scorecardresearch
 

पढ़ाई की, खाली समय में रील्स देखी...बेहद दिलचस्प है इन दो दोस्तों के IAS बनने की कहानी

UPSC की जर्नी कई बार थकाने वाली होती है. जब लगता है कि पूरी दुनिया आगे बढ़ रही है और हम किताबों में डूबते जा रहे हैं. अगर एक दो अटेंप्ट में असफलता हाथ लगे तो हौसला टूटने लगता है. लेकिन, इन दो दोस्तों ने हार भी देखी और जीत भी देखी, पिछले अटेंप्ट में IPS रैंक मिली लेकिन.....

Advertisement
X
गगन मी‍ना और प्रिंस कुमार (बाएं से दाएं) Pic: Social Media
गगन मी‍ना और प्रिंस कुमार (बाएं से दाएं) Pic: Social Media

द‍िल्ली का मुखर्जी नगर इलाका यूपीएससी की तैयारी कर रहे हिंदी मीडियम छात्रों का हब है. यहां आसपास के इलाकों वजीराबाद, परमानंद कॉलोनी, नेहरू विहार में हजारों छात्र आंखों में आईएएस बनने का सपना लेकर आते हैं. यहां के तकरीबन 25 गज की बहुमंजिला इमारतों में रहकर ये तैयारी में डूबे रहते हैं. बिहार के प्रिंस कुमार और राजस्थान के गगन मीना भी यहां इन्हीं उम्मीदों से पहुंचे थे. कुछ दिनों पहले रिजल्ट देखकर उन्हें लगा मानो उनका सपना सच हो गया है. आइए इन दो दोस्तों के संघर्ष की कहानी जानते हैं.  

प्रिंस कुमार मुखर्जी नगर की एक इमारत के पांचवें फ्लोर में रहकर यूपीएससी की तैयारी में दिन रात जुटे रहे. प्रिंस अभी भी प्रीलिम्स की तैयारी कर ही रहे थे लेकिन रिजल्ट में जब उन्हें पता चला कि 89 रैंक आई तो लगा जैसे उनकी तपस्या पूरी हो गई हो. इसी तरह गगन भी एक कमरे में रहकर पढ़ रहे थे. इनकी यहीं दोस्ती हुई. दोनों दोस्तों ने साथ में तैयारी की है. इससे पहले बीते साल दोनों की रैंक कम आने के कारण आईपीएस की जॉब मिल गई थी. 

आईपीएस की सुविधाएं छोड़ी

आईपीएस को मिलने वाला रुतबा और पॉवर भुलाकर ये दोनों दोस्त फिर से लौटकर यहीं आए और उसी तरह की लाइफ दोबारा जी. इसके पीछे दोनों का ध्येय आईएएस बनना था. प्रिंस ने बताया कि ये मेरा चौथा अटेंप्ट था. इससे पहले मैं आईएएस रैंक पाने में असफल रहा. आईपीएस रैंक मिलने के बाद भी मेरे मन में कहीं आईएएस बनने की कसक छूट गई थी, इसलिए मैं वापस यहां लौटा. यहां की लाइफस्टाइल हमें इतनी खराब नहीं लगती क्योंकि यहां इस इलाके में सभी ऐसे ही रहते हैं. इसलिए हम इसे सामान्य मान लेते हैं. 

Advertisement

मुझे आईएएस ही बनना था... 
राजस्थान के संवाई माधौ जिले के गगन मीना को भी लास्ट इयर आईपीएस मिला. दोनों कप्तान थे, लेकिन दोनों ने एक्स्ट्रा आर्डनरी सर्विस लीव लेकर एक और अटेंप्ट देने की सोची. गगन ने कहा कि नेशनल पुलिस अकेडमी ये चांस देती है कि स्पेशल लीव लेकर आप एक और अटेंप्ट दे सकें. गगन कहते हैं कि मेरा सपना आईएएस बनना ही था. मेरे पिता जी खेती करते हैं, घर में सभी कह रहे थे कि अब बहुत हो गया. लेकिन मेरी प्रायोरिटी आईएएस बनने की थी. सच पूछ‍िए तो मेरे परिचय में जिस सिविल सर्वेंट को मैंने जाना, वो मैं खुद ही था. मैं और किसी को पर्सनली रूप से जानता नहीं था. 

वहीं प्रिंस के पिता मोटर साइकिल मैकेनिक हैं. दो भाई और एक बहन के परिवार में सबसे छोटे प्रिंस का खर्च उनके बड़े भाई जो कि इंजीनियर हैं, उन्होंने उठाया. प्र‍िंस कहते हैं कि मुझे भी लगा कि आईपीएस वाली सुविधाएं तो बाद में भी ले लूंगा लेकिन ये मेरा चौथा अटेंप्ट है, मुझे आईएएस बनने की लगन थी तो मैंने हार नहीं मानी. हम दोनों के अंदर जो जुनून था वो बना रहा. 

मैथ‍िली लिट्रेचर था ऑप्शनल सब्जेक्ट 
प्रिंस ने बताया कि मैथ‍िली लिट्रेचर मेरा ऑप्शनल सब्जेक्ट था. इसकी पॉपुलर‍िटीज कम थी, लेकिन मुझे इसमें रुचि थी. मैंने कोचिंग ली, मैथ‍िली ल‍िखना सीखा, साथ में सेल्फ स्टडी की. वहीं गगन का ऑप्शनल मैथ था. दोनों ने कोचिंग दृष्टि IAS से की. गगन कहते हैं कि हमने इंटरव्यू स्टेज के दौरान हेल्प लिया था. मुझे बाकी कॉलेज में आइड‍िया लग गया था कि सिलेबस क्या है यूपीएससी का. मैं आईआईटी बीचयू में पढ़ा, वहीं मुझे यूपीएससी निकालने की धुन सवार हुई थी. 

Advertisement

खाली समय में रील्स देखते थे 
प्रिंस कहते हैं कि मुझे लगता है कि ये सबसे बड़ा म‍िथ है कि अभ्यर्थी को 16 16 घंटे पढ़ना चाहिए. सोशल मीडिया से कट जाना चाहिए. मैं इंस्टा फेसबुक ट्व‍िटर सब चलाता हूं. सबसे कटने की जरूरत नहीं है. मैं भी इंस्टाग्राम पर रील्स देखता हूं. बस आपको अपना टारगेट सेट करना है कि इतना सिलेबस खत्म करना है. वहीं गगन कहते हैं कि मैं स्टार्ट‍िंग में सोशल मीडिया से दूर रहा. जब मैं कॉलेज से आया तो सोच लिया था कि जिस दिन रिजल्ट आएगा तभी पोस्ट करूंगा. लास्ट इयर IPS बनकर चार साल बाद पोस्ट किया. बाकी मैं रील्स में काफी एक्ट‍िव था. 

 

TOPICS:
Advertisement
Advertisement