बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मी तेज़ हो गई है. इसी बीच, चुनाव आयोग शुक्रवार को विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के तहत तैयार मतदाता सूचियों का ड्राफ्ट प्रकाशित करेगा.
विपक्षी दलों और अन्य संगठनों को आशंका कि इस प्रक्रिया से बिहार के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर मतदाताओं का नाम सूची से बाहर हो सकता है. इस सूची को लेकर विपक्ष और तमाम सामाजिक संगठनों ने "नामों की सामूहिक डिलीशन" का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.
इस मसौदे के साथ ही "दावे और आपत्तियां" की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी, जो 1 सितंबर तक चलेगी. इस दौरान, अगर किसी मतदाता का नाम गलत तरीके से हटाया गया है, तो वह संबंधित अधिकारियों से शिकायत कर सकता है और नाम जुड़वाने का दावा कर सकता है.
चुनाव आयोग का दावा है कि SIR का आदेश दिए जाने तक राज्य में 7.93 करोड़ पंजीकृत मतदाता थे. हालांकि, इस आदेश के बाद विपक्षी दलों और कुछ अन्य संगठनों ने तीखे विरोध प्रदर्शन किए थे. SIR प्रक्रिया में 7.23 करोड़ लोगों ने फॉर्म भरे, लेकिन 35 लाख लोग स्थायी रूप से माइग्रेटेड या गायब मिले. 22 लाख मृत घोषित हुए और 7 लाख लोग दोहरी वोटर लिस्ट में पाए गए. करीब 1.2 लाख लोगों ने फॉर्म ही नहीं भरा.
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क्या थी SIR प्रक्रिया?
वहीं, राज्य विधानसभा में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर चुनाव आयोग ने उनकी चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया, तो वह आगामी चुनाव का बहिष्कार करेंगे.
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SIR के पहले चरण में, मतदाताओं को बूथ-स्तरीय अधिकारियों (BLO) द्वारा या राजनीतिक दलों द्वारा नामित बूथ-स्तरीय एजेंटों (BLA) द्वारा "गणना फॉर्म" प्रदान किए गए थे. इन फॉर्मों को पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार्य दस्तावेजों के साथ हस्ताक्षर कर वापस करना था. लोगों के पास इन गणना फॉर्मों को ऑनलाइन डाउनलोड और जमा करने का विकल्प भी था.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और आशंकाएं
इस प्रक्रिया के आलोचकों का मानना है कि यह प्रक्रिया आगामी चुनावों में सत्तारूढ़ एनडीए की "मदद" करने के लिए किया जा रही है. इसे लेकर विपक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. कोर्ट ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा कि एसआईआर का परिणाम "सामूहिक समावेशन होना चाहिए, न कि सामूहिक बहिष्कार". कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि आधार कार्ड को भी आईडी प्रूफ के रूप में स्वीकार किया जाए. सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि यदि नामों को गलत तरीके से बड़े पैमाने पर हटाए जाने की सूचना मिलती है तो वह हस्तक्षेप करेगा.
मुख्य चुनाव आयुक्त का संदेश
इस बीच, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने "बिहार के प्रिय मतदाताओं" को संबोधित एक संदेश जारी किया है, जिसमें आशंकाओं को दूर करने का प्रयास किया गया है. उन्होंने कहा कि 1 अगस्त से 1 सितंबर तक कोई भी मतदाता या राजनीतिक दल वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने, हटाने या सुधार के लिए आवेदन कर सकता है. किसी भी अपात्र मतदाता के नाम हटाने या ड्राफ्ट मतदाता सूची में किसी भी प्रविष्टि को सही करने के लिए दावे और आपत्तियां... पेश कर सकता है."
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इससे पहले, CPI(ML) नेता दीपांकर भट्टाचार्य, जो इस मामले में SC में याचिकाकर्ता भी हैं, ने दावा है कि असली खेल "क्लेम्स एंड ऑब्जेक्शंस" के दौरान होगा, जहां सरकार समर्थक EROs और AEROs के जरिए गड़बड़ी की कोशिश होगी.