बिहार विधानसभा चुनाव की हलचल बढ़ने के साथ-साथ सियासी पार्टियां अपने-अपने समीकरण को दुरुस्त करने में जुट गई हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बार के चुनाव में किसी तरह का कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं. यही वजह है कि वो एक के बाद एक लोकलुभावने ऐलान करने के साथ-साथ सियासी समीकरण को भी दुरुस्त करने की कवायद में जुट गए हैं.
जेडीयू की नजर बिहार के सबसे अहम माने जाने वाले अतिपिछड़े वर्ग (ईबीसी) के वोटबैंक पर है, जिसकी आबादी करीब 36 फीसदी है. झंझारपुर में 23 अगस्त 2025 को जेडीयू अतिपिछड़ा वर्ग के वोटबैंक को साधने के लिए एक बड़ा कार्यक्रम कर रही है. अमर शहीद रामफल मंडल की पुण्यतिथि के बहाने जेडीयू ने बिहार के अतिपिछड़े समाज को सियासी संदेश देने की रणनीति बनाई है.
देश की आजादी के लिए लड़ते हुए रामफल मंडल 23 अगस्त 1943 में फांसी पर चढ़ गए थे. अंग्रेजों ने भागलपुर जेल में उन्हें फांसी दी थी. अतिपिछड़े समाज से आने वाले रामफल मंडल आज भी पचपनिया समाज के लिए प्रेरणा का प्रतीक हैं. पचपनिया समाज के अंतर्गत धानुक, केवट, अमात, तांती, चौपाल और नोनिया जैसी जातियां आती हैं. इसीलिए रामफल मंडल की शहादत दिवस पर जेडीयू के द्वारा आयोजित कार्यक्रम के जरिए धानुक से लेकर नोनिया जाति के लोगों को लामबंद करने की कोशिश है.
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देश की आजादी की लड़ाई में रामफल मंडल ने बिहार में अहम रोल अदा किया था. रामफल मंडल ने सीतामढ़ी के बाजपट्टी में 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया था. अंग्रेजों सीतामढ़ी में गोलीकांड किया था जिसमें बच्चे, बूढ़े और महिलाएं शहीद हो गए थे. ऐसे में वीर सपूत रामफल मंडल ने गोलीकांड के जवाब में अंग्रेजी सरकार के तत्कालीन एसडीओ और अन्य दो सिपाही को गड़ासे से काट दिया था.
अंग्रेज अफसर को मारने के चलते रामफल मंडल गिरफ्तार कर लिया था. इसके बाद रामफल मंडल ने कहा था कि भारत की आजादी में मुझे फांसी भी मंजूर है, लेकिन अंग्रेजों का अत्याचार नहीं. अंग्रेज सरकार ने रामफल मंडल को फांसी पर लटका दिया था. रामफल मंडल ने युवावस्था में ही देश की स्वतंत्रता के लिये हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था. रविवार, 23 अगस्त 1943 की सुबह भागलपुर सेट्रल जेल में 19 वर्ष 17 दिन के अवस्था में फांसी पर चढ़ गए थे.
रामफल मंडल के सहारे जेडीयू का बड़ा दांव
तीन साल पहले सीएम नीतीश ने अमर शहीद रामफल मंडल की प्रतिमा का अनावरण झंझारपुर में किया था. अब 23 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि पर जेडीयू एक बड़े आयोजन के जरिए उनकी शहादत को याद करेगा. इस आयोजन के जरिए जेडीयू अतिपिछड़े समाज पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखना चाहती है.
अमर शहीद रामफल मंडल की शहादत दिवस पर 23 अगस्त को जेडीयू ने झंझारपुर में एक कार्यक्रम रखा है. जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा से लेकर केंद्रीय राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर, सांसद दिलेश्वर कामत और अन्य अतिपिछड़े वर्ग के नेता शामिल होंगे. जेडीयू सांसद रामप्रीत मंडल ने मीडिया से कहा कि इस कार्यक्रम में पचपनिया समाज को निमंत्रण दिया गया है.
रामप्रीत मंडल ने कहा कि पचपनिया समाज नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी पर भरोसा करता है. हम इस आयोजन के जरिए संदेश देना चाहते हैं कि हम एनडीए के साथ हैं. यह आयोजन ईबीसी समुदायों में मैसेज पहुंचाने की कोशिश है कि नीतीश सरकार और मोदी सरकार की योजनाएं बिहार के विकास के लिए समर्पित हैं. शहीद को श्रद्धांजलि देने के साथ-साथ अतिपिछड़ी जातियों के बीच एनडीए को मजबूत करने की भी कोशिश है.
ईबीसी के हाथ में बिहार के सत्ता की चाबी
बिहार में अति पिछड़े वर्ग की आबादी 36 फीसदी है, जिसमें करीब 114 जातियां शामिल हैं. अतिपिछड़ा वर्ग की आबादी के लिहाज से कह सकते हैं कि बिहार के सत्ता की चाबी अब उनके हाथों में है. अति पिछड़ी जातियों में केवट, लुहार, कुम्हार, कानू, धीमर, रैकवार, तुरहा, बाथम, मांझी, प्रजापति, बढ़ई, सुनार, कहार, धानुक, नोनिया, राजभर, नाई, चंद्रवंशी, मल्लाह जैसी 114 जातियां अति पिछड़े वर्ग में आती हैं.
अतिपिछड़े समाज की आर्थिक, सामाजिक स्थिति काफी कमजोर है. इसके अलावा आबादी का बड़ा हिस्सा होने के बाद भी सियासी प्रतिनिधित्व काफ़ी कम है. छोटी-छोटी जातियां, जिनकी आबादी कम है, लेकिन चुनाव में फिलर के तौर पर वो काफी अहम हो जाती हैं. ये जब किसी दूसरे वोटबैंक के साथ जुड़ जाते हैं तो एक बड़ी ताकत बन जाते हैं. इस तरह से बिहार की सत्ता का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत अब इन्हीं अतिपिछड़ी जातियों के हाथ में है.
नीतीश का ईबीसी कोर वोटबैंक माना जाता
नीतीश कुमार ने इन्हीं तमाम छोटी-छोटी अति पिछड़ी जातियों को मिलाकर अपना सियासी आधार खड़ा किया है. नीतीश ने 2005-10 के शासनकाल में दो नई जातीय वर्गों को बनाया. इसमें एक था महादलित और दूसरा था अतिपिछड़ा. इस अति पिछड़े वर्ग को ही जेडीयू ने अपना मुख्य वोटबैंक बनाने में सफलता पाई.
बिहार में जातीय जनगणना के बाद अति पिछड़ी जातियों की ताकत का एहसास सियासी दलों को हुआ है, जिसके चलते अब बीजेपी से लेकर आरजेडी और अन्य दूसरी पार्टियां इस वोटबैंक को साधने में जुटी हैं. बिहार की सियासत में स्थापित राजनीतिक पार्टियां अलग-अलग जातियों के नेताओं को अब आगे करके अपनी राजनीति कर रही हैं.
बिहार में अतिपिछड़ी जातियां विधानसभा चुनाव 2025 का गेमचेंजर मानी जा रही हैं, जिसके चलते ही जेडीयू ने अमर शहीद रामफल मंडल के शहादत दिवस पर कार्यक्रम आयोजित कर पचपनिया समाज (धानुक, केवट, अमात, तांती, चौपाल, नोनिया जैसी जातियां) को एकजुट करने और नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताने का संदेश देना चाहता है.