली थी. इसके अलावा 11 सीटों पर बीजेपी और 5 सीटों पर कांग्रेस आगे रही थी. हालांकि, मालदा और मुर्शिदाबाद दो ऐसे जिले हैं, जहां मुस्लिम मतदाता टीएमसी के मुकाबले कांग्रेस को तरजीह देते रहे हैं. 

फाइनल चरण की सीटों के सियासी समीकरण को देखें तो यहां औसतन मुसलमानों की आबादी 42 फीसदी है. अनुसूचित जातियों की आबादी 17 फीसदी और अनुसूचित जनजातियों की आबादी 3 फीसदी है. मतदाताओं में मुसलमानों की हिस्सेदारी 35 में से 32 सीटों में से 20 फीसदी से अधिक है. 16 सीटों में 20 फीसदी से अधिक एसटी वोटर हैं. यही वजह है कि ममता की नजर मुस्लिम वोटों पर है. 

मुस्लिमों के सहारे ममता बनर्जी

ममता बनर्जी की पूरी कोशिश है कि दूसरे जिलों की तरह मालदा और मुर्शिदाबाद के मुस्लिम मतदाता उनके साथ मजबूती के साथ खड़े रहें. यही वजह है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बार-बार दोहरा रही हैं कि मालदा और मुर्शिदाबाद चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे और बीजेपी को रोकने में टीएमसी ही बेहतर विकल्प है. माना जा रहा है कि मुस्लिम मतदाता रणनीतिक तौर पर मतदान कर सकते हैं, जिस सीट पर कांग्रेस मजबूत है, उस सीट पर मुसलिम कांग्रेस के साथ और ऐसे ही जिन सीटों पर टीएमसी आगे है, वहां टीएमसी के पक्ष में खड़े हो सकते हैं. 

बीजेपी की ध्रुवीकरण पर टिकी उम्मीद

बीजेपी इस चरण में ध्रुवीकरण के सहारे मैदान में है. पार्टी बीरभूम जिले में एससी वोटों को मजबूत करने की कोशिश कर रही है. बीजेपी मालदा जिले में हिंदू वोटों को मजबूत करने की कोशिश कर रही है. ये दोनों मुस्लिम बहुल जिले हैं. पार्टी यह भी उम्मीद कर रही है कि वाम-कांग्रेस-भारतीय सेक्युलर मोर्चा गठबंधन मुस्लिम वोटों को विभाजित करने में मदद करेगा और इससे टीएमसी को नुकसान होगा. इससे बीजेपी को लाभ मिलेगा और हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण होगा. राज्य की राजधानी कोलकाता में पार्टी हिंदी भाषी लोगों के वोटों को मजबूत करने की कोशिश कर रही है.

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कांग्रेस गठबंधन के लिए चुनौती

कांग्रेस नेता अधीर चौधरी के गृह क्षेत्र मुर्शिदाबाद जिले में माकपा-कांग्रेस-आईएसएफ गठबंधन को अच्छे नतीजों की उम्मीद है. कांग्रेस मालदा जिले के अपने पारंपरिक गढ़ में भी कुछ वोट हासिल करने की कोशिश कर रही है, जो कभी केंद्रीय मंत्री एबीए गनी खान चौधरी का गढ़ हुआ करता था. हालांकि, कांग्रेस को अपने पुराने नतीजे दोहराने की बड़ी चुनौती है. ऐसे में देखना है कि अंतिम चरण में सियासी तौर पर कौन बाजी मारता है? 

 

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