Badlapur Akshay Shinde Encounter: सितंबर 2024 के बदलापुर एनकाउंटर केस में पिछले महीने बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक आदेश पारित किया था, जिसमें सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने संशोधन कर दिया. अब इस मामले में एफआईआर दर्ज करने और विशेष जांच दल (SIT) से जांच करने का निर्देश दिया गया है.
महाराष्ट्र सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और जब विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) सुनवाई के लिए आई, तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार एसआईटी के गठन का विरोध नहीं कर रही है, बल्कि केवल इस तथ्य का विरोध कर रही है कि अधिकारी को कोर्ट द्वारा नियुक्त नहीं किया जा सकता है.
तुषार मेहता ने जोर देकर कहा, "एसआईटी का गठन कोर्ट द्वारा किया गया है, यहां तक कि अधिकारी का चयन भी कोर्ट द्वारा किया गया है. पहले की एजेंसी को राहत दी गई है. इसे डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) या डीजीपी द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा संचालित किया जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने पाया कि अन्ना शिंदे और उनकी पत्नी, अक्षय शिंदे के माता-पिता, जिसका एनकाउंटर किया गया था, पहले ही मुकदमे से हट चुके हैं और इसलिए अदालत ने उन्हें नोटिस जारी करने का कोई कारण नहीं देखा.
पीठ ने स्पष्ट किया कि 'आरोपों की प्रकृति और गंभीरता तथा उच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को ध्यान में रखते हुए हम एसआईटी के गठन की सीमा तक आदेश को संशोधित करते हैं. हम एसआईटी का गठन डीजीपी द्वारा करने तथा डीजीपी द्वारा उपयुक्त समझे जाने वाले अधिकारियों को नियुक्त करने का निर्देश देते हैं. राज्य डीजीपी को कागजात सौंपने में आवश्यक कार्रवाई करेगा. हम स्पष्ट कर सकते हैं कि शिकायतकर्ता, यदि उसे कोई शिकायत है, तो वह उचित राहत के लिए सक्षम न्यायालय यानी संबंधित मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायालय में जा सकता है.'
इसके बाद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि उच्च न्यायालय द्वारा 30 अप्रैल को एफआईआर दर्ज करने का आदेश पारित किया गया था. इसलिए पीठ ने अपने आदेश में निर्दिष्ट किया कि '30 अप्रैल का आदेश या उसके बाद पारित कोई भी आदेश संशोधित माना जाएगा. एसएलपी का निपटारा किया जाता है.'
30 अप्रैल को राज्य सरकार की ओर से उपस्थित लोक अभियोजक हितेन वेनेगांवकर ने उच्च न्यायालय के समक्ष कहा था कि अपराध शाखा, मुंबई से सम्बद्ध पुलिस निरीक्षक मंगेश देसाई के कहने पर 3 मई 2025 को या उससे पहले एफआईआर दर्ज की जाएगी. बयान स्वीकार किया गया.
महाराष्ट्र के ठाणे जिले के बदलापुर के एक स्कूल में सफाई कर्मचारी अक्षय शिंदे का 23 सितंबर, 2024 को तलोजा जेल से पुलिसकर्मियों द्वारा थाने ले जाते समय एनकाउंटर कर दिया गया था. पुलिस ने कहा था कि उत्तेजित शिंदे ने उनकी पिस्तौल छीन ली थी और पुलिसकर्मी नीलेश मोरे की जांघ पर गोली मार दी थी, जिसके बाद वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक संजय शिंदे को आत्मरक्षा में उसके सिर में बिल्कुल नजदीक से गोली मारनी पड़ी थी.
अक्षय शिंदे के माता-पिता ने अधिवक्ता अमित कतरनवारे के माध्यम से उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें निर्देश दिया गया था कि एक एसआईटी का गठन किया जाए और मुठभेड़ में शामिल 5 पुलिसकर्मियों के खिलाफ जांच की जाए. माता-पिता ने आरोप लगाया था कि राज्य में चुनाव से ठीक पहले उनके बेटे की राजनीतिक कारणों से हत्या की गई थी.
मुठभेड़ के तुरंत बाद, अपराध जांच विभाग (सीआईडी) ने जांच शुरू कर दी थी, लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं की थी. कई दिनों की बहस के बाद, उच्च न्यायालय ने मुंबई के संयुक्त पुलिस आयुक्त लखमी गौतम द्वारा एसआईटी के गठन और एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देते हुए एक आदेश पारित किया था. एसआईटी का गठन तो हुआ लेकिन सीआईडी ने जांच के दौरान जुटाई गई सामग्री को ट्रांसफर नहीं किया और न ही कोई एफआईआर दर्ज की गई.
दो अलग-अलग दिनों में हाईकोर्ट ने कहा था कि वह कोर्ट के आदेशों का पालन न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करेगा, जिसके बाद सीआईडी ने कागजात सौंपे और फिर एसआईटी ने एफआईआर दर्ज करने का वादा किया. हालांकि, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में राज्य की एसएलपी की सुनवाई होने तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई.