पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का निधन हो गया है. 3 जनवरी 1938 को बाड़मेर जिले के जसोल गांव में जन्मे जसवंत सिंह बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. वे बीजेपी के दिग्गज नेता थे लेकिन अंतिम समय में पार्टी से उनके मतभेदों के चलते उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. वे पिछले छह साल से कोमा में थे.
जसवंत सिंह ने अपनी पढ़ाई अजमेर के मेयो कॉलेज और फिर नेशनल डिफेंस एकेडमी खडकवासला में पूरी की. कम उम्र में ही उन्होंने आर्मी ज्वॉइन कर ली. जसवंत सिंह ने 1966 में राजनीति में एंट्री की. वे बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे. 1980 में वे पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए. वे इसके बाद 1986, 1998, 1999 और 2004 में भी राज्यसभा के लिए चुने गए.
जसवंत सिंह चार बार लोकसभा के लिए चुने गए. 1990, 1991, 1996, 2009 में उन्होंने चुनावी राजनीति में अपना दमखम दिखाया. 2004 से 2009 तक वे राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे. वाजपेयी सरकार में वे 1998 से 2002 तक विदेश मंत्री, 2000 से 2001 तक रक्षा मंत्री और 2002 से 2004 तक वित्त मंत्री रहे. उन्हें वाजपेयी का हनुमान कहा जाता था.
कंधार विमान अपहरण कांड के वक्त जसवंत सिंह विदेश मंत्री थे. तीन आंतकियों को कंधार छोड़ने भी वही गए थे. इसके लिए विपक्ष अक्सर उनकी आलोचना भी करता रहता था. उन्होंने अपनी किताब में भी इस घटना के बारे में विस्तार से लिखा है.
2009 के चुनाव में एनडीए की हार के बाद जसवंत सिंह की जिन्ना पर किताब आई. अपनी किताब जिन्ना: इंडिया-पार्टीशन, इंडिपेंडेंस में मोहम्मद अली जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताए जाने और विभाजन के लिए जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को भी जिम्मेदार बताने पर उन्हें बीजेपी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. हालांकि तकरीबन एक साल बाद उनकी फिर से पार्टी में वापसी हो गई.
2012 में देश के 14वें उपराष्ट्रपति के लिए हुए चुनाव में जसवंत सिंह एनडीए के उम्मीदवार थे लेकिन उन्हें यूपीए प्रत्याशी हामिद अंसारी ने करारी शिकस्त दी. अंसारी ने उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार जसवंत सिंह को 252 वोटों से हराया था. हामिद अंसारी को 490 वोट जबकि जसवंत सिंह को 238 वोट मिले थे.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से टिकट न मिलने पर जसवंत सिंह ने बाड़मेर से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा लेकिन बीजेपी प्रत्याशी कर्नल सोनाराम से हार गए. बगावत के बाद सिंह को बीजेपी से छह साल से लिए निष्कासित कर दिया गया था.
जसवंत सिंह विद्वान राजनेता थे. वे खुद को लिबरल डेमोक्रेट कहलाना पसंद करते थे. घुड़सवारी, संगीत, किताबों और अपनी संस्कृति से उन्हें लगाव था. उनपर कभी किसी तरह के करप्शन का आरोप नहीं लगा. बीजेपी में पूरी उम्र गुजार देने के बावजूद उन्होंने कभी भी हिंदुत्व की राजनीति को खुद पर हावी नहीं होने दिया. वे पाकिस्तान के रिश्ते सुधारने के पक्षधर थे. 1999 की लाहौर बस यात्रा का सूत्रधार उन्हीं को माना जाता है.
जसवंत सिंह का विवाह 30 जून 1963 को शीतल कुमारी के साथ हुआ था. उनके बेटे मानवेंद्र सिंह बाड़मेर से सांसद और यहीं की शिव सीट से विधायक रहे हैं. वे फिलहाल कांग्रेस के सदस्य हैं. कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद उन्होंने झालरापाटन से कांग्रेस की टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने चुनाव लड़ा और हार गए. 17वीं लोकसभा चुनाव में बाड़मेर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर वे भाजपा के कैलाश चौधरी से हार गए.