बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया ने वोटर लिस्ट की जांच को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. कारण, आजतक की ग्राउंड रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि हाजीपुर और मुजफ्फरपुर जिलों में बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) बिना किसी वैध दस्तावेज के, केवल अपनी सिफारिश के आधार पर लोगों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल कर रहे हैं. यह सब तब हो रहा है जब सुप्रीम कोर्ट इस पूरी प्रक्रिया पर निगरानी रख रहा है और दस्तावेज़ों की अनिवार्यता व प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर गंभीर टिप्पणियां कर चुका है.
दरअसल, SIR का मकसद वोटर लिस्ट की घर-घर जाकर जांच करना है, जिसमें मृत, डुप्लीकेट या गलत नामों को हटाकर नई एंट्री जोड़ी जानी हैं. यह प्रक्रिया वर्ष 2003 की मतदाता सूची और नवीनतम रिकॉर्ड के आधार पर चल रही है. BLO को निर्देश था कि वे दस्तावेज लेकर ही किसी व्यक्ति के नाम की एंट्री करें, लेकिन आजतक की टीम ने पाया कि जमीनी स्तर पर यह नियम अब केवल एक औपचारिकता बनकर रह गया है. हाजीपुर में एक BLO ने बताया, 'पहले हमें कहा गया था कि बिना दस्तावेज के फॉर्म न लें, लेकिन अब निर्देश है कि फॉर्म पहले ले लो, दस्तावेज बाद में ले लेंगे.'
मुजफ्फरपुर में भी दिखी ऐसी ही तस्वीर
इसी तरह मुजफ्फरपुर में एक BLO ने मोबाइल ऐप का डेमो देते हुए बताया कि वे 'SIR' टैब के तहत नाम, जन्मतिथि और फोटो स्कैन कर फॉर्म को 'रिकमेंड' कर सकते हैं, बिना किसी दस्तावेज के. यह ऐप BLO के OTP से सक्रिय होता है, यानी पूरी प्रक्रिया केवल BLO के विवेक पर निर्भर है. एक BLO का कहना था, 'हम यहीं के निवासी हैं, हमें स्थानीय लोगों की जानकारी है, इसीलिए हम खुद तय करते हैं कि कौन यहां का है. बाद में अगर कोई आपत्ति आती है या ERO दस्तावेज मांगता है, तो हम ले लेंगे.'
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कैमरे में रिकॉर्ड हुआ सबकुछ
हाजीपुर और मुजफ्फरपुर दोनों जगह आजतक की टीम ने BLOs को बिना दस्तावेज फॉर्म सबमिट करते हुए कैमरे पर रिकॉर्ड किया. कुछ मामलों में आधार नंबर लिया गया, कुछ में नहीं. एक BLO सहायक ने बताया कि कुछ दिन पहले तक आधार नंबर से फॉर्म सबमिट नहीं हो रहा था, लेकिन अब केवल आधार नंबर, नाम, जन्मतिथि और हस्ताक्षर के आधार पर भी फॉर्म स्वीकार किए जा रहे हैं, भले ही व्यक्ति 2003 की सूची में दर्ज न हो. वहीं, एक BLO सुपरवाइजर, जो 10 बूथों के लिए जिम्मेदार हैं, ने बताया कि अभी केवल मृत या डुप्लीकेट मतदाताओं को हटाने पर जोर है, दस्तावेज़ों की गहराई से जांच 25 जुलाई के बाद होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने SIR प्रक्रिया पर रोक लगाने से किया इनकार
इस पूरी प्रक्रिया के बीच सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान SIR पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन गहरी चिंताएं ज़ाहिर की हैं. अदालत ने कहा कि यह प्रक्रिया किसी भी हालत में पात्र मतदाताओं को सूची से बाहर न करे. कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि आधार, EPIC (वोटर आईडी) और राशन कार्ड जैसे सामान्य दस्तावेज कई मामलों में क्यों अस्वीकार किए जा रहे हैं, जबकि ये लगभग सभी नागरिकों के पास होते हैं. अदालत ने निर्वाचन आयोग से स्पष्ट किया है कि दस्तावेज़ों की सूची का विस्तार न्याय के हित में किया जाए और आयोग नागरिकता जांच जैसे मामलों में गृह मंत्रालय की सीमा का उल्लंघन न करे.
कोर्ट ने तीन प्रमुख कानूनी बिंदुओं को लेकर आगे सुनवाई की बात कही है:
-क्या निर्वाचन आयोग को इस तरह का विशेष संशोधन (SIR) करने का अधिकार है?
-क्या मौजूदा प्रक्रिया चुनाव कानूनों के अनुरूप है?
-क्या यह प्रक्रिया चुनाव से ठीक पहले करना उचित और निष्पक्ष है?
निर्वाचन आयोग को 21 जुलाई तक इस पर जवाब दाखिल करना है, अगली सुनवाई 28 जुलाई को तय है.
दस्तावेज देने से परहेज कर रहे लोग
ग्राउंड स्तर पर हालांकि BLOs अपनी मेहनत में लगे हुए हैं. मुजफ्फरपुर की एक महिला BLO ने बताया कि कई परिवारों ने दस्तावेज देने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें डर है कि यह प्रक्रिया उन्हें मतदाता सूची से बाहर करने की तैयारी है. उन्होंने बताया, 'मैं चार बार एक ही घर में गई, लेकिन लोग डरे हुए हैं. उन्हें लगता है कि यह कोई NRC जैसी प्रक्रिया है.' वहीं, हाजीपुर में कई BLO अब भी घर-घर जाकर लोगों को समझा रहे हैं कि वे अभी फॉर्म भर दें, दस्तावेज बाद में भी दिए जा सकते हैं. एक BLO ने कहा, 'कन्फ्यूजन बहुत है, लेकिन हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि कोई छूटे नहीं.'
अपने उद्देश्य से भटकती नजर आ रही प्रक्रिया
बिहार में SIR प्रक्रिया मतदाता सूची को स्वच्छ बनाने के लिए शुरू की गई थी, लेकिन अब यह अपने उद्देश्य से भटकती हुई दिख रही है. दस्तावेज़ों को लेकर दिशानिर्देश स्पष्ट नहीं हैं, BLO को मिला विवेकाधिकार कहीं-कहीं भेदभाव का कारण बन रहा है और सुप्रीम कोर्ट की चिंताओं के बावजूद चुनाव आयोग की प्रक्रिया अभी सवालों के घेरे में है. अब देखना यह है कि आने वाली सुनवाई में न्यायालय इस प्रक्रिया की दिशा को कैसे मोड़ता है, और क्या बिहार के लाखों मतदाताओं का भरोसा दोबारा बहाल हो पाता है.