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इतना शो ऑफ, ठीक तो हो न? कहीं अटेंशन सीकिंग पर्सनैलिटी तो नहीं...

कुछ लोग प्रतिक्रिया पाने के लिए हमेशा भड़काऊ और विवादास्पद बातें ही करते हैं. वहीं कुछ लोग प्रशंसा या सहानुभूति हासिल करने के लिए झूठी कहानियां तक बनाते हैं और उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं. वहीं कुछ लोग ऐसा नाटक भी करते हैं कि वो फलां काम करने में पूरी तरह असमर्थ हैं, फिर कोई उन्हें अटेंशन दे, सिखाए और इतना ही नहीं आगे वो उनके करने का प्रयास भी देखे. 

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प्रतीकात्मक फोटो (Getty)
प्रतीकात्मक फोटो (Getty)

विशाखा (बदला हुआ नाम) कहीं भी जाए, अपनी बातों से सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लेती है. किसी भी पार्टी में उसे अनदेखा किए जाना बहुत बुरा लगता है. कई बार वो इसके लिए इतने झूठ और मनगढ़ंत कहानियां किस्से बनाती है कि उसकी खुद की बहन भी वहां से दूर हट जाती है, लेकिन विशाखा को कोई फर्क नहीं पड़ता, उसे तो सिर्फ लोगों की अटेंशन चाहिए. 

पोस्ट ग्रेजुएशन में पहुंचते-पहुंचते उसने पढ़ाई के साथ डांस भी सीख लिया तो मजाल है कि वो किसी के घर जाए और नाचे न. अक्सर उसकी इन हरकतों की वजह से परिवार को शर्मिंदगी होने लगती थी. और तो और उसने सोशल मीडिया पर भी कई मनगढ़ंत किस्से लिख डाले थे. अगर उसे अकेलापन महसूस भर हो जाए तो बहुत उदास-परेशान और दुखी रहती थी. वो बिना कारण कई कई घंटे कमरा बंद करके रोती थी.

फिर परिजन उसे मनाने पहुंचते तो कहती कि आप लोगों का मुझ पर ध्यान ही नहीं है. उसके परिजनों को ये सब बहुत असामान्य लगा तो उससे मनोचिकित्सक से मिलने के लिए बोला. लेकिन वो पहली बार में तैयार नहीं हुई, लेकिन बाद में उसे बहुत समझाने के बाद लाया गया. भोपाल के जाने माने मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि विशाखा उनकी मरीज थी जिसे अटेंशन सीकिंग डिसआर्डर की समस्या लंबे समय तक रही. काउंसिलिंग और इलाज से उसके लक्षणों में अब काफी बदलाव आए हैं. 

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डॉ सत्यकांत कहते हैं कि अपने अच्छे काम के लिए हर कोई तारीफ चाहता है, कोई अच्छा गा लेता है तो वो महफिलों में गाकर तारीफ बटोरना चाहता है तो कोई अच्छा स्पीकर है तो वो भी अपनी कला दिखाना चाहता है, ये एक सामान्य बात है,  लेकिन यही व्यवहार अगर आसामान्य हो जाए और कोई इसे बार बार दोहराए, मसलन गानेवाला बस स्टेशन और ट्रेन में गाता रहे या किसी के यहां दुख के मौके पर जाने पर भी बिना किसी के कहे गाने गाने लगे या कोई स्पीकर हर जगह स्पीच देने लगे तो इसका अर्थ ये हो सकता है कि उनका अपने व्यवहार पर संतुलन नहीं है. वो ऐसा काम लोगों का अटेंशन पाने के लिए करता है. कई बड़ी हस्त‍ियों में भी अटेंशन सीकिंग पर्सनैलिटी डिसऑर्डर होते हैं, वो लोगों का ध्यान खींचने के लिए तमाम उटपटांग हरकतें करते रहते हैं. डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि यदि कोई वयस्क खुद के बिहैवियर पर कंट्रोल खोकर ध्यान आकर्षित करने वाला व्यवहार या सेंटर ऑफ अट्रैक्शन होने की कोश‍िश करता है तो ये डिसऑर्डर भी हो सकता है. 

कुछ उदाहरणों से समझें 

लोगों के अटेंशन सीकिंग बिहेवियर में किसी व्यक्ति या लोगों के समूह का ध्यान आकर्षित करने के टारगेट के साथ कुछ कहना या करना शामिल हो सकता है. मसलन कुछ लोग प्रतिक्रिया पाने के लिए हमेशा भड़काऊ और विवादास्पद बातें ही करते हैं. वहीं कुछ लोग प्रशंसा या सहानुभूति हासिल करने के लिए झूठी कहानियां तक बनाते हैं और उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं. वहीं कुछ लोग ऐसा नाटक भी करते हैं कि वो फलां काम करने में पूरी तरह असमर्थ हैं, फिर कोई उन्हें अटेंशन दे, सिखाए और इतना ही नहीं आगे वो उनके करने का प्रयास भी देखे. 

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कौन सी वजहें हैं जिम्मेदार 

अटेंशन सीकिंग बिहेवियर जलन, लो सेल्फ स्टीम और कई बार अकेलेपन की भावना मन में भरने के कारण होता है. कभी-कभी ध्यान आकर्षित करने वाला व्यवहार क्लस्टर बी पर्सनैलिटी डिसऑर्डर्स का परिणाम होता है, जैसे

हिस्टीरियोनिक पर्सनैलिटी डिसऑर्डर 
बॉर्डर लाइन  पर्सनैलिटी डिसऑर्डर 
नारसिस्ट‍िक पर्सनैलिटी डिसऑर्डर 
    
जलन और आपस में तुलना हो सकती है वजह 

कई बार कुछ लोगों में ये बात घर कर जाती है कि उनके जैसे काबिल के होते हुए किसी कम योग्य व्यक्त‍ि को उनसे ज्यादा तवज्जो मिलती है. ऐसे लोग किसी महफिल में लोगों का ज्यादा ध्यान खींच रहे हैं, वो इसी प्रत‍िक्र‍िया में फोकस बदलने के लिए ध्यान आकर्ष‍ित करने के लिए अलग तरह का कई बार बहुत असामान्य व्यवहार करने लगते हैं. 

सेल्फ स्टीम को इस तरह समझें कि हर व्यक्त‍ि खुद को एक बेहतर नजरिये से देखता है. उसे खुद पर गर्व होता है, वो एक तरह का आत्मसम्मान है जो हम सबके भीतर होना चाहिए. लेकिन इसी सेल्फ स्टीम में कई जटिल मानसिक अवस्थाओं को शामिल किया गया है जिसमें आप स्वयं को कैसे देखते हैं, ये निर्धारित होता है. जब कुछ लोग मानते हैं कि उनकी अनदेखी की जा रही है, तो दोबारा अटेंशन पाने के लिए वो व्यवहार में संतुलन खोने लगते हैं. इस व्यवहार से उन्हें जो अटेंशन मिलता है, वो उन्हें यह आश्वासन देने में मदद कर सकता है कि वे योग्य हैं. लेकिन ये बात कई बार सिर्फ वही मान रहे होते हैं, जबकि उनके असामान्य व्यवहार को दूसरे अलग तरह से जज कर रहे होते हैं. 

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अकेलापन

हेल्थ रीसोर्सेज एंड पब्लकि एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार हर 5 में से 1 अमेरिकी खुद को अकेला या सामाजिक रूप से अलग-थलग महसूस करते हैं. मनोचिकित्सक कहते हैं कि ये अकेलापन ध्यान आकर्षित करने की इच्छा पैदा कर सकता है, यहां तक ​​कि उन लोगों में भी जो आमतौर पर पहले कभी ध्यान आकर्षित करने वाले व्यवहार का प्रदर्शन नहीं करते रहे हैं. 

अब आपको बताते हैं कि किस तरह दूसरे क्लस्टर पर्सनैलिटी डिसऑर्डर का संबंध सीधे सीधे अटेंशन सीकिंग से जुड़ा होता है. इसमें सबसे पहला है हिस्टोरियोनिक पर्सनैलिटी डिसऑर्डर. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार, हिस्ट्रियोनिक पर्सनैलिटी डिसऑर्डर वाले लोगों में खुद को कम आंकने का लक्षण एक मुख्य पहचान होती है. नीचे दिए लक्षणों में से पांच लक्षण अगर किसी व्यक्त‍ि में हैं तो उनमें हिस्ट्र‍ियोनिक पर्सनैल‍िटी डिसऑर्डर की संभावना होती है. 

- अगर घर से लेकर स्कूल, या किसी के घर पर भी सेंटर ऑफ अटेंशन न होने पर असहज महसूस होता है. 
- उत्तेजक या मोहक (provocative or seductive) व्यवहार करते हैं. 
- उथली और बदलती (shallow and shifting) भावनाएं
- ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने एपियरिएंस का इस्तेमाल  करना
- ब‍िना कारण अस्पष्ट या प्रभावशाली भाषण
- अतिरंजित या नाटकीय भावनाएं व्यक्त करना 
- रिश्तों को अपने से ज्यादा अंतरंग मानने लगना 

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हिस्ट्र‍ियोनिक पर्सनैलिटी डिसऑर्डर से ग्रसित महिलाओं के मामले में डॉ सत्यकांत कहते हैं कि अटेंशन पाने की ग्रीड में ये कई बार भावनात्मक एवं शारीरिक शोषण का शिकार भी हो सकती हैं. इसकी वजह से इनमें कई बार स्वयं को नुकसान पहुचाने की प्रवृत्ति भी देखी जाती है

दूसरे नंबर पर आता है बॉर्डर लाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर. इससे ग्रसित लोग भी सेंटर ऑफ अटेंशन बनने के सिंप्टम्स देते हैं. ऐसे लोग अस्थिर व्यक्तित्व की परेशानी से जूझ रहे होते हैं. इससे ग्रसित व्यक्त‍ि असामान्य और अजीब व्यवहार करता है. उनमें टेंशन, एंजाइटी, व्यर्थता या तेज गुस्से का अनुभव होता है. 

इससे ग्रसित लोग खुद को नुकसान पहुंचाए बिना अपनी ऐसी भावनाओं को नियंत्रित करने में कठिनाई पाते हैं जिससे उनके व्यवहार असामान्य होते हैं. उदाहरण के लिए ड्रग्स और शराब का सेवन करने या ओवरडोज लेने से वो खुद को रोक नहीं पाते. ये लोग कई बार अंटेशन में रहने के लिए दूसरों को नुकसान पहुंचाने तक की धमकी दे डालते हैं. इनके व्यक्त‍िगत रिश्तों का अध्ययन करें तो ये दूसरों के साथ गहरे संबंध बनाते हैं लेकिन ये वाकई में बहुत अस्थायी संबंध होते हैं, इससे ग्रसित लोगों को स्थायी और करीबी रिश्तों को बनाए रखने में कठिनाई होती है.

तीसरे नंबर पर आता है नार्सिस्टकि पर्सनैलिटी ड‍िसऑर्डर, इसेआत्ममुग्धता के सेंस से समझा जा सकता है. ये भी अटेंशन सीकिंग बिहैवियर को जन्म देता है. इससे ग्रसित लोग खुद के प्रत‍ि बहुत आत्ममुग्ध होते हैं. इससे पीड़‍ित लोग अपनी तारीफ, मान-सम्मान न पाने पर दुख और संताप में डूबने लगते हैं. कई बार उनका व्यवहार और बातें लोगों को असहज बनाने लगते हैं. इन्हें अवसाद और तनाव जल्दी गिरफ्त में लेता है. ऐसे लोगों को डॉक्टर सबसे पहले घर पर ही मेडिटेशन आदि की सलाह देते हैं. इससे वो अपना मूल्यांकन कर सकते हैं, लेकिन लक्षण ज्यादा होने पर इसमें कई तरह की थेरेपी काम करती हैं. 

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कैसे आप अटेंशन सीकिंग से कैसे बच सकते हैं 

डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि इसका इलाज बेहद चैलेंजिंग होता है. इसमें जो बिहैवियर होता है, मनोविज्ञान की भाषा में कहते हैं कि पीड़‍ित को महसूस ही नहीं होता कि उनके पार्ट में कोई गड़बड़ी है. उनके मूड में उतार चढ़ाव, रिश्ते खराब होते हैं. इस सबके बावजूद लोग पहले नहीं आते, सभी सेकेंड्री डिप्रेशन के फॉर्म में हमारे पास आते हैं. इसमें जो मेन ट्रीटमेंट होता है, वो है कॉग्न‍िट‍िव ब‍िहैविरल थेरेपी. इसमें हमलोग सोचने समझने के तरीके पर काम करते हैं. व्यक्त‍ि की कॉग्न‍िटिव इरर को पहचानते हैं, फिर 20 से 25 सेशन में उसे सुधारने का प्रयास करते हैं.

साथ में अगर डिप्रेशन एंजाइटी, स्लीप डिस्टर्बेंस होता है तो उन्हें सपोर्ट‍िव दवाएं भी देते हैं. साथ ही साथ परिवार वालों की काउंसिलिंग करते हैं, उन्हें भी थेरेपी देते हैं कि वो उन्हें जज करने से बचें और ये मानकर चलें कि ये जो बिहैवियर है, वो उनकी असुरक्षाओं के प्रति उनका रूपांतरण है. उन्हें कोई संज्ञा देने या जज करने से इससे ग्रसित लोग डिफेंसिव हो जाते हैं और ट्रीटमेंट के लिए आगे नहीं आते.

 

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