Operation Lyari: कराची की काली गलियों में फैले ख़ौफ़, गैंगस्टर्स के राज और गोलियों की गूंज... कुछ वैसा ही माहौल था, जैसा आपने हाल ही में रिलीज़ हुई बॉलीवुड फिल्म ‘धुरंधर’ में देखा होगा. लेकिन फर्क बस इतना था कि ल्यारी की असल कहानी पर्दे पर दिखाए गए सिनेमा से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक, गहरी और सच्ची थी. जहां हर मोड़ पर मौजूद था दुश्मन, हर नुक्कड़ पर तनी रहती थीं बंदूकें और हर गली बयां करती थी खूनी खेल की दास्तान.
ये वो दौर था, जब कराची का दिल कहे जाने वाला ल्यारी टाउन अपराध, गैंगवार, राजनीतिक सौदेबाज़ी और खूनखराबे के ऐसे जंजाल में फंसा था कि एक दिन पुलिस को शहर के बीचोंबीच युद्ध जैसी कार्रवाई करनी पड़ी थी. इस कार्रवाई को नाम दिया गया था ‘ऑपरेशन ल्यारी.’ जो महज एक पुलिस ऑपरेशन नहीं था बल्कि दशकों से डर, ड्रग्स, बदले और बगावत की आग में सुलग रही थी.
जिस तरह 'धुरंधर' फिल्म में किरदार अपना-अपना साम्राज्य बचाने के लिए भिड़ते हैं, उसी तरह ल्यारी में भी रहमान डकैत और उजैर बलोच जैसे दबंग सत्ता की जंग में शहर को दहला रहे थे. फर्क बस इतना था कि वहां कैमरा नहीं, मौत चलती थी. इसी गहराई, उसी रफ़्तार और असली घटनाओं की उसी खुरदरी सच्चाई से शुरू होती है ऑपरेशन ल्यारी की पूरी कहानी.
नशीले पदार्थों से गैंगवार तक
1970–90 के दशक में ल्यारी में ड्रग तस्करी शुरू हुई और स्थानीय गिरोह बनने लगे. कलाकोट की अफ़शानी गली से निकलकर दो भाई शेरू और दादल ने ड्रग नेटवर्क फैलाया. धीरे-धीरे यह नेटवर्क इतना बड़ा हुआ कि राजनीतिक दलों ने भी इन गिरोहों का इस्तेमाल स्थानीय नियंत्रण के लिए करना शुरू कर दिया. अपराध, राजनीति और जातीय पहचान का यह मिश्रण ल्यारी को एक अलग सत्ता केंद्र बनाता गया.
रहमान डकैत: गैंगस्टर से स्थानीय नायक तक
साल 2000 के दशक में रहमान डकैत ल्यारी का नाम सबसे कुख्यात बन गया. PPP के कुछ नेताओं ने उसे अपना मतदाता संरक्षक बनाकर अपराध को नियंत्रित करने की कोशिश की. बदले में रहमान को ड्रग्स, हथियार और रंगदारी के धंधे पर खुली छूट मिल गई. उसने छोटे मोटे अपराध कम कर दिए, जिससे वह स्थानीय हीरो बन गया. लेकिन जल्द ही वह इतना शक्तिशाली हो गया कि PPP के लिए ही खतरा बन गया और साल 2009 में वह पुलिस मुठभेड़ में मारा गया.
उजैर बलूच का उदय
रहमान की मौत के बाद उसका चचेरा भाई उजैर बलूच पीपुल्स अमन कमेटी का मुखिया बना. उसकी MQM से गहरी दुश्मनी और टारगेट किलिंग ने कराची में तनाव बढ़ा दिया. सरकार ने साल 2011 में अमन कमेटी को आतंकवाद निरोधक कानून के तहत प्रतिबंधित कर दिया, लेकिन धरातल पर संगठन चलता रहा. साल 2012 तक उजैर बलूच कराची की राजनीति और अपराध जगत में सबसे प्रभावशाली नाम बन चुका था.
गैंग्स के बीच दुश्मनी
उजैर बलूच और उसके प्रतिद्वंद्वी गैंग, खासकर अर्शाद पप्पू, लगातार एक-दूसरे के लोगों की हत्या करते रहे. हथियारों की तस्करी, जमीनों पर धंधा, रंगदारी और राजनीतिक संरक्षण ने इस संघर्ष को और भयावह बना दिया. पुलिस के लिए कई इलाके 'नो-गो जोन' बन गए. जहां दाखिल होना मौत को बुलाने जैसा था.
2012: सरकार ने किया ऑपरेशन शुरू
1 अप्रैल 2012 का दिन था, जब एक गैंग के सदस्य साक़िब उर्फ साखी की मुठभेड़ में मौत के बाद हालात बिगड़ गए. 26 अप्रैल को उजैर बलूच ने PPP नेता मलिक मोहम्मद खान की हत्या कर दी. यह वह दौर था, जिसके बाद सरकार ने 'ऑपरेशन ल्यारी' शुरू करने का फैसला किया. 27 अप्रैल 2012 को पुलिस ने उजैर के घर पर छापा मारा लेकिन वह भाग निकला. यह कार्रवाई धीरे-धीरे बेहद हिंसक मोड़ लेती गई.
ऑपरेशन का शुरुआती चरण
ल्यारी की संकरी गलियों और गैंग्स के पास मौजूद RPG जैसे हथियारों ने पुलिस को रोक दिया. पुलिस कई बार घंटों तक घिर गई और ताबड़तोड़ गोलाबारी होती रही. प्रतिरोध इतना मजबूत था कि 4 मई 2012 को 48 घंटे के लिए ऑपरेशन रोकना पड़ा. पुलिस महानिरीक्षक (IG) सिंध ने दावा किया कि कुछ तालिबान तत्व भी गैंग्स के साथ मौजूद थे, हालांकि इस दावे की पुष्टि नहीं हो पाई.
क्यों रुका था ऑपरेशन?
साल 2012 का ऑपरेशन मुख्य रूप से पुलिस पर आधारित था, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप ने इसे अधूरा छोड़ दिया. नवाज शरीफ ने इस संघर्ष का फायदा उठाकर स्थानीय जनता से समर्थन लेने की कोशिश की. उनके प्रतिनिधियों ने उजैर बलूच से मुलाकात भी की. इस वजह से ऑपरेशन पूरी तरह सफल नहीं हो पाया और बहुत कम गैंगस्टर गिरफ्तार हो पाए.
2013: रेंजर्स को मिली कमान
साल 2013 में नवाज शरीफ सरकार आने के बाद कराची में हिंसा पर लगाम लगाने के लिए रेंजर्स को खुली छूट दी गई. 7 सितंबर 2013 को टारगेटेड ऑपरेशन शुरू हुआ, जिसमें हजारों संदिग्ध गिरफ्तार किए गए. नए अभियान ने गैंग्स की वित्तीय और हथियार सप्लाई लाइनों को निशाना बनाया. धीरे-धीरे गैंगवार कमजोर पड़ने लगी.
कराची को कंपा देने वाली दुश्मनी
रहमान डकैत की मौत के बाद अर्शाद पप्पू और उजैर बलूच की दुश्मनी कराची के हर हिस्से में फैल गई. हत्या, अपहरण और बम धमाकों की इस लड़ाई में आम लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. अर्शाद पप्पू का अंत भी बेहद हिंसक हुआ, और उसकी हत्या ने शहर की सड़कों पर डर और दहशत को और बढ़ा दिया था.
पुलिस अफसर चौधरी असलम की शहादत
9 जनवरी 2014 को कराची पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट चौधरी असलम तालिबान के आत्मघाती हमले में शहीद हो गए. वह ऑपरेशन ल्यारी का सबसे प्रमुख चेहरा थे. उनकी शहादत ने साबित किया कि ल्यारी का अपराध केवल स्थानीय गैंग्स तक सीमित नहीं था, बल्कि आतंकवादी संगठनों से जुड़ा एक बड़ा नेटवर्क था.
कुख्यात बाबा लैडला का अंत
साल 2017 में रेंजर्स ने एक मुठभेड़ में कुख्यात गैंग लीडर बाबा लैडला को मार गिराया. बाबा लैडला रहमान डकैत और उजैर बलूच दोनों से जुड़ा रहा था और कई हत्याओं में उसकी भूमिका थी. उसकी मौत को 'ऑपरेशन ल्यारी' का निर्णायक मोड़ माना गया, जिसने गैंग्स की रीढ़ तोड़ दी.
ल्यारी का इतिहास और वर्तमान
कराची पाकिस्तान का सबसे बड़ा और बहु-जातीय शहर है, जिसकी आबादी 2 करोड़ से भी अधिक है. इसी शहर का सबसे पुराना और घनी आबादी वाला हिस्सा है ल्यारी. जहां बलूच, सिंधी, उर्दूभाषी, पश्तून, पंजाबी और कई दूसरे समुदाय साथ रहते हैं. साल 2023 की जनगणना के मुताबिक वहां लगभग दस लाख लोग रहते हैं. शुरुआती दिनों में यह मज़दूर बस्ती थी. लेकिन बाद में ये इलाका कामगारों के कस्बे में तब्दील हो गया. फिर जैसे-जैसे शहर बढ़ा, वहां सामाजिक असमानता और राजनीतिक तनाव की जड़ें भी गहरी होती गईं
1947 के बाद मुहाजिर समुदाय कराची में बसा और व्यापार, नौकरी में मजबूत पकड़ बनाई. दूसरी ओर सिंधी राष्ट्रवाद, पश्तून प्रवास और बांग्लादेश से आए बिहारी समुदाय ने शहर की जातीय तस्वीर को और जटिल कर दिया. यह विविधता अक्सर तनाव का कारण बन जाती थी. यही संघर्ष आगे चलकर कराची और खासकर ल्यारी को हिंसा, गैंग नियंत्रण और राजनीतिक टकराव की ओर धकेलता चला गया.
ल्यारी के अंदर बलोच, सिंधी, कश्मीरी, सेराइकी, पश्तून, मेमन और बोहरा सभी समुदाय मौजूद हैं. इस विविधता ने राजनीतिक दलों को समुदाय आधारित समर्थन दिया. MQM जहां शहरी मुहाजिरों की पार्टी बनी, वहीं PPP का सबसे मजबूत गढ़ ल्यारी ही माना गया. इसी राजनीतिक बंटवारे ने आने वाले दशकों में यहां गैंग्स को पनपने का मौका दिया.
ऑपरेशन के बाद ल्यारी में क्या बदला?
साल 2013 से 2017 के बीच रेंजर्स और पुलिस की संयुक्त कार्रवाई ने ल्यारी में बड़ा बदलाव किया. गिरोहों का प्रभाव कमजोर हुआ, कई नो-गो क्षेत्रों को खत्म किया गया और अपराध दर में गिरावट आई. लेकिन आज भी वहां गरीबी, सामाजिक असमानता, बेरोजगारी और राजनीतिक खींचतान कायम है. यानी ऑपरेशन ल्यारी ने अपराध को दबाया जरूर है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं किया.