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भारत के खिलाफ टू-फ्रंट वॉर की साजिशें बेअसर, अब खुद PAK को सता रहा 3-फ्रंट वॉर का डर

भारत के खिलाफ पाकिस्तान-चीन की दो-मोर्चे की साजिशें नाकाम हो गईं. भारत की मजबूत सेना और नीतियों ने इन्हें बेअसर कर दिया. अब पाकिस्तान खुद तीन-मोर्चे के युद्ध से डर रहा है- पूर्व में भारत, पश्चिम में अफगानिस्तान (टीटीपी हमले) और अंदर बलूचिस्तान-खैबर में विद्रोह. इससे सेना में थकान, आर्थिक तबाही, राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी.

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पाकिस्तान के सामने तीन मोर्चों से जंग का खतरा मंडरा रहा है. (Photo: ITG)
पाकिस्तान के सामने तीन मोर्चों से जंग का खतरा मंडरा रहा है. (Photo: ITG)

हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच मई का चार दिवसीय युद्ध हुआ था. भारत की सैन्य कार्रवाई से शुरू हुआ यह संघर्ष अब खत्म हो चुका लगता है. पाकिस्तान चाहता था भारत टू-फ्रंट वॉर में फंस जाए. उसने इसके लिए चीन से अपील भी की लेकिन चीन ने कोई जवाब नहीं दिया. अब उसे खुद इस बात का डर सता रहा है कि कहीं उसे थ्री-फ्रंट वार का सामना न करना पड़े. 

ऑपरेशन सिंदूर में भारत से मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान अपनी छवि बनाने में जुट गया. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान की तारीफ की, जिससे अमेरिका-पाकिस्तान संबंध बेहतर हुए. पाकिस्तानी सामान पर अमेरिकी टैरिफ कम हुए. पाकिस्तान को ट्रंप के मध्य पूर्व शांति प्लान में जगह मिली.

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कई विश्लेषक कह रहे हैं कि पाकिस्तान अब भू-राजनीतिक रूप से मजबूत स्थिति में है. लेकिन सच्चाई इतनी सरल नहीं है. आइए समझते हैं कि पाकिस्तान की भारत के खिलाफ ऐसी साजिशें क्यों नाकाम रहीं. अब तीन-मोर्चे का युद्ध पाकिस्तान को क्यों डरा रहा है. हम जानेंगे कि इन युद्धों का पाकिस्तान पर क्या असर पड़ रहा है. क्यों पाकिस्तान की सरकार को नींद नहीं आ रही. 

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दो-मोर्चे का युद्ध क्या है? भारत के खिलाफ साजिश क्यों बेअसर हो गई?

सबसे पहले समझिए दो-मोर्चे का युद्ध. कल्पना कीजिए, कोई देश दो दुश्मनों से एक साथ लड़ रहा हो. भारत के मामले में पाकिस्तान और चीन दो बड़े पड़ोसी हैं. चीन और पाकिस्तान के बीच गहरी दोस्ती है – वे 'आल वेदर फ्रेंड्स' कहलाते हैं. इसलिए, कई सालों से डर था कि ये दोनों मिलकर भारत पर दो-मोर्चे पर हमला करेंगे. इससे भारत की सेना दो हिस्सों में बंट जाएगी. लड़ना मुश्किल हो जाएगा.

पाकिस्तान और चीन ने कई बार ऐसी साजिशें रचीं. जैसे, 2019 के बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान ने भारत को उकसाया. चीन ने सीमा पर तनाव बढ़ाया. मई 2025 के युद्ध में भी यही हुआ – भारत ने पाकिस्तान पर स्ट्राइक की, तो पाकिस्तान ने सोचा कि चीन साथ देगा. लेकिन ये साजिशें बेअसर क्यों हो गईं? 

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  • भारत की मजबूती: भारत ने अपनी सेना को आधुनिक बनाया. अब भारत एक साथ दोनों मोर्चों पर मुकाबला कर सकता है. 2019 और 2025 के छोटे-छोटे संघर्षों में पाकिस्तान को लगा कि भारत से पार पाना मुश्किल है.
  • राजनीतिक दबाव: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूत नीति ने पाकिस्तान को पीछे धकेला. मोदी को घरेलू राजनीति में 'मजबूत नेता' दिखना जरूरी है, इसलिए वे कभी पीछे नहीं हटते.
  • अंतरराष्ट्रीय बदलाव: अमेरिका अब भारत का करीबी दोस्त है. ट्रंप की तारीफ पाकिस्तान को मिली, लेकिन ये अस्थायी है. असल में, भारत की अर्थव्यवस्था और सेना पाकिस्तान से कहीं आगे है.

नतीजा... दो-मोर्चे की साजिशें नाकाम. पाकिस्तान को लगा कि वो भारत को घेर लेगा, लेकिन उल्टा भारत ने पाकिस्तान को कमजोर दिखा दिया. अब पाकिस्तान सोच रहा है – अगर दो-मोर्चे भारत के लिए खतरा था, तो हमारे लिए तीन-मोर्चे का क्या हाल होगा?

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तीन-मोर्चे का युद्ध: पाकिस्तान का नया डर

अब आते हैं तीन-मोर्चे के युद्ध पर. ये दो-मोर्चे से भी बुरा है. कल्पना कीजिए, कोई देश तीन तरफ से घिरा हो – पूर्व, पश्चिम और अंदर से. पाकिस्तान के लिए ये तीन मोर्चे हैं...

पूर्वी मोर्चा (भारत के साथ): ये पुराना दुश्मन है. कश्मीर, सीमा विवाद और आतंकवाद के नाम पर हमेशा तनाव. मई 2025 का युद्ध इसी का नतीजा था. पाकिस्तान सोचता है कि वो भारत को हराएगा, लेकिन उसने देख लिया उसके साथ क्या हुआ. न भारत हार सकता है, न पाकिस्तान जीत सकता है.  

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पश्चिमी मोर्चा (अफगानिस्तान के साथ): ये नया सिरदर्द है. अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने पाकिस्तान की सीमा को 'काल्पनिक रेखा' कहा है. वे चाहते हैं कि पाकिस्तान के पश्तून इलाके (जैसे खैबर पख्तूनख्वा) अलग हो जाएं. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) नाम का आतंकी गुट अफगानिस्तान से हमले करता है.

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पाकिस्तान ने जवाबी स्ट्राइक की, तो तालिबान ने भी हमला बोला. कतर और तुर्की की मध्यस्थता से थोड़ी शांति हुई, लेकिन टीटीपी अभी भी अफगानिस्तान में छिपा है. अफगानिस्तान कोई मजबूत देश नहीं – ये एक जंगली इलाके जैसा है, जहां हार-जीत का मतलब नहीं. लेकिन इनसे लड़कर पाकिस्तान की सेना थक रही है.

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आंतरिक मोर्चा (अंदरूनी संघर्ष): ये सबसे खतरनाक है. पाकिस्तान के अंदर ही कई समस्याएं हैं – बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में विद्रोह. बलूच लोग अलग राज्य चाहते हैं. भारत उनकी मदद करता है. खैबर में टीटीपी जैसे गुट सक्रिय हैं. इसके अलावा, अर्थव्यवस्था खराब, बेरोजगारी, गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता. सेना सत्ता में हावी है, लेकिन आम लोग असंतुष्ट हैं. सरकार विरोधियों को जेल में डालती है. 

ये तीन मोर्चे अलग-अलग नहीं – ये आपस में जुड़े हैं. जैसे, अफगानिस्तान भारत से हाथ मिला रहा है. आंतरिक विद्रोही विदेशी मदद ले रहे हैं. पाकिस्तान के पास संसाधन कम हैं – न पैसा, न मजबूत अर्थव्यवस्था. सेना का तीन तरफ लड़ना नामुमकिन है. 

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तीन-मोर्चे का असर: पाकिस्तान क्यों डर रहा है?

पाकिस्तान को तीन-मोर्चे का डर इसलिए सता रहा है क्योंकि ये उसके अस्तित्व के लिए खतरा है...

  • सेना की थकान: सेना पूर्व में भारत, पश्चिम में अफगानिस्तान और अंदर बलूचिस्तान पर तैनात है. सैनिक थक जाते हैं, हथियार खत्म हो जाते हैं. छोटे हमलों से भी बड़ा नुकसान.
  • आर्थिक तबाही: युद्ध से पैसा डूबता है. पाकिस्तान पहले ही कर्ज में डूबा है. अमेरिकी मदद अस्थाई है – ट्रंप की तारीफ से टैरिफ कम हुए, लेकिन लंबे समय तक नहीं चलेगा. गरीबी बढ़ेगी, बेरोजगारी से दंगे होंगे.
  • राजनीतिक अस्थिरता: सरकार कमजोर है. सेना सत्ता चला रही है, लेकिन चुनाव विवादास्पद थे. लोग सड़कों पर उतर आएंगे. पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) का उदाहरण याद है – 1971 में अलग हो गया.
  • मानवीय नुकसान: हजारों सैनिक और नागरिक मर रहे हैं. बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे, स्वास्थ्य सेवाएं बर्बाद. बलूचिस्तान और खैबर में खूनखराबा बढ़ रहा है.
  • अंतरराष्ट्रीय अलगाव: दुनिया पाकिस्तान को आतंकवाद का साथी मानती है. संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट्स टीटीपी को नाम देती हैं. सऊदी का गठबंधन अच्छा है, लेकिन भारत-अमेरिका-अफगानिस्तान का गठजोड़ पाकिस्तान को घेर रहा है.

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विशेषज्ञ कहते हैं कि युद्ध तभी खत्म होता है जब दोनों तरफ 'दर्दनाक गतिरोध' (म्यूचुअली हर्टिंग स्टेलमेट) हो – यानी, दोनों को लगे कि लड़ाई से फायदा नहीं, नुकसान ज्यादा. लेकिन पाकिस्तान के तीन मोर्चों पर ऐसा नहीं हो रहा. दोनों तरफ सरकारें 'जीत' का दावा कर रही हैं, इसलिए संघर्ष बढ़ेगा.

पाकिस्तान को क्या करना चाहिए?

पाकिस्तान सोचता है कि वो तीनों मोर्चों पर जीत जाएगा – सेना विरोध दबाएगी, अफगानिस्तान को दंड देगी, भारत को उकसाएगी. लेकिन ये 'नैश इक्विलिब्रियम' जैसा है – हर कोई अपनी रणनीति पर अड़ा है, लेकिन सब हार रहे हैं. असल समाधान- बातचीत है. आंतरिक समस्याओं को सुलझाओ – लोगों को नौकरी, शिक्षा दो. 

अफगानिस्तान से सीमा समझौता करो. भारत से शांति वार्ता शुरू करो. लेकिन राजनीति के कारण ये मुश्किल है. ट्रंप की तारीफ अच्छी है, लेकिन ये लॉटरी जैसी जीत है – रणनीति नहीं. पाकिस्तान को डर इसलिए है क्योंकि तीन-मोर्चे उसे तोड़ सकता है. भारत ने दो-मोर्चे का खतरा टाला, अब पाकिस्तान को तीन-मोर्चे से बचना है.

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